यूपी के मोस्ट वॉन्टेड गैंगस्टर विकास दुबे ने गुरुवार सुबह ही मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर के बाहर पुलिस के सामने सरेंडर किया था. लेकिन 24 घंटे के भीतर ही विकास दुबे एनकाउंटर में मारा गया. पुलिस का कहना है कि एसटीएफ की टीम उसे उज्जैन से लेकर कानपुर आ रही थी और इसी दौरान एसटीएफ की गाड़ी पलटी और विकास दुबे पुलिस वालों के हथियार छीनकर भागने की कोशिश करने लगा. पुलिस का दावा है कि जवाबी कार्रवाई में विकास दुबे मारा गया.
विकास दुबे की एनकाउंटर में मौत के बाद सोशल मीडिया पर
#fakeencounter हैशटैग
ट्रेंड कर रहा है और तमाम लोग इस एनकाउंटर पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
कुछ लोग सवाल कर रहे हैं कि जब विकास दुबे ने खुद ही सरेंडर कर दिया था तो वह भागने की कोशिश क्यों कर रहा था. एनकाउंटर के दौरान पुलिस ने सीने पर गोली मारी. क्या पुलिस का मकसद उसे भागने से रोकना नहीं, जान से मारना था?
माना जा रहा था कि विकास दुबे के पकड़े जाने से कई बड़े नामों का खुलासा हो सकता था क्योंकि विकास के संबंध राजनेताओं और पुलिस के लोगों से भी था. ट्विटर पर लोग ये भी सवाल कर रहे हैं कि इन लोगों को बचाने के लिए कहीं फर्जी एनकाउंटर तो नहीं किया गया.
सरल पटेल ने लिखा, "बदला न्याय नहीं हो सकता. 8 शहीद पुलिसकर्मियों को न्याय तभी मिलेगा जब ये पता लगे कि पुलिस रेड के बारे में विकास दुबे को किसने जानकारी दी थी. निलंबित एसएचओ तो इस मशीनरी का एक हिस्सा हैं. सरकार और अफसरशाही में किसने विकास दुबे को प्रश्रय दिया और क्यों?"
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, विकास दुबे को ले जा रही यूपी पुलिस के काफिले के पीछे चल रही मीडिया को एनकाउंटर से पहले रोक दिया गया, इससे कोई संदेह नहीं रह जाता कि यह पूर्व नियोजित था. पुलिस ने जानबूझकर गाड़ी पलट दी ताकि वह ये कहानी पेश की जा सके.
राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव ने एक दिन पुराने ट्वीट को शेयर करते हुए लिखा कि हर कोई जानता था कि यही होगा. 9 जुलाई को ट्वीट में उन्होंने विकास दुबे के एनकाउंटर की आशंका जताई थी.
एक यूजर ने विकास दुबे को सीने में गोली लगने को लेकर सवाल पूछा है. यूजर ने लिखा है कि अगर विकास दुबे भागने की कोशिश कर रहा था तो गोली पीठ पर या पैर पर लगनी चाहिए थी लेकिन गोली सीने पर कैसे लगी.
राज कुमार नाम के एक यूजर ने लिखा है, "पहले दुबे की गाड़ी पलटी, फिर दुबे ने पुलिस की पिस्तौल छीनने की कोशिश की, दुबे को पैर में गोली नहीं लगी, सीने में गोली लगी..."
राजकुमार नाम के एक यूजर ने ट्वीट किया, ये फर्जी कहानी है, सिस्टम पूरी तरह से नाकाम हो चुका है.
निखिल अल्वा ने ट्वीट किया, अपराधी विकास दुबे की हत्या हमारे संविधान और कानूनी प्रक्रिया का अपमान है. ये हमारी न्याय व्यवस्था के परीक्षा की घड़ी है. क्या वे इसके खिलाफ खड़े होंगे और हमारे संविधान को बचाएंगे या फिर कोई दूसरा रास्ता अपनाएंगे.
कुछ लोगों ने मीम्स के जरिए सवाल किए कि अगर ऐसा जारी रहा तो फिर न्यायपालिका की भूमिका क्या रह जाएगी?
विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर सोशल मीडिया पर मीम्स के जरिए भी सिस्टम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं.
पुलिस-राजनेताओं-अपराधियों के गठजोड़ को लेकर भी कई यूजर ने मीम्स बनाए.