जज का हथौड़ा जैसे ही आखिरी बार मेज पर गिरा, अफरातफरी मच गई. तेजतर्रार नौजवान वकील अपना काला गाउन हवा में लहराते टीवी कैमरे की ओर दौड़े. गाजियाबाद विशेष सीबीआइ अदालत के तंग कमरे में करीब 15 लोग ठुंसे हुए थे. बाहर सैकड़ों पत्रकार तथा तमाशबीनों की भीड़ को काबू करने में पुलिसवालों की टुकड़ी के पसीने छूट रहे थे, कुछ लोग तो पेड़ और दीवारों पर चढ़ गए थे.
सीबीआइ विशेष न्यायाधीश श्याम लाल ने गीता से उद्धरण दिया, ‘‘धर्म रक्षति रक्षितः (धर्म उसी की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है).’’ जज श्याम लाल को अदालती हलके में प्यार से सजा लाल पुकारा जाता है. ब्रेकिंग न्यूज देने की दौड़ जीतने वाला वकील अपनी दो उंगलियों को अंग्रेजी अक्षर वी (यानी विजय) की आकार में लहराते हुए चीख रहा था, ‘‘आरुषि के मां-बाप को उम्रकैद. वे रो रहे हैं.’’
आरुषि और हेमराज की 16 मई, 2008 को बेहद त्रासद और अजीबो-गरीब हत्या हमारे इस दौर की दर्दनाक दास्तान हैः मानवीय दुर्बलताओं और दुखों की, वफादारी और बेवफाई की, प्यार और पूर्वाग्रह की. दो हत्याएं, दो किस्से, दो तरह के सुराग, दो संभावनाएं, और दो तरह के संदिग्ध. पांच साल की पड़ताल, तीन तरह के अलग-अलग जांचकर्ता, 15 महीने की सुनवाई, 46 गवाह, 15 डॉक्टर, चार फॉरेंसिक प्रयोगशालाएं, सात बार गिरफ्तारी और तीन बार रिहाई.
इस सब के बावजूद अब भी रहस्य. पूरा देश एक शहरी परिवार में इस विचित्र अपराध कथा की हर बारीकी पर नजर रखता रहा है. लेकिन, अंत में ऐसा फैसला आया, जो महज दो मिनट में सुना दिया गया और जिससे सवाल ही ज्यादा खड़े हुए.
दो पीड़ित, दो कहानी
दोपहर 12 बजे, 19 नवंबर. वह एकदम साफ नीले आकाश के नीचे कैमरे में मुस्कराती दिखती है. उसकी मां की बाहें उसे दोनों तरफ से घेरे हुई हैं, पिता का हाथ उसके कंधों पर है. वह चमकदार शर्ट में खुले धूप में जीवन और उत्साह से भरपूर दिखती है. 49 वर्षीय दंत चिकित्सक डॉ. राजेश तलवार अपने लैपटॉप पर झुके हैं.
‘‘वह आरुषि है, हम शिमला में थे.’’ यह कहते हुए पुरानी यादों से उनके चेहरे पर हल्की मुस्कराहट आ जाती है. दिल्ली के हौजखास में उनके क्लीनिक में सन्नाटा है, मानो सोफे भी मरीजों का इंतजार करते थक गए हैं, बस एक भजन बज रहा है.
कोलकाता के मनोवैज्ञानिक डॉ. अनिरुद्ध देब कहते हैं, ‘‘अपराध को समझने के लिए पीड़ित को समझे.’’ इस मामले में महत्वपूर्ण वह पीड़ित, 14 साल की खूबसूरत लड़की है.
डीपीएस, नोएडा की कक्षा 9वीं की वह छात्रा अपने छोटे-से जीवन में ही सबका ध्यान खींच रही थी, कोई उसे ‘‘ब्यूटी विद ब्रेन’’ कहता, तो कोई ‘‘फ्रेंड्स डिलाइट’’. उस शर्मीली, बेहद विनम्र लड़की को दोस्तों के साथ घूमने-फिरने, डांस करने, मेलजोल, फोटो खींचने में मजा आता था और वह डॉक्टर बनना चाहती थी.
देब कहते हैं, ‘‘वह हर किशोरी की तरह सामान्य और खुश ही दिखती है. लेकिन जब तक हम यह नहीं जानते कि उसे क्या पसंद-नापसंद था, क्या उसने किसी को नाराज कर दिया था, हम अपने दिमाग में गलत तस्वीर ही बनाएंगे और उससे पूरी कहानी बदल जाएगी.’’
दूसरा पीड़ित 45 वर्षीय यम प्रसाद बंजाडे उर्फ हेमराज था. ‘‘हम उसके बारे में यही जानते हैं कि वफादार घरेलू नौकर था, तलवार परिवार के साथ रहता था, घर की चाबियां उसी के पास होती थीं, शराब नहीं पीता था और उसका परिवार नेपाल में रहता था. उसकी तलवार दंपती के यहां काम करने वाले सभी से दोस्ती थी.’’
ड्राइवर उमेश शर्मा के बयान के मुताबिक 14 मई, 2008 को जब राजेश तलवार ने नकली दांत के एक ऑर्डर में कुछ गड़बड़ी पाकर क्लीनिक में नौकर कृष्णा को नौकरी से निकाल देने की धमकी दी तो हेमराज उसके लिए चिंतित हो गया था.
देब कहते हैं, ‘‘हमारे पास पीड़ितों की दो तरह की अतिरेकी छवियां हैं. या तो हम उनकी सराहना करते हैं या फिर यह ‘‘परिस्थितिजन्य सुराग’’ है कि आरुषि और हेमराज के बीच घातक और गुप्त संबंध थे.’’ मध्यवर्ग की किशोरी और मजदूर वर्ग के वयस्क पुरुष के बीच कथित सेक्स संबंध मध्यवर्गीय नैतिकता की जड़ पर चोट करता है और जनमत को उसी रंग में रंग देता है.
यह ‘‘परिस्थितिजन्य सुरागों’’ से अपराध तक पहुंचने की पूरी कहानी को अलग चश्मे से देखने को मजबूर कर देता है. वे कहते हैं, ‘‘आरुषि-हेमराज मामले में पीड़ितों की मनोवैज्ञानिक स्थिति का पता न होना बड़ी कमी है. लेकिन हमारे देश में ज्यादातर मामलों की जांच-पड़ताल तो ऐसे ही की जाती है.’’
एक रात की कहानी
किसी अपराध विशेषज्ञ के लिए मौका-ए-वारदात के विश्लेषण में कठिनाई संदेह के क्षेत्र-मसलन, उसके भूगोल, समाजशास्त्र, इतिहास, लोकप्रिय संस्कृति, या रोजगार के तौर-तरीकों-की जानकारी न होने से होती है. ऐसे में कोई अपराध विशेषज्ञ अपनी जानकारी के अनुसार ही समझदार या नासमझ हो सकता है. आरुषि-हेमराज मामले में अपराध का विश्लेषण अभी भी परिस्थितिजन्य सबूतों पर ही निर्भर है.
इसलिए समय बीतने के साथ इतने तरह की कहानियां और विश्लेषण आ गए हैं कि इस गुत्थी की हर कड़ी इसकी समीक्षा करने वाले के नजरिए में फिट बैठ जाती है. सीबीआइ के मुताबिक, अपराध में मां-बाप की शिरकत का शर्तिया संकेत इससे मिलता है कि वे यह नहीं बता सके कि आरुषि के कमरे का ताला उस रात खुला क्यों था.
जज श्याम लाल ने भी अपने फैसले में लिखा, ‘‘आरोपियों ने इसका कोई जवाब नहीं दिया कि आरुषि के कमरे का ताला कैसे और किसने खोला.’’ लेकिन नूपुर के मुताबिक, वह उनके जीवन की ‘‘सबसे बड़ी भूल्य’’ थी. ‘‘उस रात शायद मैं चाबी दरवाजे में ही छोड़ आई थी.’’
मौका-ए-वारदात नोएडा के जलवायु विहार में तलवार परिवार का घर था. तलवार परिवार नोएडा के रसूखदार लोगों के मोहल्ले में 1,300 वर्ग फुट के दो बेडरूम के फ्लैट में दूसरी मंजिल पर रहता था. इस फ्लैट में कई दरवाजे और खिड़कियां थीं. उसमें लकड़ी के दरवाजे के साथ लोहे के ग्रिल वाला दरवाजा और फिर एक बाहरी लोहे के ग्रिल वाला दरवाजा लगा था. हेमराज का कमरा फ्लैट के अंदर ही मुख्य द्वार के ठीक बगल में था. छत भी तलवार परिवार की ही थी जिसकी सीढ़ी बाहर के कॉमन एरिया से जाती थी.
आरुषि का कमरा दाईं ओर उसके मां-बाप के कमरे के बगल में था. उसके कमरे में हर रात बाहर से ताला (लैच) लगा दिया जाता था, हालांकि वह कभी भी उसे भीतर से खोल सकती थी. हेमराज के पास आरुषि के कमरे को छोड़कर सभी चाबियां रहती थीं. यहां कुछ सूत्र खुलते हैं जो आपको परेशान करते हैं. तो, उस रात क्या हुआ होगा? जो पता है, वह इस प्रकार हैः
मंगलवार, 15 मई, 2008, रात के 10 बजे से 12.08 बजे तक, जलवायु विहार, नोएडा आरुषि चेतन भगत की नई किताब द 3 मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ में मन रमाने की कोशिश करती है. सिर्फ दो दिन और स्कूल जाना है और फिर जन्मदिन की बड़ी पार्टी है, 19 मई को देर रात तक जश्न चलेगा. उसकी मां कमरे में ‘‘डैडी के लिए इंटरनेट का बटन चालू’’ करने के लिए आती है.
राजेश का लैपटॉप नहीं चल रहा था इसलिए वे आरुषि के कमरे में रखे कंप्यूटर पर कुछ देर तक काम करना चाहते थे. वे कुछ ईमेल भेजते रहे और मां-बेटी बातें करती रहीं. फिर वे चले गए और आरुषि के कमरे के दरवाजे में हर रात की तरह बाहर से ताला लगाना भूल गए.
बुधवार, 16 मई, 2008, सुबह 6 बजे
हर सुबह भारती घंटी बजाती तो हेमराज उसके लिए दरवाजा खोलता था. लेकिन उस सुबह ऐसा नहीं हुआ. वह बार-बार घंटी और लोहे के बाहरी ग्रिल को भी बजा रही थी. आखिरकार नूपुर आंख मलते हुए लकड़ी का दरवाजा खोलती हैं और अंदर के लोहे के ग्रिल से पूछती हैं कि हेमराज कहां है? भारती कहती है, ‘‘मुझे नहीं पता. क्या आप चाबी नीचे फेंक देंगी?’’ जब वह आई तो देखा कि बाहर लोहे का ग्रिल बंद नहीं है.
लेकिन भीतर का ग्रिल दरवाजा बाहर से बंद है. वह जब घर में घुसी तो राजेश और नूपुर रो रहे थे. नूपुर उसके सीने से लग गईं और रोते हुए कहा, ‘‘आरुषि के कमरे में जाओ और देखो कि क्या हुआ.’’ भारती अंदर जाती है और नूपुर जब चादर हटाती है तो भारती को आरुषि के गले पर खून की पतली धार दिखती है
नूपुर रो रही है, ‘‘देखो हेमराज ने क्या किया.’’ भारती पूछती है, ‘‘पड़ोसियों को बुलाऊं?’’ नूपुर कहती है, ‘‘हां, बुलाओ.’’ सुबह 6.50 बजे तक पुलिस आ जाती है और 8 बजे तक मीडिया. आरुषि का शव पोस्टमार्टम के लिए करीब 9 बजे ले जाया जाता है.
16 मई, 2008, सुबह 6.50 बजे के बाद
कुछ व्यक्तियों की भयंकर भूलों ने सामूहिक गड़बडिय़ों को बढ़ावा दिया. मसलन, उत्तर प्रदेश पुलिस के फोटोग्राफर और फिंगर प्रिंट कलेक्टर चुन्नीलाल गौतम की कहानी पर गौर कीजिए. गौतम ने उस सुबह अनगिनत तस्वीरें और उंगलियों के निशान की तस्वीरें खींचीं. फिर भी 24 में से 22 फिंगर प्रिंट की तस्वीरें धुंधली हैं, उनके 23 फोटो निगेटिव से मेल नहीं खाते.
उनके पास छत पर खून से सने फुटप्रिंट की कोई तस्वीर नहीं है, जहां हेमराज का शव मिला क्योंकि वहां ‘‘काफी भीड़’’ थी और खून से सनी ह्विस्की के गिलास के फिंगर प्रिंट्स की तस्वीरें ‘‘किसी के भी’’ फिंगर प्रिंट्स से नहीं मिलतीं. जहां अपराध हुआ वहां की साफ-सफाई बिना सलवट वाली बेड शीट, आरुषि के गुप्तांगों की सफाई के बारे में आश्चर्यजनक रूप से वह मार्च 2010 तक खामोश रहता है. उसके नए दावों ने उसे सबूत मिटाए जाने के प्रमुख गवाहों में शामिल कर दिया.
17 मई की दोपहर, छत पर
एक अवकाश प्राप्त डीएसपी के.के. गौतम पड़ोसी तलवार दंपती के यहां जाते हैं. एक पुलिसवाले के अंदेशे पर वे फ्लैट की पड़ताल करने की सोचते हैं. सवाल उठता है कि हेमराज के कमरे में सुला वाइन, किंगफिशर बियर और स्प्राइट की तीन बोतलें क्यों पड़ी हैं? तीन ग्लासों का मामला क्या है? हेमराज का बिस्तर ऐसे मुड़ा-तुड़ा क्यों है कि मानो तीन लोग उस पर बैठे हों? हेमराज के बाथरूम में इतनी पेशाब क्यों है?
वे खून के धब्बे लगी सीढिय़ों से छत पर जाते हैं. वहां यह देखकर हैरान रह जाते हैं कि छत पर खून से सने हाथ के छाप हैं, कूलर में खून जैसा लाल पानी है और कोने में सड़ांध मारता एक शव पड़ा है, सिर पर वैसे ही निशान हैं जैसे आरुषि के सिर पर थे और दोनों का गला भी एक ही तरीके से काटा गया था. शरीर पर घावों के कई निशान हैं. वे कहते हैं, ‘‘मई की गर्मी में दो दिन तक कड़ी धूप में रहने के बाद शव की ऐसी हालत थी कि राजेश भी हेमराज की पहचान नहीं कर पाए.’’
उलझती चली गई जांच
23 मई की सुबह पुलिस आइजी गुरदर्शन सिंह ने ऐलान किया कि यह ‘‘ऑनर किलिंग’’ है. उन्होंने खचाखच भरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘‘पिता और बेटी दोनों के चरित्र कमजोर थे.’’ उन्होंने कहा कि हत्या की रात राजेश देर रात तक जगे रहे क्योंकि इंटरनेट सुबह 3 बजे तक चल रहा था. राजेश ने आरुषि के कमरे में आवाजें सुनीं, हेमराज को आरुषि के बिस्तर पर पाया और गुस्से में दोनों को गोल्फ स्टिक से मौत के घाट उतार दिया.
नूपुर ने इस अपराध में उनकी मदद की. दोनों ने मिलकर दोनों की गर्दन काटी, हेमराज के शव को घसीटकर छत पर ले गए, मौका-ए-वारदात की साफ-सफाई की, सबूत मिटाए. एम्स में क्लीनिकल मनोचिकित्सा की प्रोफेसर डॉ. मंजू मेहता कहती हैं, ‘‘अपराध के मामले में जैसा सोचते हैं वैसा कई बार होता नहीं है.’’ इस मामले में सबसे बड़ी समस्या मां-बाप के बारे में बनी सोच रही है.
हत्या के फौरन कुछ दिनों बाद तलवार दंपती के व्यवहार को पुलिस और आम लोगों ने असामान्य पाया. जब कई दिनों तक नूपुर एकदम मौन थीं, टीवी चैनलों ने चीखना शुरू किया कि ‘‘मां, तुम मौन क्यों हो?’’ तब उन्होंने अंततः बोलने का मन बनाया तो उनकी खामोशी पर टिप्पणी की गईः ‘‘वह एकदम शांत, भावुकता से दूर हैं.’’
‘‘वे रोई भी नहीं.’’ मेहता कहते हैं, ‘‘यह ऐसा दाग है कि मां-बाप कभी भुला नहीं सकते. लेकिन दुख जताने का तरीका तो व्यक्तिगत मामला होता है. यह संस्कार का भी मामला है. दुनिया भर में दुख के बारे में हर समाज के विचार अलग-अलग हैं.’’
राजेश और नूपुर सफल दंत चिकित्सक रहे हैं, उन्होंने खूब पैसा कमाया, अच्छी जिंदगी जी. राजेश नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में डेंटल विभाग के प्रमुख थे और आइटीएस डेंटल कॉलेज में पढ़ाते भी थे. उनका दिल्ली के हौज खास में एक क्लीनिक भी था. नूपुर दोनों जगहों पर प्रैक्टिस करती थीं. नूपुर के मां-बाप भी थोड़ी दूर पर ही रहते थे. नूपुर कॉस्मोपोलिटन महाराष्ट्रीयन परिवार से हैं.
कनाडा में पत्रकार उनकी एक रिश्तेदार श्रीपराडकर कहती हैं, ‘‘हममें से कई ने अपने समाज से बाहर शादी की है. नूपुर ने ही 1989 में एक पंजाबी से शादी करके इसकी शुरुआत की.’’ राजेश के पिता देश के प्रसिद्ध कार्डियोथोरैसिक सर्जन थे जबकि मां गृहिणी थीं. नूपुर के कुछ साल इंग्लैंड में बीते जब उनके पिता वायु सेना के एक प्रसिद्ध युद्ध नायक लंदन के उच्चायोग में तैनात थे.
कभी न खत्म होने वाला संघर्ष
पारिवारिक तस्वीरों में राजेश और नूपुर प्रसन्न दंपती की तरह नजर आते हैं. जून 2008 तक दुनिया उन्हें जेल जाते, नार्को एनालिसिस और लाई डिटेक्शन जैसी जांच के लिए आते-आते देखती है. 31 मई को केस सीबीआइ के पास आता है. 11 जुलाई, 2008 को राजेश रिहा कर दिए जाते हैं और नौकरों को अभियुक्त मान लिया जाता है.
सीबीआइ के संयुक्त निदेशक अरुण कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की शुरुआत करते हुए कहा, ‘‘तलवार दंपती के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं हैं, कृष्णा ने हमें गुमराह किया.’’ उनकी टीम ने तलवार दंपती के फ्लैट की नंगी आंखों से न दिखने वाले खून और वीर्य के दाग का पता लगाने के लिए पॉलीलाइट जैसे वैज्ञानिक उपकरणों के साथ पड़ताल की. वे कहते हैं, ‘‘शव को घसीटकर छत पर ले जाने का कोई निशान नहीं मिला.’’
आरुषि के कमरे में हेमराज के खून या डीएनए का कोई निशान नहीं मिला. तलवार दंपती के बेडरूम में एसी चलाकर किए गए डमी साउंड टेस्ट में कुछ भी सुनाई नहीं दिया. नूपुर और राजेश रात के कपड़े ही सुबह भी पहने हुए थे. और मौका-ए-वारदात की सफाई नोएडा पुलिस की इजाजत के बाद की गई.
लेकिन सितंबर, 2009 में अरुण कुमार इस मामले से हटा दिए गए. उनकी जगह देहरादून और लखनऊ स्थित नई सीबीआइ टीम ने ले ली, जिसके जांच अधिकारी ए.जी.एल. कौल थे. 15 दिन के भीतर मामले में महत्वपूर्ण बदलाव आ गए रू पोस्टमॉर्टम सुराग से लेकर अपराध के नए हथियार और मौका-ए-वारदात की साफ-सफाई का मामला सामने आया.
आखिरकार सीबीआइ ने मामला बंद करने की अर्जी अदालत में दाखिल की जिसमें राजेश को मुख्य संदिग्ध माना गया लेकिन साबित करना मुश्किल बताया गया क्योंकि ‘‘स्पष्ट मकसद’’ और ‘‘घटना के सिलसिले’’ का ठीक-ठीक पता नहीं चल पा रहा है. तीन घरेलू नौकरों को बरी कर दिया गया.
तलवार दंपती ने विरोध में अर्जी दाखिल की और रिपोर्ट के नतीजे के हर बिंदु को चुनौती देकर नए सिरे से जांच की मांग की. नतीजा यह हुआ कि तलवार दंपती के खिलाफ ही मुकदमा दायर कर लिया गया. नूपुर जो अब तक अभियुक्त नहीं थीं, उन्हें भी अभियुक्त बना दिया गया.
11 जून, 2012-12 नवंबर, 2013 सीबीआइ अदालत
जब डॉक्टर एक-दूसरे से सहमत न हों, अपने बयान बदल दें और ठोस वैज्ञानिक तथ्यों को बदले मन की बातें करने लगें तो क्या होता है? आरुषि का पोस्टमार्टम करने के लिए बुलाए गए सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सुनील दोहरे ने मई, 2008 से लेकर सितंबर, 2009 के बीच पांच बार अपना बयान बदला.
वे यह नहीं बता पाए कि पहले उन्होंने गुप्तांगों में ‘‘कोई असामान्य स्थिति न मिलने’’ की बात कही थी और फिर यह क्यों कहा कि लड़की के गुप्तांग ‘‘असामान्य रूप से फैले’’ हुए थे, या उन्होंने पोस्टमॉर्टम में गोल्फ स्टिक या स्कालपेल (ऑपरेशन करने का ब्लेड या उस्तरा) से चोट की बात क्यों नहीं की. एम्स में फॉरेंसिक साइंस के पूर्व प्रमुख डॉ. आर.के. शर्मा के मुताबिक, गोल्फ स्टिक या स्कालपेल से ऐसे घाव नहीं हो सकते. वे कहते हैं, ‘‘स्कालपेल इतना छोटा औजार है कि वह चमड़े का एक स्तर ही काट पाता है. उससे गहरा घाव नहीं होता.’’
हेमराज का पोस्टमॉर्टम करने वाले डॉ. नरेश राज ने हेमराज की गर्दन पर सर्जिकल यंत्रों से काटे जाने की बात पहली दफा अक्तूबर, 2009 में की. लेकिन उनकी यह बात पोस्टमॉर्टम करने के डेढ़ साल बाद आई कि हेमराज के लिंग में सूजन थी, जिससे पता चलता है कि हत्या के पहले उसने यौन संबंध बनाए थे. वे कहते हैं कि उनके दावे ‘‘वैवाहिक पुरुष के अनुभव’’ पर आधारित हैं.
और मामला चलता रहा
त्रासद हत्याओं की सचाई की तलाश अनगिनत अटकलबाजियों, अपर्याप्त जांच-परख, बयानों के बदलने और जांच एजेंसियों में आपसी होड़ की वजह से अटकती रही. वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन के मुताबिक, यह मामला वाकई बेमिसाल है कि कैसे ‘‘गैर-जिम्मेदार जांच-पड़ताल, स्थापित सुरागों के बदले सार्वजनिक धारणाओं पर भरोसा, और वास्तविक सबूतों के बिना सार्वजनिक धारणाओं के आधार पर नतीजे निकालने’’ की कोशिश की गई है.
उनके मुताबिक इससे आपराधिक न्याय व्यवस्था के धराशायी हो जाने का खतरा है. लेकिन इसका असर और व्यापक है, जैसा कि पराडकर कहती हैं, ‘‘सीबीआइ ने आरुषि की हत्या की गुत्थी सुलझाने के दौरान एक परिवार की हत्या कर दी.’’ राजेश के भाई दिनेश तलवार के जीवन का अब सिर्फ एक ही मकसद है कि अपने छोटे भाई के जीवन के लिए संघर्ष करना.
उनकी कानूनी टीम 60 दिनों में ऊपरी अदालत में अपील की तैयारी कर रही है, ताकि ‘‘आरुषि से दाग मिटे.’’ यह लंबी लड़ाई का पहला कदम होगा. इस बीच आरुषि की करीबी दोस्त राजेश्वरी और फिजा चरित्र-हत्या के खिलाफ प्रदर्शन की तैयारी कर रही हैं. फेसबुक पर 55,000 लोगों ने ‘‘आरुषि तलवार को न्याय दो’’ की मुहिम शुरू कर दी है.
लेकिन मां-बाप के बारे में क्या है? वे दाग लगने के कई दौर देख चुके हैं. वे हमारी उत्सुकता जगा चुके हैं. वे अपने को जांच के लिए प्रस्तुत कर चुके हैं. उन्हें पहले ही ‘‘राक्षस मां-बाप’’ बताया जा चुका है और अब ‘‘मानव इतिहास में एक बुरा अपवाद’’ बताया जा रहा है.
उन्होंने यह सब चुपचाप सहा है. फिर भी जब 25 नवंबर को सीबीआइ जज श्याम लाल ने उन्हें दोषी ठहराया तो पांच साल का दुख और पीड़ा आंखों से बह निकली. फिलहाल हमारे दौर के सबसे सनसनीखेज और विवादास्पद हत्याकांड पर परदा गिर गया है. लेकिन इसके अंत का अभी इंतजार कीजिए.