अहमदाबाद में जुलाई 2008 को सीरियल बम ब्लास्ट के मामले में स्पेशल कोर्ट ने दोषियों की सजा का ऐलान कर दिया. कोर्ट ने 49 में से 38 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है, जबकि 11 दोषियों को आखिरी सांस तक कैद में रहने की सजा सुनाई गई है. इतिहास में ये पहली बार है जब एक साथ इतने सारे दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई है.
बात करें अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट की तो, एक के बाद एक 21 धमाकों से पूरा शहर दहल गया था. इंडियन मुजाहिदीन ने ईमेल कर इन धमाकों की जिम्मेदारी ली थी. 70 मिनिट में अस्पताल समेत कई जगहों पर धमाके की वजह से चारों तरफ खून ही खून नजर आ रहा था. इस बम धमाकों के पीछे मास्टरमाइंड को पकड़ना एक चुनौती बन चुका था. हालांकि यह पहली बार नहीं है, इससे पहले 2002 में देश में बम धमाकों की शुरुआत हुई थी. कलकत्ता, मुबई, वाराणसी, जयपुर, बेंगलुरु जैसे शहरों में पहले भी धमाके हो चुके थे.
अहमदाबाद में धमाकों के बाद सभी एजेंसी इसकी जांच में जुटी हुई थीं. अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को इस बम धमाके की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी गई थी. जिसमें ज्वाइंट पुलिस कमिशनर के तौर पर आशीष भाटिया और डिप्टी पुलिस कमिशनर के तौर पर Abhay Chudasma थे.
पहली लीड तलाश रहे थे जांच अधिकारी
सभी अधिकारी अपने पास मौजूद सभी तरह के सोर्स लगा रहे थे कि कहीं से इस ब्लास्ट को लेकर एक लीड मिल जाए. क्योंकि पुलिस अधिकारी मानते हैं कि अगर एक मजबूत लीड मिलती है तो उसके बाद जांच उसके अंत तक पहुंचती ही पहुंचती है. लेकिन कहीं से भी एक भी लीड मिल नहीं पा रही थी. उस वक्त इस मामले की लीड देने वाले पुलिस के दो कॉन्स्टेबल थे. याकूब अली पटेल और दिलीप ठाकुर.
ब्लास्ट के बाद जो घायल थे उन्हें अस्पताल में लाया गया. लेकिन अस्पताल में भी एक बड़ा ब्लास्ट हुआ जो कि गाड़ी के अंदर सिलिंडर के जरिए किया गया. पुलिस को इस गाड़ी की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. पुलिस लगातार प्रयास कर रही थी कि ये गाड़ी किसकी है और कहां से आयी.
भरूच से फोन कॉल ने दी उम्मीद
क्राइम ब्रांच में देश में चोरी हुई सभी गाड़ियों की जानकारी इकट्ठा की गई, लेकिन इस गाड़ी की कोई जानकारी क्राइम ब्रांच को नहीं मिली थी. लेकिन Abhay Chudasma जो कि अपनी ह्यूमन इंटेलिजेंस के लिए जाने जाते हैं, उन्हें अचानक भरुच के एक कॉन्स्टेबल का फोन आता है, जिसका नाम याकूब अली था. याकूब अली ने अभय को पूछा कि सर जिस गाड़ी में ब्लास्ट हुआ है उसकी कोई जानकारी मिली है, हालांकि Abhay Chudasma को लगा कि एक कॉन्स्टेबल ये सवाल क्यों कर रहा है.
याकूब ने तुरंत ही कहा कि सर मैंने ब्लास्ट केस के फोटो देखे जो कार दोनों अस्पताल में ब्लास्ट के लिए इस्तेमाल हुई हैं, वो मैंने भरुच में देखी हैं. अभय इस बात को सुन कर चौंक गए. कहीं से कोई जानकारी नहीं मिल रही थी, ऐसे में इतनी बड़ी जानकारी मिलना बड़ी बात थी. याकुब ने Abhay Chudasma से कहा सर मुझे लगता है कि, ये दोनों गाड़ी मैंने भरुच में देखी थीं. कॉन्स्टेबल ने आगे कहा कि सर भरुच में एक गुलामभाई रहते हैं, मैं एक दिन उनके घर के पास से निकल रहा था तब मुझे लगता है कि ये दोनों गाड़ियां उनकी पार्किंग में मौजूद थीं.
ऐसे हासिल हुई पहली लीड
Abhay Chudasma ने कहा तुंरत जांच कर बताओ कि ये कार किसकी है और कौन लेकर आया था. याकूब तुरंत ही गुलामभाई के घर गए. उनके हाथ में एक पुराना अखबार भी था. कॉन्स्टेबल ने गुलामभाई को अखबार में छपी गाड़ी की तस्वीर दिखाई और पूछा कि इस गाड़ी को पहचानते हैं?
गुलामभाई भी तस्वीर को देख चौंक गए और कहा कि ये कर उनके घर पर दो-तीन दिन के लिए किराये पर रुकने वाले लोगों की है. याकूब ने पूरा मामला समझाया. गुलामभाई का नंबर लिख याकूब तुरंत पुलिस स्टेशन आया और डीसीपी अभय को ये सारी जानकारी दी. याकूब अली को पता नहीं था की उसकी ये जानकारी कितनी महत्वपूर्ण हैं. जिससे क्राइम ब्रांच को जांच की पूरी लीड हासिल हुई.
तो वहीं दिलीप ठाकुर ने 26 जुलाई 2008 जब ब्लास्ट हुआ तो उस वक्त जितने भी नंबर से फोन किए गए थे. उस नंबर का एक के बाद एक सर्विलांस किया. लाखों फोन नंबर को दिलीप ठाकुर ने मैन्युली चेक किया और ऐसे कुछ संदिग्ध नंबर क्राइम ब्रांच के अधिकारियों के दिए, जिससे इस पूरे मामले की लीड लेते हुए क्राइम ब्रांच लखनऊ में अबु बसर तक पहुंची थी.