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NCRB: दिल्ली में हर दिन औसतन 7 लोग करते हैं आत्महत्या

एनसीआरबी के आंकड़ो के मुताबिक खुदकुशी की एक बड़ी वजह पारिवारिक परेशानी भी है. हालांकि डेटा में इस बात का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है कि कितने लोगों ने खुदकुशी की कोशिश की. पारिवारिक परेशानी में अलग-अलग तरह के कारण निकल कर सामने आ रहे हैं.

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इस साल कोरोना से डरकर भी लोगों ने खुदकुशी की है
इस साल कोरोना से डरकर भी लोगों ने खुदकुशी की है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • NCRB ने जारी किए आत्महत्या के आंकड़े
  • तनाव में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ी
  • इस साल कोरोना से डरकर भी जान दे रहे लोग

देश की राजधानी दिल्ली में हर दिन औसतन 7 लोग खुदकुशी करते हैं. साल 2019 के ये आंकड़े एनसीआरबी ने जारी किए हैं. इनमें सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मानसिक रोगों की वजह से आत्महत्या करने वालों की संख्या में दर्ज की गई है. आंकड़ों के मुताबिक मानसिक रोग की वजह से आत्महत्या करने वालों की संख्या 2018 के मुकाबले 2019 में ढाई गुना बढ़ गई है. जबकि बाकी स्वास्थ्य कारणों से खुदकुशी करने वालों के मामलों में काफी कमी आई है. हालांकि खुदकुशी के कुल मामले लगभग स्थिर बने हुए हैं.

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आंकड़ो के मुताबिक खुदकुशी की एक बड़ी वजह पारिवारिक परेशानी भी है. हालांकि इस डेटा में इस बात का बिल्कुल भी जिक्र नहीं है कि कितने लोगों ने खुदकुशी की कोशिश की. पारिवारिक परेशानी में अलग-अलग तरह के कारण निकल कर सामने आ रहे हैं. इनमें घरेलू झगड़ा, संपत्ति विवाद या फिर छोटे-मोटे झगड़े को लेकर भी कभी-कभी खुदकुशी का कदम उठाने की घटनाएं भी शामिल हैं.

हालांकि दिल्ली पुलिस इस तरीके का कोई डेटा जारी नहीं करती है. पिछले साल दिल्ली में मानसिक बीमारी की वजह से करीब 47 लोगों ने खुदकुशी कर ली थी. राजधानी दिल्ली में जहां एक तरफ हर दिन लगभग 7 लोग अलग-अलग कारणों से खुदकुशी कर ले रहे हैं तो वहीं चार लोगों की मौत सड़क दुर्घटना में हो रही है.

अगर हम 2018 और 19 के आंकड़ों की बात करें तो 2018 में जहां पारिवारिक कारणों की वजह से 787 लोगों ने खुदकुशी की थी. वही आंकड़े 2019 में बढ़कर 825 पर पहुंच गए. जबकि अगर हम बात बीमारी की करते हैं तो जहां वर्ष 2018 में 218 लोगों ने बीमारी की वजह से खुदकुशी की थी. वह संख्या 2019 में घटकर 130 रह गई. बेरोजगारी की अगर हम बात करें तो 2018 में 98 लोगों ने खुदकुशी की थी, जबकि 2019 में 118 लोगों ने जान दी.

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जबकि प्रोफेशनल करियर की बात करें तो हमें 2018 के मुकाबले 2019 में काफी कमी देखने को मिली. 2018 में प्रोफेशनल करियर में समस्या की वजह से जहां 98 लोगों ने खुदकुशी की तो वहीं साल 2019 में ये आंकड़ा 35 का है.

खुदकुशी की बड़ी वजह एजुकेशन और बेरोजगारी भी है. बेरोजगारी के कारण साल 2018 की तुलना में 2019 में ज्यादा खुदकुशी की वारदातें सामने आई हैं. जानकारी के मुताबिक 2018 में जहां 98 लोगों ने बेरोजगारी से तंग आकर जान दी. वहीं यह संख्या 2019 में बढ़कर 118 हो गई.
 
आंकड़ों को देखने से यह भी पता लगता है कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष ज्यादा खुदकुशी करते हैं. साल 2018 में जहां 1779 पुरुषों ने खुदकुशी की, वहीं महिलाओं की यह संख्या सिर्फ 747 थी. 2019 में 1758 पुरुषों ने खुदकुशी की तो महिलाओं की संख्या 768 थी. 

अगर सारी बीमारियों को मिला कर बात की जाए तो खुदकुशी के मामलों में काफी कमी आई है. इनमें ऐसी बीमारियां जो लंबे समय से रहती हैं, शारीरिक रूप से काफी परेशान करने वाली होती हैं या दिमागी बीमारी होती है. तो ऐसी खुदकुशी के मामले में 48 परसेंट की कमी आई है. 2018 में ऐसे 200 मामले थे, जो 2019 में घटकर 130 रह गए. 

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मनोचिकित्सक समीर पारेख का कहना है कि खुदकुशी को दुनिया के टॉप पेन किलर में से एक माना जाता है. अगर बात यंग पॉपुलेशन की करें तो यह तीसरे नंबर पर मौत का कारण बनती है. समीर का कहना है कि इसे रोकने का लाइफ स्किल स्कूलों और कॉलेजों में भी सिखाना चाहिए. लोगों को बात करनी चाहिए. जैसे जुकाम-खांसी होने पर हम डॉक्टर के पास जाते हैं. वैसे ही अगर मानसिक परेशानी हो तो लोगों से बात करनी चाहिए और डॉक्टर के पास जाना चाहिए. इससे नकारात्मकता दूर होगी. अगर आदमी बात नहीं करेंगे तो अंदर से इंसान नकारात्मक हो जाएगा. फिर वह इस तरीके के कदम उठा सकता है.

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 80% खुदकुशी करने वाले लोग 12वीं तक ही पढ़े होते हैं. खुदकुशी के सभी मामलों में 10 परसेंट संख्या दिहाड़ी मजदूरों की है. खुदकुशी करने वालों में हर चार में से तीन फंदा लगाकर ही खुदकुशी करते हैं.

साल 2020 का अभी कोई डाटा उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस साल ऐसे भी मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें लोग कोरोना के डर से भी खुदकुशी कर रहे हैं. इस वर्ष कुछ लोगों ने कारोबार में नुकसान होने की वजह से भी आत्महत्या की है.

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