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CrPC Section 122: सिक्योरिटी देने में गलती होने पर कारावास का प्रावधान करती है धारा 122

दंड प्रक्रिया संहिता में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति, जिसे धारा 106 या धारा 117 के अधीन सिक्योरिटी जमा करने का आदेश दिया गया है. और वह तय तारीख पर सिक्योरिटी नहीं देता तो वह कारावास का हकदर होगा.

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सिक्योरिटी देने में चूक हो जाने से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा
सिक्योरिटी देने में चूक हो जाने से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सिक्योरिटी देने में चूक हो जाना बताती है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति, जिसे धारा 106 या धारा 117 के अधीन सिक्योरिटी जमा करने का आदेश दिया गया है. और वह तय तारीख पर सिक्योरिटी नहीं देता तो वह कारावास का हकदर होगा. CrPC की धारा 122 (Section 122) इस विषय को लेकर विस्तार से जानकारी देती है. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी की धारा 122 इस बारे में क्या बताती है?

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सीआरपीसी की धारा 122 (CrPC Section 122)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 122 (Section 122) में सिक्योरिटी जमा करने की प्रक्रिया के दौरान चूक होने पर कारावास की सजा के बारे में बताया गया है. CrPC की धारा 122 के अनुसार-

(1) (क) यदि कोई व्यक्ति, जिसे धारा 106 या धारा 117 के अधीन प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है. ऐसी प्रतिभूति उस तारीख को या उस तारीख के पूर्व, जिसको वह अवधि, जिसके लिए ऐसी प्रतिभूति दी जानी है, प्रारंभ होती है, नहीं देता है, तो वह इसमें इसके पश्चात् ठीक आगे वर्णित दशा के सिवाय कारागार में भेज दिया जाएगा अथवा यदि वह पहले से ही कारागार में है तो वह कारागार में तब तक निरुद्ध रखा जाएगा जब तक ऐसी अवधि समाप्त न हो जाए या जब तक ऐसी अवधि के भीतर वह उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को प्रतिभूति दे दे जिसने उसकी अपेक्षा करने वाला आदेश दिया था.

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(ख) यदि किसी व्यक्ति द्वारा धारा 117 के अधीन मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसरण में परिशांति बनाए रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित बंधपत्र निष्पादित कर दिए जाने के पश्चात्, उसके बारे में ऐसे मजिस्ट्रेट या उसके पद-उत्तरवर्ती को समाधानप्रद रूप में यह साबित कर दिया जाता है कि उसने बंधपत्र का भंग किया है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या पद-उत्तरवर्ती, ऐसे सबूत के आधारों को लेखबद्ध करने के पश्चात् आदेश कर सकता है कि उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाए और बंधपत्र की अवधि की समाप्ति तक कारागार में निरुद्ध रखा जाए तथा ऐसा आदेश ऐसे किसी अन्य दंड या समपहरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा जिससे कि उक्त विधि के अनुसार दायित्वाधीन हो.
 
(2) जब ऐसे व्यक्ति को एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए प्रतिभूति देने का आदेश मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया है, तब यदि ऐसा व्यक्ति यथापूर्वोक्त प्रतिभूति नहीं देता है तो वह मजिस्ट्रेट यह निदेश देते हुए वारंट जारी करेगा कि सेशन न्यायालय का आदेश होने तक, वह व्यक्ति कारागार में निरुद्ध रखा जाए और वह कार्यवाही सुविधानुसार शीघ्र ऐसे न्यायालय के समक्ष रखी जाएगी.

(3) ऐसा न्यायालय ऐसी कार्यवाही की परीक्षा करने के और उस मजिस्ट्रेट से किसी और इत्तिला या साक्ष्य की, जिसे वह आवश्यक समझे, अपेक्षा करने के पश्चात् और संबद्ध व्यक्ति को सुने जाने का उचित अवसर देने के पश्चात् मामले में ऐसे आदेश पारित कर सकता है जो वह ठीक समझे, परंतु वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए कोई व्यक्ति प्रतिभूति देने में असफल रहने के कारण कारावासित किया जाता है, तीन वर्ष से अधिक की न होगी.

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(4) यदि एक ही कार्यवाही में ऐसे दो या अधिक व्यक्तियों से प्रतिभूति की अपेक्षा की गई है, जिनमें से किसी एक के बारे में कार्यवाही सेशन न्यायालय को उपधारा (2) के अधीन निर्देशित की गई है, तो ऐसे निर्देश में ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य व्यक्ति का भी, जिसे प्रतिभूति देने के लिए आदेश दिया गया है, मामला शामिल किया जाएगा और उपधारा (2) और (3) के उपबंध उस दशा में ऐसे अन्य व्यक्ति के मामले को भी इस बात के सिवाय लागू होंगे कि वह अवधि (यदि कोई हो) जिसके लिए वह कारावासित किया जा सकता है, उस अवधि से अधिक न होगी, जिसके लिए प्रतिभूति देने के लिए उसे आदेश दिया गया था.
 
(5) सेशन न्यायाधीश उपधारा (2) या उपधारा (4) के अधीन उसके समक्ष रखी गई किसी कार्यवाही को स्वविवेकानुसार अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश को अंतरित कर सकता है और ऐसे अंतरण पर ऐसा अपर सेशन न्यायाधीश या सहायक सेशन न्यायाधीश ऐसी कार्यवाही के बारे में इस धारा के अधीन सेशन न्यायाधीश की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है.

(6) यदि प्रतिभूति जेल के भारसाधक अधिकारी को निविदत्त की जाती है तो वह उस मामले को उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट को, जिसने आदेश किया, तत्काल निर्देशित करेगा और ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट के आदेशों की प्रतीक्षा करेगा.

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(7) परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावास सादा होगा.

(8) सदाचार के लिए प्रतिभूति देने में असफलता के कारण कारावास, जहां कार्यवाही धारा 108 के अधीन की गई है, वहां सादा होगा और, जहां कार्यवाही धारा 109 या धारा 110 के अधीन की गई है वहां, जैसा प्रत्येक मामले में न्यायालय या मजिस्ट्रेट निदेश दे, कठिन या सादा होगा.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 121: सिक्योरिटी को नामंजूर करने की शक्ति का प्रावधान करती है धारा 121 

क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.

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