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CrPC Section 141: आदेश को बेअसर करने की प्रक्रिया बताती है सीआरपीसी की ये धारा

सीआरपीसी की धारा 141 (Section 141) में मजिस्ट्रेट के आदेश अंतिम कर दिए जाने पर प्रक्रिया और उसकी अवज्ञा के परिणाम के बारे में जानकारी दी गई है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 141 इस विषय पर क्या बताती है?

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आदेश को निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया से जुड़ी है ये धारा
आदेश को निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया से जुड़ी है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • आदेश को निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया से जुड़ी है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में कोर्ट (Court) और मजिस्ट्रेट की शक्तियों (Power of Magistrate) से संबंधित की कई प्रावधान (Provision) मौजूद हैं. ऐसे ही सीआरपीसी की धारा 141 (Section 141) में मजिस्ट्रेट के आदेश अंतिम कर दिए जाने पर प्रक्रिया और उसकी अवज्ञा के परिणाम के बारे में जानकारी दी गई है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 141 इस विषय पर क्या बताती है?

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सीआरपीसी की धारा 141 (CrPC Section 141)

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 141 (Section 141) में आदेश को निष्प्रभावी करने की प्रक्रिया और अवज्ञा के परिणाम को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है. CrPC की धारा 141 के अनुसार-

(1) जब धारा 136 या धारा 138 के अधीन आदेश अंतिम कर दिया जाता है तब मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को, जिसके विरुद्ध वह आदेश दिया गया है, उसकी सूचना देगा और उससे यह भी अपेक्षा करेगा कि वह उस आदेश द्वारा निदिष्ट कार्य इतने समय के अंदर करे, जितना सूचना में नियत किया जाएगा और उसे इत्तिला देगा कि अवज्ञा करने पर वह भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 188 द्वारा उपबंधित शास्ति का भागी होगा.

(2) यदि ऐसा कार्य नियत समय के अंदर नहीं किया जाता है तो मजिस्ट्रेट उसे करा सकता है और उसके किए जाने में हुए खर्चों को किसी भवन, माल या अन्य संपत्ति के, जो उसके आदेश द्वारा हटाई गई है, विक्रय द्वारा अथवा ऐसे मजिस्ट्रेट की स्थानीय अधिकारिता के अंदर या बाहर स्थित उस व्यक्ति की अन्य जंगम संपत्ति के करस्थम् और विक्रय द्वारा वसूल कर सकता है और यदि ऐसी अन्य संपत्ति ऐसी अधिकारिता के बाहर है तो उस आदेश से ऐसी कुर्की और विक्रय तब प्राधिकृत होगा जब वह उस मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकित कर दिया जाता है जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर कुर्क की जाने वाली संपत्ति पाई जाती है.

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(3) इस धारा के अधीन सद्भावपूर्वक की गई किसी बात के बारे में कोई वाद न होगा.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 140: मजिस्ट्रेट के लिखित निर्देश देने की शक्ति से संबंधित है धारा 140 

क्या है सीआरपीसी (CrPC)

सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

1974 में लागू हुई थी CrPC

सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.

 

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