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CrPC Section 147: जल या जमीन के अधिकार से जुड़े विवाद पर लागू होती है ये धारा

सीआरपीसी (CrPC) की धारा 147 के तहत पानी और जमीन से जुड़े अधिकार के विवाद को लेकर प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 147 इस विषय को लेकर क्या कहती है?

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भूमि या जल के अधिकार से जुड़ी है सीआरपीसी की ये धारा
भूमि या जल के अधिकार से जुड़ी है सीआरपीसी की ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भूमि या जल के अधिकार से जुड़ी है सीआरपीसी की ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में आम आदमी की जिंदगी से सरोकार रखने वाले मामलों से जुड़े प्रावधान भी मिलते हैं. इसी श्रृंखला में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 147 के तहत पानी और जमीन से जुड़े अधिकार के विवाद को लेकर प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 147 इस विषय को लेकर क्या कहती है?

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सीआरपीसी की धारा 147 (CrPC Section 147)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 147 (Section 147) भूमि या जल के उपयोग के अधिकार से संबद्ध विवाद को लेकर कानूनी प्रावधान किया गया है. CrPC की धारा 147 के अनुसार-

(1) जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट का, पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट से या अन्य इत्तिला पर, समाधान हो जाता है कि उसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के बारे में, चाहे ऐसे अधिकार का दावा सुखाचार के रूप में किया गया हो या अन्यथा, विवाद वर्तमान है जिससे परिशांति भंग होनी संभाव्य है, तब वह अपना ऐसा समाधान होने के आधारों का कथन करते हुए और विवाद से संबद्ध पक्षकारों से यह अपेक्षा करते हुए लिखित आदेश दे सकता है कि वे विनिर्दिष्ट तारीख और समय पर स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके न्यायालय में हाजिर हों और अपने-अपने दावों का लिखित कथन पेश करें.

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(2) मजिस्ट्रेट तब इस प्रकार पेश किए गए कथनों का परिशीलन करेगा, पक्षकारों को सुनेगा, ऐसा सब साक्ष्य लेगा जो उनके द्वारा पेश किया जाए, ऐसे साक्ष्य के प्रभाव पर विचार करेगा, ऐसा अतिरिक्त साक्ष्य, यदि कोई हो, लेगा जो वह आवश्यक समझे और यदि संभव हो तो विनिश्चय करेगा कि क्या ऐसा अधिकार वर्तमान है; और ऐसी जांच के मामले में धारा 145 के उपबंध यावतशक्य लागू होंगे.

(3) यदि उस मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि ऐसे अधिकार वर्तमान हैं तो वह ऐसे अधिकार के प्रयोग में किसी भी हस्तक्षेप का प्रतिषेध करने का और यथोचित मामले में ऐसे किसी अधिकार के प्रयोग में किसी बाधा को हटाने का भी आदेश दे सकता है:

परंतु जहाँ ऐसे अधिकार का प्रयोग वर्ष में हर समय किया जा सकता है वहां जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग उपधारा (1) के अधीन पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला की, जिसके परिणामस्वरूप जांच संस्थित की गई है. प्राप्ति के ठीक पहले तीन मास के अंदर नहीं किया गया है अथवा जहां ऐसे अधिकार का प्रयोग विशिष्ट मौसमों में हो या विशिष्ट अवसरों पर ही किया जा सकता है वहां जब तक ऐसे अधिकार का प्रयोग ऐसी प्राप्ति के पूर्व के ऐसे मौसमों में से अंतिम मौसम के दौरान या ऐसे अवसरों में से अंतिम अवसर पर नहीं किया गया है, ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जाएगा.

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(4) जब धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम पड़ता है कि विवाद भूमि या जल के उपयोग के किसी अभिकथित अधिकार के बारे में है, तो वह अपने कारण अभिलिखित करने के पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई हो;
 
और जब उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई किसी कार्यवाही में मजिस्ट्रेट को यह मालूम पड़ता है कि विवाद के संबंध में धारा 145 के अधीन कार्यवाही की जानी चाहिए तो वह अपने कारण अभिलिखित करने के पश्चात् कार्यवाही को ऐसे चालू रख सकता है, मानो वह धारा 145 की उपधारा (1) के अधीन प्रारंभ की गई हो.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 146: विवाद के मामले में कुर्की करने और रिसीवर नियुक्त करने से जुड़ी है ये धारा 

क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

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खराब व्यवहार की इजाजत नहीं देता कानून
कुछ प्रकार के मानव व्यवहार (Human behavior) ऐसे होते हैं जिसकी कानून इजाजत (Permission) नहीं देता. ऐसे व्यवहार करने पर किसी व्यक्ति को उसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं. खराब व्यवहार को अपराध या गुनाह (Crime or offense) कहते हैं. और इसके नतीजों को दंड यानी सजा (Punishment) कहा जाता है.
 

 

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