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CrPC Section 148: स्थानीय जांच और मजिस्ट्रेट से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा

सीआरपीसी की धारा 148 (Section 148) में स्थानीय जांच को परिभाषित किया गया है, जिसके लिए डीएम अपने अधीन किसी मजिस्ट्रेट को आदेश करता है. आइए जान लेते हैं कि सीआरपीसी की धारा 148 इस बारे में क्या बताती है?

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स्थानीय जांच से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा
स्थानीय जांच से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • स्थानीय जांच से संबंधित है सीआरपीसी की ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में कोर्ट (Court) और मजिस्ट्रेट की शक्तियों (Power of Magistrate) के बारे में प्रावधान किए गए हैं. ठीक इसी तरह से सीआरपीसी की धारा 148 (Section 148) में स्थानीय जांच को परिभाषित किया गया है, जिसके लिए डीएम अपने अधीन किसी मजिस्ट्रेट को आदेश करता है. आइए जान लेते हैं कि सीआरपीसी की धारा 148 इस बारे में क्या बताती है? 

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सीआरपीसी की धारा 148 (CrPC Section 148)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1973) की धारा 148 में उस स्थानीय जांच के आदेश की प्रक्रिया को उल्लेखित किया गया है, जिसका आदेश जिलाधिकारी यानी डीएम अपने अधीन किसी मजिस्ट्रेट को जारी करता है. CrPC की धारा 148 के अनुसार-

(1) जब कभी धारा 145 या धारा 146 या धारा 147 के प्रयोजनों के लिए स्थानीय जांच आवश्यक हो तब कोई जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट को जांच करने के लिए प्रतिनियुक्त कर सकता है और उसे ऐसे लिखित अनुदेश दे सकता है जो उसके मार्गदर्शन के लिए आवश्यक प्रतीत हो और घोषित कर सकता है कि जांच का सब आवश्यक व्यय या उसका कोई भाग, किसके द्वारा दिया जाएगा.

(2) ऐसे प्रतिनियुक्त व्यक्ति की रिपोर्ट को मामले में साक्ष्य के रूप में पढ़ा जा सकता है.

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(3) जब धारा 145, धारा 146 या धारा 147 के अधीन कार्यवाही के किसी पक्षकार द्वारा कोई बचें किए गए हैं तब विनिश्चय करने वाला मजिस्ट्रेट यह निदेश दे सकता है कि ऐसे खर्चे किसके द्वारा दिए जाएंगे, ऐसे पक्षकार द्वारा दिए जाएंगे या कार्यवाही के किसी अन्य पक्षकार द्वारा और पूरे के पूरे दिए जाएंगे अथवा भाग या अनुपात में ; और ऐसे खर्चों के अंतर्गत साक्षियों के और प्लीडरों की फीस के बारे में वे व्यय भी हो सकते है, जिन्हें न्यायालय उचित समझे.

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क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

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खराब व्यवहार की इजाजत नहीं देता कानून
कुछ प्रकार के मानव व्यवहार (Human behavior) ऐसे होते हैं जिसकी कानून इजाजत (Permission) नहीं देता. ऐसे व्यवहार करने पर किसी व्यक्ति को उसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं. खराब व्यवहार को अपराध या गुनाह (Crime or offense) कहते हैं. और इसके नतीजों को दंड यानी सजा (Punishment) कहा जाता है.

 

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