Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में अदालत (Court) के साथ-साथ पुलिस (Police) की कार्य प्रणाली से जुड़े कई कानूनी प्रावधान (Provision) मौजूद हैं, जिनका प्रयोग अधिकारी ज़रूरत पड़ने पर करते हैं. इसी तरह से सीआरपीसी की धारा 169 में सबूतों की कमी के चलते आरोपी की रिहाई का प्रावधान बताया गया है. आइए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 169 इस विषय पर क्या बताती है?
सीआरपीसी की धारा 169 (CrPC Section 169)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1975) की धारा 169 में इस बात का प्रावधान मिलता है कि अगर किसी मुजरिम के खिलाफ पुलिस के पास सबूतों की कमी है, तो उसे रिहा कर दिया जाएगा. लेकिन जांच चलती रहेगी. CrPC की धारा 169 के मुताबिक, अगर इस अध्याय के अधीन अन्वेषण पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को यह प्रतीत होता है कि ऐसा पर्याप्त साक्ष्य या संदेह का उचित आधार नहीं है जिससे अभियुक्त को मजिस्ट्रेट के पास भेजना न्यायानुमत है तो ऐसा अधिकारी उस दशा में जिसमें वह व्यक्ति अभिरक्षा में है उसके द्वारा प्रतिभुओं के सहित या रहित, जैसा ऐसा अधिकारी निर्दिष्ट करे, यह बंधपत्र निष्पादित करने पर उसे छोड़ देगा कि यदि और जब अपेक्षा की जाए तो और तब वह ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होगा जो पुलिस रिपोर्ट पर ऐसे अपराध का संज्ञान करने के लिए, और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त है.
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क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है.
CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.