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CrPC Section 170: पर्याप्त सबूत होने पर केस मजिस्ट्रेट के पास भेजना बताती है धारा 170

सीआरपीसी की धारा 170 में उन मामलों को मजिस्ट्रेट के पास भेजने का प्रावधान किया गया है, जिनमें सबूत पर्याप्त होते हैं. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 170 इस बारे में क्या जानकारी देती है?

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मामले मजिस्ट्रेट के पास भेजने से संबंधित है ये धारा
मामले मजिस्ट्रेट के पास भेजने से संबंधित है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • मामले मजिस्ट्रेट के पास भेजने से संबंधित है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में कोर्ट (Court) और पुलिस (Police) की कार्य प्रणाली से जुड़े कई कानूनी प्रावधान (Provision) मौजूद हैं, जिनका प्रयोग ज़रूरत पड़ने पर किया जाता है. ऐसे ही सीआरपीसी की धारा 170 में उन मामलों को मजिस्ट्रेट के पास भेजने का प्रावधान किया गया है, जिनमें सबूत पर्याप्त होते हैं. चलिए जान लेते हैं कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 170 इस बारे में क्या जानकारी देती है? 

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सीआरपीसी की धारा 170 (CrPC Section 170)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure 1975) की धारा 170 में बताया गया है कि जब सबूत पर्याप्त हों, तो तब मामलों को मजिस्ट्रेट के पास भेज दिया जाता है. CrPC की धारा 170 के मुताबिक -

(1) यदि इस अध्याय के अधीन जांच करने पर पुलिस थाने (Police Station) के भारसाधक अधिकारी (Officer in charge) को प्रतीत होता है कि यथापूर्वोक्त पर्याप्त साक्ष्य या उचित आधार (Sufficient evidence or reasonable grounds) है, तो वह अधिकारी पुलिस रिपोर्ट पर उस अपराध (Offence) का संज्ञान करने के लिए और अभियुक्त का विचारण करने या उसे विचारणार्थ सुपुर्द करने के लिए सशक्त मजिस्ट्रेट (Empowered magistrate) के पास अभियुक्त को अभिरक्षा (Custody) में भेजेगा अथवा यदि अपराध जमानतीय (Bailable) है और अभियुक्त प्रतिभूति देने के लिए समर्थ (Able) है तो ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष नियत दिन उसके हाजिर होने के लिए और मजिस्ट्रेट के समक्ष, जब तक अन्यथा निदेश न दिया जाए तब तक दिन-प्रतिदिन उसकी हाजिरी के लिए प्रतिभूति लेगा.

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(2) जब पुलिस थाने (Police Station) का भारसाधक अधिकारी (Officer in charge) अभियुक्त को इस धारा के अधीन मजिस्ट्रेट (Magistrate) के पास भेजता है या ऐसे मजिस्ट्रेट के समक्ष उसके हाजिर होने के लिए प्रतिभूति लेता है तब उस मजिस्ट्रेट के पास वह ऐसा कोई आयुध या अन्य वस्तु जो उसके समक्ष पेश करना आवश्यक हो, भेजेगा और यदि कोई परिवादी (Complainant) हो, तो उससे और ऐसे अधिकारी को मामले के तथ्यों और परिस्थितियों (Circumstances) से परिचित प्रतीत होने वाले उतने व्यक्तियों से, जितने वह आवश्यक समझे, मजिस्ट्रेट के समक्ष निर्दिष्ट प्रकार से हाजिर होने के लिए और यथास्थिति अभियोजन करने के लिए या अभियुक्त के विरुद्ध आरोप के विषय में साक्ष्य देने के लिए बन्धपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा करेगा.

(3) यदि बन्धपत्र में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) का न्यायालय (Court) उल्लिखित है तो उस न्यायालय के अन्तर्गत कोई ऐसा न्यायालय भी समझा जाएगा जिसे ऐसा मजिस्ट्रेट मामले की जांच या विचारण (Inquiry or trial) के लिए निर्देशित करता है, परन्तु यह तब जब ऐसे निर्देश की उचित सूचना उस परिवादी या उन व्यक्तियों को दे दी गई है.

(4) वह अधिकारी, जिसकी उपस्थिति में बन्धपत्र निष्पादित (Bond executed) किया जाता है, उस बन्धपत्र की एक प्रतिलिपि उन व्यक्तियों में से एक को परिदत्त करेगा जो उसे निष्पादित करता है और तब मूल बन्धपत्र को अपनी रिपोर्ट के साथ मजिस्ट्रेट के पास भेजेगा.

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क्या है दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC)
दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973) भारत में आपराधिक कानून के क्रियान्यवन के लिये मुख्य कानून है. यह सन् 1973 में पारित हुआ था. इसे देश में 1 अप्रैल 1974 को लागू किया गया. दंड प्रक्रिया संहिता का संक्षिप्त नाम 'सीआरपीसी' है. सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. 

CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है. CrPC में अब तक कई बार संशोधन (Amendment) भी किए जा चुके हैं.

 

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