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CrPC Section 105: प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था बताती है CrPC धारा 105

सीआरपीसी (CrPC) की धारा 105 (Section 105) में प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था से संबंधित प्रावधान बताए गए हैं. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 105 इस बारे में क्या कहती है?

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प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था बताती है ये धारा
प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था बताती है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था बताती है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धाराओं में पुलिस (Police) और कोर्ट (Court) की कार्य प्रणाली के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली कानूनी प्रक्रियाओं (Legal procedures) के बारे में बताया गया है. इसी तरह से सीआरपीसी (CrPC) की धारा 105 (Section 105) में प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था से संबंधित प्रावधान बताए गए हैं. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 105 इस बारे में क्या कहती है?

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सीआरपीसी की धारा 105 (CrPC Section 105)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Proced) की धारा 105 (Section 105) में प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था या यूं कहें कि आदेशिकाओं के बारे में व्यतिकारी व्यवस्था बनाने का प्रावधान है- 

(1) जहां उन राज्य क्षेत्रों का कोई न्यायालय, जिन पर इस संहिता का विस्तार है, जिन्हें इसके पश्चात् इस धारा में उक्त राज्यक्षेत्र कहा गया है. यह चाहता है कि-

(क) किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम किसी समन की अथवा

(ख) किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए किसी वारंट की अथवा

(ग) किसी व्यक्ति के नाम यह अपेक्षा करने वाले ऐसे किसी समन की कि वह किसी दस्तावेज या अन्य चीज को पेश करे, अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे अथवा

(घ) किसी तलाशी-वारंट की, जो उस न्यायालय द्वारा जारी किया गया है, तामील या निष्पादन किसी ऐसे स्थान में किया जाए जो-

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(i) उक्त राज्यक्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र के न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के अंदर है, वहां वह ऐसे समन या वारंट की तामील या निष्पादन के लिए, दो प्रतियों में, उस न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के पास डाक द्वारा या अन्यथा भेज सकता है और जहां खंड (क) या खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी समन की तामील इस प्रकार कर दी गई है, वहां धारा 68 के उपबंध उस समन के संबंध में ऐसे लागू होंगे, मानो जिस न्यायालय को वह भेजा गया है उसका पीठासीन अधिकारी उक्त राज्यक्षेत्रों में मजिस्ट्रेट है;

(ii) भारत के बाहर किसी ऐसे देश या स्थान में है, जिसकी बाबत केंद्रीय सरकार द्वारा, दांडिक मामलों के संबंध में समन या वारंट की तामील या निष्पादन के लिए ऐसे देश या स्थान की सरकार के, जिसे इस धारा में इसके पश्चात् संविदाकारी राज्य कहा गया है. साथ व्यवस्था की गई है, वहां वह ऐसे न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट को निर्दिष्ट ऐसे समन या वारंट को, दो प्रतियों में, ऐसे प्ररूप में और पारेषण के लिए ऐसे प्राधिकारी को भेजेगा, जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे.

(2) जहां उक्त राज्यक्षेत्रों के न्यायालय को-

(क) किसी अभियुक्त व्यक्ति के नाम कोई समन अथवा

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(ख) किसी अभियुक्त व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए कोई वारंट अथवा

(ग) किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा करने वाला ऐसा कोई समन कि वह कोई दस्तावेज या अन्य चीज पेश करे अथवा हाजिर हो और उसे पेश करे अथवा

(घ) कोई तलाशी-वारंट, जो निम्नलिखित में से किसी के द्वारा जारी किया गया है-

(1) उक्त राज्यक्षेत्रों के बाहर भारत में किसी राज्य या क्षेत्र के न्यायालय

(2) किसी संविदाकारी राज्य का कोई न्यायालय, न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट,

तलाशी वारंट तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त होता है, वहां वह उसकी तामील या निष्पादन ऐसे कराएगा मानो वह ऐसा समन या वारंट है जो उसे उक्त राज्यक्षेत्रों के किसी अन्य न्यायालय से अपनी स्थानीय अधिकारिता के अंदर तामील या निष्पादन के लिए प्राप्त हुआ है. और जहां

(i) गिरफ्तारी का वारंट निष्पादित कर दिया जाता है, वहां गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के बारे में कार्यवाही यथासंभव धारा 80 और 81 द्वारा विहित क्रिया के अनुसार की जाएगी.

(ii) तलाशी-वारंट निष्पादित कर दिया जाता है, वहां तलाशी में पाई गई चीजों के बारे में कार्यवाही यथासंभव धारा 101 में विहित प्रक्रिया के अनुसार की जाएगी.

परंतु उस मामले में, जहां संविदाकारी राज्य से प्राप्त समन या तलाशी वारंट का निष्पादन कर दिया गया है, तलाशी में पेश किए गए दस्तावेज या चीजें या पाई गई चीजें, समन या तलाशी वारंट जारी करने वाले न्यायालय की, ऐसे प्राधिकारी की मार्फत अग्रेषित की जाएंगी जो केंद्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे.

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इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 104: पेश किए गए दस्तावेज आदि को जब्त करने की शक्ति देती है सीआरपीसी की धारा 104 

क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.

 

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