scorecardresearch
 

CrPC Section 106: दोष सिद्ध होने पर शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा का प्रावधान करती है ये धारा

सीआरपीसी (CrPC) की धारा 106 (Section 106) में दोषसिद्धि पर शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 106 इस बारे में क्या कहती है?

Advertisement
X
दोष सिद्ध होने पर शांति बनाए रखने के लिए प्रावधान बताती है ये धारा
दोष सिद्ध होने पर शांति बनाए रखने के लिए प्रावधान बताती है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • दोषसिद्धि पर शांति बनाए रखने से जुड़ी है ये धारा
  • 1974 में लागू की गई थी सीआरपीसी
  • CrPC में कई बार हुए है संशोधन

Code of Criminal Procedure: दंड प्रक्रिया संहिता में कोर्ट (Court) और पुलिस (Police) की कार्य प्रणाली के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली कानूनी प्रक्रियाओं (Legal procedures) के बारे में जानकारी मिलती है. ऐसे ही सीआरपीसी (CrPC) की धारा 106 (Section 106) में दोषसिद्धि पर शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 106 इस बारे में क्या कहती है?

Advertisement

सीआरपीसी की धारा 106 (CrPC Section 106)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Proced) की धारा 106 (Section 106) में किसी अपराधी का दोष साबित होने पर कोर्ट परिसर या अन्य स्थानों पर शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा का प्रावधान किया गया है. CrPC की धारा 106 के मुताबिक- 

(1) जब सेशन न्यायालय (Session Court) या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट का न्यायालय (First Class Magistrate Court) किसी व्यक्ति को उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट अपराधों (Specified offenses) में से किसी अपराध के लिए या किसी ऐसे अपराध के दुप्रेरण (Abetment of crime) के लिए सिद्धदोष (Conviction) ठहराता है और उसकी यह राय है कि यह आवश्यक है कि परिशांति (Calmness) कायम रखने के लिए ऐसे व्यक्ति से प्रतिभूति (Security) ली जाए, तब न्यायालय ऐसे व्यक्ति को दंडादेश (Sentence) देते समय उसे आदेश दे सकता है कि वह तीन वर्ष से अनधिक इतनी अवधि के लिए, जितनी वह ठीक समझे, परिशांति कायम रखने के लिए प्रतिभुओं सहित या रहित, बंधपत्र निष्पादित (Bond executed) करे. 

Advertisement

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अपराध (Specified offense) निम्नलिखित हैं-
 
(क) भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) के अध्याय 8 के अधीन दंडनीय कोई अपराध (Any offense punishable) जो धारा 153क या धारा 153ख या धारा 154 के अधीन दंडनीय अपराध (Punishable offence) से भिन्न है.

(ख) कोई ऐसा अपराध (Offence) जो, या जिसके अंतर्गत, हमला या आपराधिक बल (Assault or criminal force) का प्रयोग या रिष्टि (Mischievousness) करना है.

(ग) आपराधिक अभित्रास (Criminal intimidation) का कोई अपराध

(घ ) कोई अन्य अपराध (Offence), जिससे परिशांति (Calmness) भंग हुई है या जिससे परिशांति भंग आशयित (Intended to disturb the peace) है, या जिसके बारे में ज्ञात था कि उससे परिशांति भंग संभाव्य है.

(3) यदि दोषसिद्धि अपील पर या अन्यथा अपास्त (Set aside conviction on appeal or otherwise) कर दी जाती है तो बंधपत्र, जो ऐसे निष्पादित (Execution) किया गया था, शून्य हो जाएगा.

(4) इस धारा के अधीन आदेश अपील (Order appeal under section) न्यायालय द्वारा या किसी न्यायालय द्वारा भी जब वह पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों (its powers of revision) का प्रयोग कर रहा हो, किया जा सकेगा.

इसे भी पढ़ें--- CrPC Section 105: प्रक्रियाओं के बारे में पारस्परिक व्यवस्था बताती है CrPC धारा 105 

क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.

Advertisement

1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.

ये भी पढ़ेंः

 

Advertisement
Advertisement