दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) में ऐसी कानूनी प्रक्रियाओं (Legal procedures) को परिभाषित (Defined) किया गया है, जिनका प्रयोग अदालती कार्यवाही (Court proceedings) और पुलिस व्यवस्था में किया जाता है. इसी तरह से सीआरपीसी (CrPC) की धारा 84 (Section 84) कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियों की प्रक्रिया (Procedure) को परिभाषित किया गया है. तो चलिए जानते हैं कि सीआरपीसी की धारा 84 इस बारे में क्या बताती है?
सीआरपीसी की धारा 84 (CrPC Section 84)
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure) की धारा 84 कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियों (Claims and Objections) को परिभाषित (Define) करती है. CrPC की धारा 84 के अनुसार-
(1) यदि धारा 83 (Section 83) के अधीन कुर्क की गई किसी संपत्ति (Attached property) के बारे में उस कुर्की की तारीख से छह मास के भीतर कोई व्यक्ति, जो उद्घोषित व्यक्ति (Proclaimed person) से भिन्न है, इस आधार पर दावा (Claim) या उसके कुर्क किए जाने पर आपत्ति (Objection) करता है कि दावेदार या आपत्तिकर्ता (Claimant or objector) का उस संपत्ति में कोई हित है और ऐसा हित धारा 83 के अधीन कुर्क नहीं किया जा सकता तो उस दावे या आपत्ति की जांच (Investigation) की जाएगी, और उसे पूर्णतः या भागतः (wholly or in part) मंजूर या नामंजूर (Approve or disapprove) किया जा सकता है:
लेकिन इस उपधारा द्वारा अनुज्ञात अवधि (Allowed period) के अंदर किए गए किसी दावे या आपत्ति को दावेदार या आपत्तिकर्ता (Claimant or objector) की मृत्यु हो जाने की दशा में उसके विधिक प्रतिनिधि (Legal representative) द्वारा चालू रखा जा सकता है.
(2) उपधारा (1) के अधीन दावे (Claims) या आपत्तियां (Objections) उस न्यायालय (Court) में, जिसके द्वारा कुर्की का आदेश (Attachment order) जारी किया गया है, या यदि दावा या आपत्ति ऐसी संपत्ति (Property) के बारे में है जो धारा 83 की उपधारा (2) के अधीन पृष्ठांकित आदेश (Paged order) के अधीन कुर्क की गई है तो, उस जिले के, जिसमें कुर्की की जाती है मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (Chief Judicial Magistrate) के न्यायालय (Court) में की जा सकती है.
(3) हर एक ऐसे दावे या आपत्ति की जांच (Inquiry of claim or objection) उस न्यायालय (Court) द्वारा की जाएगी जिसमें वह किया गया था या की गई है, लेकिन अगर वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) के न्यायालय में किया गया था या की गई है तो वह उसे निपटारे के लिए अपने अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट (Magistrate) को दे सकता है.
(4) कोई व्यक्ति, जिसके दावे या आपत्ति (Claim or objection) को उपधारा (1) के अधीन आदेश द्वारा पूर्णत: या भागतः (wholly or in part) नामंजूर (Disapprove)कर दिया गया है, ऐसे आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर, उस अधिकार को सिद्ध करने के लिए, जिसका दावा वह विवादग्रस्त संपत्ति (Disputed property) के बारे में करता है, वाद संस्थित (Instituted) कर सकता है; लेकिन वह आदेश ऐसे वाद के, यदि कोई हो, परिणाम के अधीन रहते हुए निश्चायक (Conclusive) होगा.
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क्या है सीआरपीसी (CrPC)
सीआरपीसी (CRPC) अंग्रेजी का शब्द है. जिसकी फुल फॉर्म Code of Criminal Procedure (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) होती है. इसे हिंदी में 'दंड प्रक्रिया संहिता' कहा जाता है. CrPC में 37 अध्याय (Chapter) हैं, जिनके अधीन कुल 484 धाराएं (Sections) मौजूद हैं. जब कोई अपराध होता है, तो हमेशा दो प्रक्रियाएं होती हैं, एक तो पुलिस अपराध (Crime) की जांच करने में अपनाती है, जो पीड़ित (Victim) से संबंधित होती है और दूसरी प्रक्रिया आरोपी (Accused) के संबंध में होती है. सीआरपीसी (CrPC) में इन प्रक्रियाओं का ब्योरा दिया गया है.
1974 में लागू हुई थी CrPC
सीआरपीसी के लिए 1973 में कानून (Law) पारित किया गया था. इसके बाद 1 अप्रैल 1974 से दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी (CrPC) देश में लागू हो गई थी. तब से अब तक CrPC में कई बार संशोधन (Amendment) भी किए गए है.