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देश की जेलों पर मंडरा रहा है कोरोना का खतरा, नहीं हुआ उपाय तो लग सकता है लाशों का अंबार

कोरोना महामारी के बीच सब अपना-अपना देख रहे हैं. जेल में बंद कैदियों पर किसी का ध्यान जा ही नहीं रहा है. जबकि इनमें कोरोना फैलने का ख़तरा सब से ज़्यादा है. देश की हर जेल में कोरोना फैलने की खबरें लगातार आ रही हैं. इसे रोका नहीं गया तो जेलों में कोरोना तबाही मचा सकता है.

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जेल में बंद कैदियों के सिर पर कोरोना की शक्ल में मौत मंडरा रही है
जेल में बंद कैदियों के सिर पर कोरोना की शक्ल में मौत मंडरा रही है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • देश में मौजूद हैं कुल 1412 जेल
  • इन जेलों में बंद हैं करीब पौने पांच लाख कैदी
  • देश में जेलों की संख्या घटी, मगर कैदी बढ़ गए


देश की जेलों में कोरोना को लेकर ज़बरदस्त ख़ौफ फैला हुआ है. होना भी चाहिए क्योंकि कोरोना के इस वायरस का इलाज या उससे बचने के उपाय नहीं किए गए तो जेलों में आपस में सटकर रहने वाले क़ैदियों की लाशों का अंबार लगा सकता है. हमारे देश के इस मौजूदा हालात में अस्पतालों में मरीज़ों का तांता लगा हुआ है. ऑक्सीज़न की कमीं से लोग सड़कों पर मर रहे हैं. कोरोना का टेस्ट कराने वालों की लाइनें लगी हैं. आधे से ज़्यादा देश के लोग घरों में क़ैद हैं. ऐसे में जेलों में बंद कैदियों की सुध लेने वाला कौन है. 'दो गज़ की दूरी, मास्क है ज़रूरी' जेलों में कैसे मुमकिन है?

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कोरोना महामारी के बीच सब अपना-अपना देख रहे हैं. जेल में बंद कैदियों पर किसी का ज़हन जा ही नहीं रहा है. जबकि इनमें कोरोना फैलने का ख़तरा सब से ज़्यादा है. देश की हर जेल में कोरोना फैलने की खबरें लगातार आ रही हैं. इसे रोका नहीं गया तो जेलों में कोरोना तबाही मचा सकता है. इलाज की कमी से लाशों का अंबार लगा सकता है. वे क़ैदी हैं, मगर इसका ये मतलब नहीं कि इनके ह्यूमन राइट्स नहीं. मानवाधिकार नहीं है. उन्हे भी कोरोना से उतना ही खतरा है. जितना हमें और आपको है. उनको भी जान प्यारी है और उसे बचाना ज़रूरी है. जैसे बाकी लोगों की. 

लेकिन देश में जेल की मौजूदा हालत को देखते हुए क्या ऐसा मुमकिन है. और सरकारें कोरोना से इनकी हिफाज़त के लिए कर क्या रही हैं. ये जानने से पहले ये तो जानिए कि हमारे देश में जेलों का हाल क्या है-

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  • देश के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 1412 जेल हैं
  • 2019 के एनसीआरबी के आंकड़े के मुताबिक जेलों में 478600 क़ैदी बंद हैं
  • जेलों में भीड़भाड़ का आलम ये है कि वहां क्षमता से ज्यादा कैदी रखे गए हैं
  • 2016 में जेल ऑक्युपेंसी रेट 114% थी जो 2019 में बढ़कर 119 फीसदी हो गया 
  • देश में जेलें घटीं है. मगर कैदी बढ़े हैं और हर 10 में से 7 बंदी अंडरट्रायल हैं 
  • यानी हमारे देश की जेलों में बंद 69 फीसदी कैदी ऐसे हैं जो विचाराधीन हैं   
  • दिल्ली की जेलों में कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा 175 फीसदी है 
  • यानी जिन जेलों में 100 कैदियों के रहने की क्षमता है वहां 175 कैदी हैं 
  • यूपी में ये स्थिति 168 प्रतिशत है यानी जहां 100 कैदियों की जगह है वहां 168 बंदी हैं

अब बताइये यहां कैसे हो पाएगी सोशल डिस्टेंसिंग ज़रूरी. अब तक देश के अलग अलग इलाकों से कैदियों और जेल स्टाफ के कोरोना पॉज़िटिव होने और कोरोना से मौत होने की खबरें आ रही हैं. जब त्रासदी का ये बादल छटेंगा. तब जाकर सही सही अंदाज़ा लग पाएगा कि सरकारों ने जेलों और कैदियों में कोरोना फैलने के डर को नज़रअंदाज़ कर के ये आंकड़े कहां तक पहुंचाए. 

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यहां जो आज़ाद हैं, वही अपना इलाज नहीं करा पा रहे हैं. यूपी में बीजेपी विधायक इलाज के अभाव में दुनिया से रुखसत हो गए तो सोचिए जो जेलों में क़ैद हैं, उनका क्या हश्र हो रहा होगा. लापरवाही भले केंद्र सरकार की हो या राज्य की सरकारों की. खामियाज़ा कैदी भुगत रहे हैं. जबकि बुरी खबर ये है कि जेलों में बंद कैदियों में कोरोना का संक्रमण बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. दिल्ली मुंबई की जेलों में जहां बड़े बड़े कैदी बंद हैं, वहां कोरोना से बुरा हाल है. आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली और महाराष्ट्र में अबतक हज़ारों कैदी कोरोना संक्रमित पाए जा चुके हैं और इनमें कई दर्जन कैदियों की मौत भी हो चुकी है. 

मुंबई में जेलों का आलम ये है कि सिर्फ आर्थर रोड जेल जिसमें 804 कैदियों की क्षमता है. वहां दो हजार से ज्यादा कैदी बंद हैं. वहीं ठाणे जेल की क्षमता 1105 है मगर वहां साढ़े तीन हजार से ज्यादा कैदी बंद हैं. कोरोना इन जेलों में घुस चुका है. और अगर वक्त रहते माकूल इंतज़ाम नहीं किया गया तो यहां 4 बाई 4 के कमरों में ठूसे गए कैदियों के लिए खुद को बचाना नामुमकिन हो जाएगा. इन खतरों को देखते हुए भी सरकारें खामोश हैं. या बेबस हैं. इसलिए कोर्ट एक्शन में है. कोर्ट ने सरकारों को जेलों में कैदियों की कोरोना से सुरक्षा के निर्देश दिए हैं. 

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साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना महामारी के मद्देनज़र देशभर की जेलों में बंद कैदियों की चिकित्सा सहायता के लिए स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई की और कहा कि क्या हम इस हालात को देखते हुए जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने और जेलों की क्षमता बढ़ाने की कोशिश कर सकते हैं? कोर्ट ने जेलों में कैदियों की तादाद को कम करने के लिए राज्यों से उन कैदियों को पैरोल या अंतरिम जमानत पर रिहा करने के लिए विचार करने को कहा है, जो अधिकतम 7 साल की सजा काट रहे हैं. अब राज्य सरकारों को तय करना है कि किस श्रेणी के अपराधियों को मुकदमों के तहत पैरोल या अंतरिम जमानत दी जा सकती है. 

आपको बता दें कि भारत की जेलों में बंद कुल कैदियों में से दो तिहाई बिना दोष सिद्ध हुए ही कैद में हैं. यानी वो अंडरट्रायल या विचाराधीन कैदी हैं. विचाराधीन कैदी वो होते हैं जिन्हें कैद में रखा गया है. मगर उनका अपराध अभी सिद्ध नहीं हुआ है. औसत निकालें तो ये तादाद 69 फीसदी है. बहुत मुमकिन है कि कोरोना को देखते हुए इनमें से कई कैदी पेरौल देकर जेलों से निकाल कर भीड़ कम की जाए. 

हालांकि ये फैसला इतना आसान भी नहीं होगा. क्योंकि पिछले साल जब कोरोना की शुरुआत हुई थी तो वायरस के खतरे को देखते हुए तिहाड़ जेल में बंद 6700 कैदियों को इमरजेंसी पेरोल पर छोड़ा गया था. मगर उनमें से 3500 क़ैदी पेरोल की मियाद खत्म होने के बाद लौटे ही नहीं. अब वे फरार हैं. ज़ाहिर है मौका देखकर अपराधी पैरोल लेकर फरार हो गए तो दूसरी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. इन्हें वापस पकड़ने और जेल में बंद करने के लिए पुलिस को फिर से मशक्कत करनी पड़ेगी. या ये भी हो सकता है कोरोना के हालात को देखते हुए बाद में आने वाले क़ैदियों को कोर्ट रियायत दे दे.

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