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दिल्ली के अपोलो अस्पताल में सोमवार की रात एक महिला मरीज को आईसीयू में बेड नहीं मिला. वो सारी रात इमरजेंसी में बेड के लिए इंतजार करती रही और सुबह उनकी मौत हो गई. इस बात से नाराज होकर महिला के परिजनों ने अस्पताल में तोड़फोड़ की और नर्सिंग स्टाफ पर हमला कर दिया. ऐसे मामले अक्सर सामने आते हैं, जब उपचार के दौरान मरीज की मौत के बाद उनके घरवालों का गुस्सा अस्पताल और वहां के डॉक्टरों और कर्मचारियों पर निकलता है. इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अस्पतालों और डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाए हैं.
हेल्थकेयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेबलिस्मेंट एक्ट
केंद्र सरकार ने वर्ष 2019 में हेल्थकेयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेबलिस्मेंट एक्ट (प्रोबीजन ऑफ वायलेंस एंड डेमेज प्रॉपर्टी) का मसौदा तैयार किया था. इसके तहत डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य कर्मचारी, एंबुलेंस कर्मचारी या अस्पताल पर किसी भी तरह का हमला होने की स्थिति में आरोपी के खिलाफ सख्त धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज होगा. जिसमें अधिकतम 10 साल की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है. अगर कोई आरोपी जुर्माने की राशि नहीं देता है, तो उसकी संपत्ति को बेचकर जुर्माने की भरपाई किए जाने का प्रावधान है.
एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897
इसके बाद पिछले साल सरकार ने डॉक्टरों की सुरक्षा के मद्देनजर ही 123 साल पुराने एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 में बदलाव किया. इस कानून के तहत मेडिकल स्टाफ पर हमला करने वाले लोगों को 3 माह से 5 साल तक की सजा हो सकती है. साथ ही आरोपी पर 50 हजार से लेकर 2 लाख रुपये तक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. खास बात ये है कि इस एक्ट के तहत नामित अपराध को गैर-जमानती माना गया है.
आईपीसी की धारा 188
कोरोना महामारी से लड़ने के लिए एपिडेमिक डिजीज एक्ट, 1897 देश में लागू है. इसी एक्ट के साथ महामारी एक्ट भी लागू है. जिसके अनुसार अगर कोई भी शख्स लॉक डाउन या उसके दौरान सरकार के दिशा निर्देशों का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत कानूनी कार्रवाई की जाती है. इस एक्ट के सेक्शन 3 के अनुसार अगर कोई इस कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करता है या सरकारी निर्देशों व नियमों को तोड़ने वाले को दोषी पाए जाने पर दंडित किए जाने का प्रावधान है.
खास बात ये है कि इस एक्ट का उल्लंघन करने पर किसी सरकारी कर्मचारी पर भी धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने पर कम से कम एक महीने की जेल या 200 से लेकर 1000 रुपये तक जुर्माना या फिर दोनों सजा एक साथ भी हो सकती हैं. भारतीय दंड संहिता की धारा 188 को लागू करने का अधिकार जिलाधिकारी या जिला मजिस्ट्रेट के पास होता है. इसके अलावा अपराध की गंभीरता के मद्देनजर पुलिस आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की अन्य धाराओं का इस्तेमाल भी कर सकती है.