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दिल दहला देने वाले कंझावला कांड पर दिल्ली पुलिस का कहना है कि वो गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलवाएगी. मगर साथ ही वो ये भी कहती है कि आरोपियों का इरादा या मकसद अंजलि के कत्ल का नहीं था. इसलिए यह मामला गैर इरादतन हत्या का है. यानी आईपीसी की धारा 304 के तहत 10 साल की सजा का प्रावधान है और इसमें अधिकतम सजा उम्रकैद होती है. अब यह कहानी पुलिस के मुताबिक 4 आरोपियों और अंजलि की सहेली निधि के ईर्द-गिर्द ही घूमती नजर आती है.
अब अंजलि के 4 गुनहगार!
कंझावला कांड की बात करें तो पुलिस ने पिछले एक सप्ताह से ज्यादा का जो वक्त इस केस की जांच में लगाया है. उसमें हर दिन कोई ना कोई झोल सामने आ रहा है. ना जाने क्यों पुलिस पहले ही दिन से इस मामले में लापरवाह नजर आती रही. लेकिन बाद में पुलिस ने साफ कर दिया कि इस केस के महज 4 आरोपी हैं, जो उस रात कार में सवार थे. इस कहानी के वो चार किरदार कुछ इस तरह से हैं.-
- पहला 25 साल का अमित खन्ना जो उत्तम नगर में एसबीआई बैंक के क्रेडिट कार्ड विभाग में काम करता है.
- दूसरा 27 साल का कृष्ण जो कनॉट प्लेस में स्पेनिश कल्चर सेंटर में काम करता है.
- तीसरा 26 साल का मिथुन जो पेशे से हेयर ड्रेसर है.
- चौथा 27 साल का मनोज मित्तल जिसकी सुलतानपुरी में राशन की दुकान है और साथ ही इलाके का बीजेपी नेता है.
पुलिस की छानबीन में पांचवा शख्स दीपक आरोपी था ही नहीं. वो महज अपने भाई अमित को बचाने के लिए उसका इल्जाम अपने सिर ले रहा था.
चार आरोपियों की कहानी
इन चारों ने 31 दसंबर 2022 की शाम मुरथल में न्यू ईयर का जश्न मनाने का फैसला किया. इसी के बाद अमित, कृष्ण और मिथुन शाम करीब छह बजे अपने अपने घर से सुलतानपुरी में मनोज मित्तल की दुकान पर पहुंचे. दुकान बंद हो चुकी थी. इसके बाद चारों ने उसी दुकान में शराब पी. शराब का ये दौर रात करीब दस बजे तक चला.
आशुतोष नहीं, लोकेश है कार का मालिक
रात करीब साढ़े दस बजे के दरम्यान कहानी में पांचवें किरदार की एंट्री होती है. इस किरदार का नाम है आशुतोष. नोएडा की एक टेक फर्म में काम करने वाले आशुतोष से अमित की दोस्ती है. अमित शराब पीने के बाद आशुतोष से मुरथल जाने के लिए उसकी मारुति बलेनो कार मांगने उसके घर जाता है. ये कार दरअसल आशुतोष की भी नहीं थी. कार का असली मालिक लोकेश है. आशुतोष लोकेश का साला है. मगर लोकेश की ये कार कुछ दिनों से आशुतोष के पास थी.
मुर्थल में ढाबे पर मनाया था नया साल
अमित कार लेकर मनोज मित्तल की राशनवाली उसी दुकान पर पहुंचता है, जहां सब शाम से शराब पी रहे थे. इसके बाद रात करीब साढ़े दस से पौने ग्यारह बजे के बीच चारों सुल्तानपुरी से मुरथल जाने के लिए निकल पड़ते हैं. सुल्तानपुरी से मुरथल तक कार अमित चला रहा था. मुरथल जाने के रास्ते में भी चारों शराब पीते हैं. मुरथल पहुंचने के बाद चारों एक ढाबे पर खाना खाते हैं. 2022 की आखिरी रात को चारों वहीं मुरथल में विदाई देते हैं. अब नया साल 2023 शुरू हो चुका था. चारों खाना खाने के बाद मुरथल से देर रात वापस सुल्तानपुरी के लिए निकल पड़ते हैं. वापसी में भी कार अमित ही चला रह था.
अंजिल और निधि ने होटल में की थी पार्टी
उधर, दूसरी तरफ अंजलि भी 31 दिसंबर 2022 की रात अपनी दोस्त निधि के साथ न्यू ईयर की पार्टी मनाने अपनी स्कूटी से शाम साढ़े छह बजे से निकलती है. निधि को उसके घर से लेती है और फिर दोनों विवान होटल पहुंचते हैं. तब घड़ी में शाम के साढ़े सात बजे थे. साढ़े सात बजे से लेकर डेढ़ बजे तक निधि और अंजलि होटल में ही रहते हैं. फिर दोनों रात डेढ़ बजे स्कूटी से घर के लिए निकल पड़ते हैं.
तंग सड़क पर हुई थी टक्कर
अब रात के करीब पौने दो से दो का वक्त हो रहा होगा. मुरथल से मारुति बलेनो कार में लौट रहे अमित, मिथुन, कृष्ण और मनोज मित्तल की गाड़ी ठीक उसी रूट पर थी, जिस रूट से अंजलि और निधि स्कूटी पर घर लौट रहे थे. दोनों आमने सामने से आ रह थे. एक जगह सड़क तंग थी. उसी तंग सड़क पर अचानक मारुति बलेनो कार और जुपिटर स्कूटी की आमने-सामने से टक्कर हो जाती है. टक्कर होते ही अंजलि और निधि स्कूटी से सड़क पर गिर पड़ती हैं. निधि कार की दाईं तरफ गिरती है, जबकि अंजलि कार की बाईं तरफ.
हादसे के बाद कार के नीचे फंस गई थी अंजलि
हादसा होते ही कार में सवार चारों लोगों को पता चल चुका था. उन्हें ये भी अहसास हो गया था कि एक लड़की कार के नीचे फंस गई है. अंजलि के एक पैर का निचला हिस्सा पहिए में जा फंसा था. मगर चारों पहले से ही नशे में थे. सड़क तंग थी. आगे जाने की बजाए उन्होंने उलटे कार को रिवर्स गियर में डाला और फिर उलटी तरफ कार को भगा कर ले गए.
ना पुलिस चौकी, ना ही नाका
अब वो कार को सुल्तानपुरी-लाडोपुर कट से होते हुए कंझावला मोड़ की तरफ ले जा रहे थे. उन्हें पता था कि उनसे एक हादसा हो चुका है. इसलिए डर के मारे अब वो जानबूझ कर ऐसी सड़क पर कार दौड़ा रहे थे, जिस पर कोई पुलिस चौकी या नाका ना हो. दिल्ली-हरियाणा सीमा पर चेक पोस्ट है. उन्होंने उस रास्ते को भी अब जानबूझकर क्रास नहीं किया.
कंझावला में गिरी थी अंजलि की लाश
चारों तड़के करीब तीन बजे कंझावला मोड़ पहुंच चुके थे. इस दौरान वो लगातार कार को मेन रोड से हटकर चला रहे थे ताकि पुलिस वालों से बच सकें. इसके बाद तभी अंजलि की लाश कार से अलग हो कर सड़क पर जा गिरती है. इसके करीब दस मिनट बाद यानी चार बज कर दस मिनट पर लाश की सूचना पुलिस को मिलती है.
कहानी में छठे किरदार की एंट्री
हादसे के बाद चारों आरोपी घबराए हुए थे. एक तो चारों ने शराब पी रखी थी. ऊपर से अमित जो कार चला रहा था उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था. मनोज मितत्ल, मिथुन और कृष्ण के पास भी ड्राइविंग लाइेंसस नहीं था. चारों को पता था कि देर सवेर पुलिस कार का पता लगा लेगी. उन्हें ये भी पता था कि बिना ड्राइविंग लाइसेंस के कार चलाने और एक्सीडेंट करने पर ज्यादा सजा होगी. इसी मोड़ पर अब कहानी में छठे किरदार की एंट्री होती है. छठा किरदार अंकुश यानी अमित का भाई.
सातवें किरदार की एंट्री
चारों आरोपी सुल्तानपुरी पहुंचने के बाद सबसे पहले अंकुश से मिलते हैं. उसे सारी बात बताते हैं. तब अंकुश एक आइडिया देता है और इस आइडिया के साथ ही कहानी में सातवें किरदार की एंट्री होती है. सातवां किरदार अणित और अंकुश का कजिन दीपक. अंकुश ने ही अपने भाई अमित को सलाह दी कि वो दीपक से संपर्क करे और उसे इस बात पर राज़ी कर ले कि हादसे के वक्त कार दीपक चला रहा था. दरअसल, दीपक इलकौता था जिसके पास ड्राइविंग लाइसेंस है. दीपक ग्रामीण सेवा की गाड़ी चलाने का काम करता है यानी पेशे से ड्राइवर है.
कार आशुतोष के घर छोड़ी
दीपक को लगा कि मामूली एक्सीडेंट है, इसलिए वो अपने कजिन की मदद करने को तैयार हो गया. इसके बाद चारों कार को सीधे सुल्तानपुरी ले जाते हैं. तड़के चार बज कर चालीस मिनट पर अमित कार आशुतोष के घर के बाहर पार्क कर देता है. अमित आशुतेष को हादसे के बारे में सच-सच बता देता है. शक है कि इसके बाद आशुतोष ने कार से खून के निशान मिटाने की कोशिश की. इसके बाद अमित, मनोज मित्तल, कृष्ण और मिथुन ऑटो पकड़ कर अपने-अपने घर चले जाते हैं.
सभी आरोपियों की गिरफ्तारी
ठीक वक्त का सीसीटीवी फुटेज भी पुलिस को मिला है, जिस वक्त चारों ऑटो में बैठकर सुल्तानपुरी से अपने घर जा रहे हैं. चारों सुबह-सुबह करीब पांच बजे अपने-अपने घर पहुंचते हैं. लेकिन तब तक पुलिस को हादसे की ख़बर मिल चुकी थी. कार और कार का नंबर सीसीटीवी कैमरे से मिल चुका था. इसी के बाद सुबह करीब आठ बजे सभी को पुलिस उनके घरों से गिरफ्तार किया. इनमें दीपक भी शामिल था.
एक जैसा बयान दे रहे थे पांचों आरोपी
पांचों पुलिस को यही बयान देते हैं कि दीपक कार चला रहा था और नशे की हालत में उनसे ये हादसा हो गया. पुलिस भी उनके बयान को सच मान लेती है. मगर बाद में जब अंजलि केस को लेकर लोगों का गुस्सा फूटता है और मीडिया में खबरें हेडलाइंस बन जाती हैं, तब पुलिस हरकत में आती है. इसी दौरान पुलिस जब कार ड्राइवर दीपक से सख्ती से पूछताछ करती है, तब दीपक टूट जाता है. उसे वैसे उसे पहले से नहीं पता था कि हादसा किस तरह का हुआ है. उसने इसे एक मामूली हादसा माना था. मगर जब उसे पता चला कि कार में फंस कर एक लड़की की मौत हो चुकी है, तब उसने पुलिस को सच बता दिया कि कार मैं नहीं बल्कि अमित चला रहा था.
झूठ बोल रहा था अमित का भाई दीपक
दीपक के इस बयान के बाद पुलिस अब उसके कॉल डिटेल खंगालती है. तब पता चलता है कि 31 दिसंबर की रात 11 बजे से लेकर एक जनवरी की सुबह तक दीपक के मोबाइल का लोकेशन उसका अपना घर था. जबकि इसी दौरान अमित, मिथुन, कृष्ण और मनोज मित्तल का लोकेशन मुर्थल से लेकर सुल्तानपुरी दिखा था. यानी ये साफ हो गया कि हादसे के वक्त दीपक कार में नहीं बल्कि अपने पर घर था. और इसी इलेक्ट्रानिक एविडेंस की बात गुरूवार को स्पेशल कमिश्नर कर रहे थे.
सुबह दीपक के साथ ले गए थे आरोपी
यानी दीपक के बयान और हादसे के चार दिन बाद पुलिस को पता चला कि कार में पांच नहीं बल्कि चार लोग थे. और कार दीपक नहीं अमित चला रहा था. दीपक की एक पड़ोसी ने भी इस बात की तसदीक की कि 31 दिसंबर की रात करीब पौने ग्यारह बजे दीपक घर लौट आया था. इसके बाद वो घर पर ही था. फिर तड़के करीब साढ़े तीन बजे कुछ लोग आए और दीपक को अपने साथ ले गए. यानी तड़के दीपक को जगा कर ले जाने वाले कोई और नहीं बल्कि उसका कजिन अमित, मनोज मित्तल, मिथुन और कृष्ण थे.
गलती पर गलतियां करती रही पुलिस
तो ये रही 31 दिसंबर की शाम छह बजे से लेकर एक जनवरी की सुबह आठ बजे तक कि वो पूरी कहानी, जिसमें हर सच कैद है. यानी इन्हीं 14 घंटों की कहानी की हर कड़ी को पुलिस जोड़़ ले तो केस आईने की तरफ हो जाए. मगर अफसोस की ये बात है कि पुलिस ने हादसे वाली पहली सुबह से ही गलतियां पर गलतियां करनी शुरू कर दी. जिसका नतीजा ये रहा कि 35 घंटे बाद अचानक स्कूटी पर एक की जगह दो लोग सवार हो गए. यानी अंजलि के बाद निधि की एंट्री हो गई. फिर चार दिन बाद अचानक कार का ड्राइवर बदल गया और पांचवें दिन कार में सवार लोगों की गिनती कम हो गई. पता चला कि कार में पांच नहीं बल्कि सिर्फ चार लोग सवार थे.
अंजलि का बेबस परिवार
इस बीच आजतक की टीम ने अंजलि के उस दोस्त को भी ढूंढ निकाला जो 31 दिसंबर की शाम उसके साथ था. छह भाई बहनों में घर की दूसरी सबसे बड़ी बेटी अंजलि उत्तर-पश्चिमी दिल्ली के मंगलोपुरी के छोटे से घर में रहा करती थी. पिता की मौत आठ साल पहले हो चुकी है. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है और वो अपने पति के साथ ससुराल में रहती है. बाकी सभी भाई-बहन अंजलि से छोटे हैं. मां एक स्कूल में सहायक की नौकरी किया करती थी. मगर कोरोना के दौरान लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गई. घर का खाना सरकारी स्कीम के तहत आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों को सरकारी स्कीम के तहत दिए जाने वाले मासिक अनाज से मिलता था.
अंजलि पर थी घर की जिम्मेदारी
घर के खर्च की सारी जिम्मेदारी अंजलि पर आ गई थी. अंजलि ने मोहल्ले में ब्यूटीशियन का कोर्स किया था. वो मोहल्ले में शादी-ब्याह या दूसरे फंक्शन में महिलाओं और लड़कियों का मेकआप करके पैसे कमाती थी. घर का खर्च चलाने के लिए पार्ट टाइम शादियों में मेहमानों का स्वागत करने और उनपर फूल बरसाने का काम भी अंजलि करती थी.
अंजलि ने ऐसे खरीदी थी स्कूटी
जिस जुपिटर स्कूटी को आरोपियों की कार ने टक्कर मारी थी, वो स्कूटी अंजलि ने करीब पांच साल किश्तों पर ली थी. स्कूटी की आखिरी किश्त अब बस खत्म ही होने वाली थी. मगर किश्त खत्म होने से पहले खुद अंजलि की सांसें ही खत्म कर दी गई.
(साथ में आज तक ब्यूरो)