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दिल्ली दंगों का एक सालः वो मंजर याद कर आज भी खौफजदा हो जाते हैं लोग

दिल्ली का शिव विहार इलाका दंगों से बेहद प्रभावित हुआ था. उस इलाके में जब हमारी टीम लोगों से मिलकर 25 फरवरी 2020 की बात कर रही थी, तो उनके के चेहरों पर दंगों का डर साफ नजर आ रहा था. उपद्रवियों ने पूरे इलाके में तोड़-फोड़ और आगजनी की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

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दंगा पीड़ितों के चेहरों पर अपनों को खोने का दर्द साफ झलकता है (फोटो- हिमांशु मिश्रा)
दंगा पीड़ितों के चेहरों पर अपनों को खोने का दर्द साफ झलकता है (फोटो- हिमांशु मिश्रा)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • फरवरी 2020 में भड़क उठा था दंगा
  • मारे गए थे 53 लोग, 500 से ज्यादा थे घायल
  • पीड़ितों को आज भी डराती हैं दंगे की दर्दनाक तस्वीरें

देश की राजधानी दिल्ली में ठीक एक साल पहले उत्तर पूर्वी जिला दंगों की चपेट में आ गया था. दंगों की बरसी पर जहां उस इलाके में पुलिस-प्रशासन सतर्क नजर आ रहा है, वहीं स्थानीय लोग आज भी वो मंजर याद कर सहम जाते हैं. उनकी आंखों में हिंसा का खौफ साफ दिखाई देता है. आजतक की टीम ने उस इलाके में जाकर दंगा पीड़ितों और प्रभावित लोगों से बातचीत की.

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दिल्ली का शिव विहार इलाका दंगों से बेहद प्रभावित हुआ था. उस इलाके में जब हमारी टीम लोगों से मिलकर 25 फरवरी 2020 की बात कर रही थी, तो उनके के चेहरों पर दंगों का डर साफ नजर आ रहा था. उपद्रवियों ने पूरे इलाके में तोड़-फोड़ और आगजनी की कई वारदातों को अंजाम दिया था. उसी जगह पर हमारी टीम ने निजामुद्दीन नाम के एक शख्स से मुलाकात की.

निजामुद्दीन ने दंगे में अपने भाई को अपनी आंखों के सामने मरते देखा था. उनका घर शिव विहार इलाके में भी है. घर के साथ ही उनकी अपनी बेकरी भी है. उस दिन यानी 25 फरवरी 2020 से पहले ही निजामुद्दीन अपने भाई के साथ बाहर किसी समारोह में गए थे. निजामुद्दीन का कहना है कि 25 फरवरी की शाम को उनके पास किसी पड़ोसी का फोन गया कि उनकी बेकरी को उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया है.

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ये सुनकर निजामुद्दीन तुंरत अपने भाई जमालुद्दीन के साथ अपनी बेकरी के लिए निकले पड़े. लेकिन बेकरी पहुंचने से थोड़ा पहले ही वो दंगाईयों के हत्थे चढ़ गए. दंगाईयों ने उन पर और उनके भाई पर लाठी और डंडे से हमला कर दिया. निजामुद्दीन के सिर पर 15 टांके आए. लेकिन जमालुद्दीन को वहशियों की भीड़ ने पीट-पीट कर वहीं कत्ल कर दिया.

निजामुद्दीन बताते हैं कि उस वक्त जो डर उन्होंने महसूस किया था. वो बयान नहीं किया जा सकता. सरकार और कुछ सामाजिक लोगों ने उनकी मदद की और निजामुद्दीन की बेकरी फिर चल पड़ी है. लेकिन भाई के खोने का गम उनके चेहरे पर साफ नजर आता है. यहीं से करीब एक किलोमीटर दूर अनिल मिष्ठान भंडार के गोदाम में भी दंगाइयों ने आग लगा दी थी. 

आग तो उसी दिन रात में बुझ गई थी लेकिन जब 27 फरवरी 2020 को हिंसा थमने के बाद लोग गोदाम में सफाई करने पहुंचे तो वहां से 20 साल के दिलबर नेगी की लाश बुरी तरह से जली हालत में मिली. दिलबर के दोनों हाथ और पैर कटे हुए थे. साफ था कि दंगाइयों ने पहले उसके हाथ और पैर काटे फिर उसे जलती आग में फेंक दिया था. दिलबर के चाचा श्याम आज भी उसी दुकान में काम करते हैं. वो लस्सी बनाकर बेचते हैं. श्याम ने हमारी टीम से कहा कि उन्हें समझ नहीं आया कि किसी गरीब की जान लेकर किसी को क्या हासिल होता है.
 
गांव में दिलबर के गरीब बूढ़े मां पिता रहते हैं. वो अभी भी सदमे में है. किसी को यकीन नहीं हुआ था कि आखिर एक 20 साल के लड़के को किसी ने इस तरह से कत्ल क्यों कर दिया. दुकान के मालिक अनिल के मुताबिक दिलबर बेहद मेहनती लड़का था. वो रात में वहीं रुक जाया करता था. उस रात भी वो वहीं पर था और दंगाइयों के हाथ लग गया था.

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अनिल की मिठाई की दुकान से थोड़ा आगे. एक छोटे से मकान में नरगिस अपने तीन बच्चों के साथ रहती है. नरगिस के पति मुर्सलीन कबाड़ का काम करते थे. 24 फरवरी 2020 को वो घर से 2 बजे अपना ठेला लेकर निकले और फिर कभी लौटकर घर नहीं आए. नगरिस का कहना है कि वो हर दिन किसी ना किसी अस्पताल के चक्कर काटती रही लेकिन कहीं भी मुर्सलीन की जानकारी नहीं मिली. 

उसकी पत्नी कभी घायलों की लिस्ट देखती तो कभी मृतकों के नाम चेक करती थी. दंगे के 19 दिन बाद पुलिस से पता लगा कि उसकी लाश नाले से बरामद हुई. सिर पर तलवार से हमले के निशान थे. मुर्सलीन की मदद सरकार और सामाजिक संस्था जमात-ए-उलेमाए-हिंद ने भी की.

उसी दंगे में आईबी के कर्मचारी अंकित शर्मा की भी हत्या कर दी गई थी. उनकी लाश उनके घर के पास ही एक नाले से बरामद हुई थी. अंकित के भाई अंकुर ने आजतक से कहा कि उनके परिवार की मांग है कि उनके भाई का केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में भेजा जाए और दोषियों को कड़ी सजा मिले. दंगे के बाद ही अंकित का परिवार अपना घर किराए पर देकर अब गाजियाबाद रहने चला गया है. दिल्ली सरकार की तरफ से अंकित के परिवार को मुआवजा दिया गया था. लेकिन परिवार का कहना है कि अंकित ऑनड्युटूी मारा गया. मगर उन्हें उसका मुआवजा नहीं मिला.

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