23 साल के पहलवान सागर की हत्या के मामले में आरोपी सुशील कुमार को लेकर अब कई जगह से आवाज में उठनी शुरू हो गई हैं कि उन्हें मिले पदक और पुरस्कार उनसे वापस लिए जाने चाहिए. ऐसे में यह पुरस्कार और पदक सुशील कुमार से लिए जा सकते हैं या नहीं, इसका जवाब जानना भी बेहद जरूरी है.
देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री भी सुशील कुमार को मिला हुआ है. इसके अलावा अर्जुन अवार्ड से लेकर राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड तक सुशील कुमार के नाम है. दो बार ओलंपिक जीतने के अलावा सुशील कुमार के खाते में कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड भी शामिल है.
यानी सुशील कुमार को जो अवार्ड मिले हैं उनको दो कैटेगरी में विभाजित किया जा सकता है पहला अंतरराष्ट्रीय पदक और दूसरे राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जीते ओलंपिक पदक क्या वापस लिए जा सकते हैं या नहीं इसके लिए जिन खिलाड़ियों का नाम अपराध से जुड़ा या वह जेल गए क्या उनसे पदक वापस लिए गए?
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यह जानने के लिए हमने ओलंपिक खेलों से जुड़ी वेबसाइट को खंगाला और उसमें पता लगा कि सुशील की तरह 13 और ओलंपियन भी ऐसे हैं जिन्हें हत्या, मानव तस्करी या यौन शोषण से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया और जेल भी भेजा गया. कुछ मामलों में ओलंपियन खिलाड़ियों को कोर्ट ने दोषी भी करार दिया. जिसमें ब्लेड रनर के तौर पर मशहूर पैराओलंपियन ऑस्कर पिस्टोरियस का नाम भी शामिल है जिन्होंने अपनी ही गर्लफ्रेंड की 2013 में वैलेंटाइन डे के दिन गोली मारकर हत्या कर दी थी.
लेकिन ओलंपिक पदक ऑस्कर पिस्टोरियस से भी वापस नहीं लिया गया क्योंकि ओलंपिक के लिए बनी कमेटी उन्हीं खिलाड़ियों से पदक वापस ले सकती है जो शारीरिक परीक्षण के दौरान स्टीरॉयड्स के सेवन के दोषी पाए जाएं. पदक मिलने के बाद अगर कोई खिलाड़ी किसी अपराध को अंजाम देता है तो उस आधार पर उसके अर्जित किए गए पदक वापस नहीं लिए जा सकते. ऐसे में ओलंपिक पदक सुशील कुमार से भी वापस नहीं लिया जा सकता क्योंकि हत्या के मामले में आरोपी सुशील कुमार पर अगर कोर्ट में भी अपराध साबित हो जाता है, तो ओलंपिक पदक उनके पास ही रहेंगे.
जहां तक उनको राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार के द्वारा दिए गए सम्मान और अवार्ड की बात है तो वह भी उनके दोषी साबित होने से पहले वापस नहीं लिए जा सकते. खेल मंत्रालय की तरफ से भी साफ किया गया है कि जब तक कोर्ट द्वारा सुशील कुमार को हत्या के मामले में दोषी नहीं ठहराया जा सकता तब तक खेल मंत्रालय भी राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड या फिर अर्जुन अवार्ड को वापस लेने के लिए राष्ट्रपति को नहीं लिख सकते. क्योंकि हमारे देश में माना जाता है कि जब तक कोर्ट किसी मामले में किसी आरोपी को दोषी साबित ना कर दे, तब तक उस व्यक्ति को निर्दोष माना जाता है.
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हमारे देश में पद्म पुरस्कारों की शुरुआत 1954 में हुई थी. यानी तकरीबन पद्म पुरस्कारों को मिलने का सिलसिला शुरू हुए 7 दशक पूरे होने को है. लेकिन अभी तक के पद्म पुरस्कारों के इतिहास में भारत सरकार की तरफ से किसी भी व्यक्ति को जिसे पद्म पुरस्कार दिया गया है, उससे ये पुरस्कार सरकार के द्वारा वापस नहीं लिया गया है. ऐसे में सुशील कुमार से पद्मश्री पुरस्कार सरकार द्वारा वापस लेने की गुंजाइश भी ना के बराबर है. हालांकि सरकार पर अपना विरोध दर्ज करने के लिए पद्म पुरस्कारों को लौटाने या फिर किसी व्यक्ति के नाम की घोषणा होने के बाद ठुकराने के कई मामले जरूर हैं.
जैसे मशहूर लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में 1984 में पद्म भूषण वापस कर दिया था. एक्टर सलमान खान के पिता सलीम खान ने 2015 में पद्मश्री लेने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्होंने कहा कि उनसे कहीं जूनियर एक्टरों को यह पुरस्कार बरसों पहले ही दे दिया गया था.
जस्टिस जे एस वर्मा के परिवार ने भी मरणोपरांत पद्म भूषण लेने से इनकार कर दिया था क्योंकि उन्होंने कहा कि जस्टिस वर्मा कभी पुरस्कारों के पीछे नहीं भागे. निर्भया केस के बाद महिलाओं पर हो रहे यौन हिंसा के मामलों में कानून में बदलाव जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों के बाद ही हुआ था. इसके अलावा भी दर्जन भर से ऊपर ऐसे लोग रहे हैं जिन्होंने यादव पद्म पुरस्कार वापस कर दिए या फिर लेने से इनकार कर दिया. लेकिन भारत सरकार की तरफ से किसी भी व्यक्ति को पद्म पुरस्कार देने के बाद अभी तक यह उससे वापस नहीं लिया गया है.