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दिल्ली पुलिस ने श्रद्धा की हत्या का केस सुलझाते हुए आफताब को गिरफ्तार कर लिया है. श्रद्धा मर्डर केस में दिल्ली पुलिस के लिए बड़ी चुनौती सबूत जुटाने की होगी. दरअसल, दिल्ली पुलिस के सामने हत्याकांड का कबूलनामा करने वाला आफताब अदालत में बयान से पलट भी सकता है.
पुलिस का दावा है कि आफताब ने अपना गुनाह कबूल कर लिया है, लेकिन श्रद्धा के केस में सबूत जुटाने और केस को मजबूती से अदालत के सामने रखना बड़ी चुनौती है. लिहाजा, पुलिस को श्रद्धा मर्डर केस में फॉरेंसिक और साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन के साथ ही हाईटेक तकनीक से सबूत जुटाने होंगे.
इस डिटेल खबर में हम आपको बताएंगे कि पुलिस के पास फिलहाल क्या सबूत हाथ लगे हैं. वह किन-किन तरीकों से जैसे ब्रेन मैपिंग, नार्को टेस्ट और लाई डिटेक्टर टेस्ट का सहारा लेकर केस के लिए ठोस आधार तैयार करेगी और कैसे हत्याकांड की कड़ियों को जोड़ेगी…
पुलिस के पास अभी तक सिर्फ ये नाम मात्र के सबूत हैं
न लाश न मेडिकोलीगल, अब इन साइंटिफिक तरीकों की पुलिस लेगी मदद
दिल दहला देने वाले श्रद्धा हत्याकांड में न लाश है, न कोई मेडिको-लीगल केस है, न कोई पोस्टमार्टम रिपोर्ट है और न ही मृत्यु प्रमाण पत्र है. अब सवाल यह है कि जब पुलिस को मौका-ए-वारदात से न कोई नमूने मिले हैं, न ही लाश है, तो फिर किस तरह का साइंटिफिक इन्वेस्टिगेशन किया जाएगा?
यह कैसे साबित किए जाएगा कि श्रद्धा की हत्या महरौली के फ्लैट में हुई. लाश के टुकड़े वहीं किए गए. टुकड़ों को फ्रिज में रखा गया. लाश के टुकड़ों को एक-एक कर जंगल में फेंका गया. फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेशन की बात करें तो, अब एजेंसी के पास रास्ता बचता है कि वह डीएनए प्रोफाइलिंग, फिंगरप्रिंट्स, सुपरपोजिशन, फेशियल रिकंस्ट्रक्शन, सीसीटीवी फुटेज और मोबाइल डंप डाटा के जरिए सबूत जुटाए.
डीएनए से करना होगा मिलान
सबसे पहले बात करते हैं कि डीएनए के जरिए कैसे सबूत हासिल किए जा सकते हैं? दरअसल, दिल्ली पुलिस को सबसे पहले मौका-ए-वारदात यानी फ्लैट से आरोपी आफताब और श्रद्धा के कपड़ों की जांच करनी होगी. अगर पुलिस को वह कपड़े मिलते हैं, जो श्रद्धा ने पहने थे, तो साइंटिस्ट उन कपड़ों से खून से निशान (ब्लड स्टेन) और नमूने ले सकती है.
इन ब्लड स्टोन के जरिए डीएनए प्रोफाइलिंग की जा सकती है, जिससे आरोप साबित करने में मदद मिलेगी. यदि आरोपी के घर से लड़की का कोई बाल या नाखून का टुकड़ा मिलता है, तो डीएनए प्रोफाइलिंग करके कनेक्टिंग चेन तैयार की जा सकती है.
कैसे हो सकता है श्रद्धा का डीएनए टेस्ट मिलान?
दरअसल, डीएनए टेस्ट के मिलान के लिए सबसे अहम चीज है मरने वाले के खून या लार या फिर टूथ लिक्विड का मिलना. इस केस में पुलिस को अभी तक इनमें से कोई भी चीज नहीं मिली है. पुलिस की कोशिश होगी कि वो फ्रिज से ब्लड स्टेन निकाल सके, ताकि श्रद्धा के परिजनों ने खून का मिलान किया जा सके. सिर का हिस्सा मिलता है, तो दांतों में मौजूद लिक्विड के जरिए डीएनए का मिलान किया जा सकता है.
किया जा सकता है ब्रेन मैपिंग टेस्ट
आमतौर पर ऐसे केस में देखा जाता है कि पुलिस आरोपी का ब्रेन मैपिंग टेस्ट करती है. इसके जरिए पता लगाया जाता है कि वह कितना सच बोल रहा है, कितना झूठ. इस प्रक्रिया में आरोपी के सिर के हिस्से में ट्रायोड लगाए जाते हैं.
स्क्रीन पर आरोपी को केस से जुड़ी हुई तस्वीरें, जगह की वीडियो दिखाए जाते हैं. यह सब देखने के बाद आरोपी का दिमाग किस तरह रिएक्ट करता है, इसे मशीन के जरिए रिकॉर्ड किया जाता है. इसके बाद पूरा कंप्यूटराइज्ड एनालिसिस के बाद रिपोर्ट तैयार होती है.
नार्को एनालिसिस टेस्ट की मदद ले सकती है पुलिस
ऐसे मामले में जब सबूत पुलिस के पास कम हो, तो पुलिस नार्को एनालिसिस टेस्ट भी करती है. इसके जरिए अर्ध-बेहोशी की हालत में आरोपी से केस के बारे सवाल पूछे जाते हैं. उनके जवाब के बाद रिपोर्ट तैयार की जाती है कि आखिर इस वारदात के पीछे क्या वजह थी और कैसे अंजाम दिया गया था.
लाई डिटेक्टर टेस्ट जोड़ सकता है कत्ल की कड़ियां
अगर जांच एजेंसी को इस बात का शक होता है कि आरोपी झूठ बोल रहा है, तो इस हालत में उसका लाई डिटेक्टर टेस्ट भी करवाया जा सकता है. इसमें केस से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं. आरोपी को जवाब हां या न में देने होते हैं. इसका एनालिसिस बताता है कि यह किन-किन सवालों का जवाब आरोपी ने सही दिया है और किन जवाबों में झूठ बोला है.
मोबाइल लोकेशन और डंप डाटा से मिलेगा सबूत
दिल्ली पुलिस श्रद्धा और आफताब के मोबाइल डंप डाटा के जरिए भी यह पता लगा सकती है कि वारदात के वक्त उस जगह पर कितने मोबाइल फोन एक्टिव थे. डंप डाटा से यह पता लगाया जाता है कि उस टावर में खासकर उस जगह के आस-पास कितने मोबाइल नंबर उस वक्त सक्रिय थे.
जब इस वारदात को अंजाम दिया गया था. आस-पास के सीसीटीवी फुटेज से पुलिस यह जानकारी ले सकती है कि हत्या के दिन और उसके बाद आफताब की गतिविधियां कैसी थीं और वह क्या कर रहा था. उसके फ्लैट पर पर किन लोगों का आना-जाना था.
सबसे अहम कड़ी श्रद्धा के सिर का हिस्सा
इस केस में पुलिस और जांच अधिकारियों के सामने मुश्किल ये है कि लाश कंकाल और हड्डियों में तब्दील हो चुकी है. लिहाजा, ये कैसे साबित किया जाए कि ये हड्डियां श्रद्धा की ही हैं. दिल्ली पुलिस के अधिकारियों को श्रद्धा की खोपड़ी की तलाश है. दरअसल, खोपड़ी से ही मरने वाले की पहचान साबित की जा सकती है.
बरामद खोपड़ी के सुपरपोजिशन टेस्ट किया जा सकता है. इससे पता चलता है कि खोपड़ी मृतक की है या नहीं. जाहिर है कि मरने वाले की पहचान साबित होते ही क्राइम की कड़ियां और सबूत जोड़कर एविडेंस की चेन तैयार की जा सकेगी.
सुपर इंपोजीशन तकनीक में 15 बिंदुओं को परखा जाता है
फेशियल सुपरपोजिशन एक फॉरेंसिक तकनीक है. इस टेस्ट में साइंटिस्ट के पास मृतक की खोपड़ी और उसकी तस्वीर होती है. वैज्ञानिक कंप्यूटर में एक विशेष सॉफ्टवेयर की मदद से खोपड़ी और तस्वीर का मिलान करते हैं. इस तकनीक से कंकाल बनी खोपड़ी के खास हिस्सों मसलन ललाट, मुंह और माथे के हिस्सों का तस्वीर से मिलान किया जाता है.
इस टेस्ट से साबित हो जाता है कि खोपड़ी और फोटो के फीचर मिलते हैं. इस प्रयोग में टेक्निकल कैलकुलेशन के जरिए दोनों तस्वीरों के मॉर्फोलॉजिकल फीचर्स के अध्ययन किया जाता है. इनमें तस्वीरों के ललाट, भौं, नाक, ग्ला, होंठ, आंख, चेहरे की बनावट जैसे करीब 15 बिंदुओं को परखा जाता है.
क्या है फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक
अगर पुलिस को श्रद्धा के सिर का हिस्सा मिलता है, तो पुलिस एक और तकनीक का इस्तेमाल कर सकती है. इसे फेशियल रिकंस्ट्रक्शन कहा जाता है. इसमें कंकाल खोपड़ी में मांस और त्वचा जैसा एक खास तरह का मैटीरियल भरा जाता है. इस प्रक्रिया में बाकायदा पूरा चेहरा मैनुअली बनाया जाता है. इसमें आंख, कान, नाक और होंठ सब हिस्से आर्टिफिशियल तरीके से लगाए जाते हैं.
फेशियल रिकंस्ट्रक्शन तकनीक से मृतक का चेहरा बना दिया जाता है. आखिर में इस चेहरे को मृतक या संदिग्ध की फोटो से मिलान किया जाता है. साइंटिफिक और फॉरेंसिक इंवेस्टिगेशन की बात करें, तो भारत में कई ऐसे बड़े उदाहरण मिलते हैं, जहां पर इनके जरिए सबूत और गवाह न होने के बावजूद भी केस को अंजाम तक पहुंचाया गया.
निठारी कांड में हुआ था डीएनए और सुपरपोजिशन
निठारी हत्याकांड की बात करें, तो इस दौरान भी जांच एजेंसियों के पास बच्चों की पहचान का कोई रास्ता नहीं था. मगर, इस केस में भी जांच एजेंसियों ने चंडीगढ़ फॉरेंसिक लैब से सभी बच्चों के डीएनए प्रोफाइलिंग कराई थी. उनके दांतों से लिक्विड लिए गए और उनके माता-पिता के ब्लड से मिलाया गया. इसके बाद उनकी पहचान की जा सकी.
जिन बच्चों की पहचान डीएनए से नहीं हो सकी, उन बच्चों की पहचान के लिए वैज्ञानिकों ने फेशियल रीकनस्ट्रक्शन तकनीक का इस्तेमाल किया. फेशियल सुपरपोजिशन के जरिए उनके कंकालों को उनकी पहचान दी गई. इसके बाद आरोपियों को सजा हुई. गौरतलब है कि मुंबई के शीना बोरा मर्डर केस में सुपर इंपोजीशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था.