Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की धारा 96 (Sction 96) से लेकर धारा 106 (Section 106) तक आत्मरक्षा (Self defense) के प्रावधान किए गए हैं. इसी तरह से आईपीसी की धारा 105 (IPC Section 105) संपत्ति की निजी रक्षा के अधिकार का प्रारंभ और जारी रहना परिभाषित करती है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 105 इसके बारे में क्या बताती है?
आईपीसी की धारा 105 (Indian Penal Code Section 105)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 105 (Section 105) में संपत्ति की निजी रक्षा (Personal protection of property) के अधिकार का प्रारंभ और जारी रहना (Start and continue) बताया गया है. IPC की धारा 105 के अनुसार, सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार (Right of private defense) तब प्रारंभ होता है, जब सम्पत्ति के संकट की युक्तियुक्त आशंका (Reasonable apprehension of distress) प्रारंभ होती है. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार, चोरी के विरुद्ध (Against theft) अपराधी के संपत्ति सहित पहुंच से बाहर हो जाने तक अथवा या तो लोक प्राधिकारियों की सहायता (Assistance to public authorities) अभिप्राप्त कर लेने या संपत्ति प्रत्युद्धत (Property contested) हो जाने तक बना रहता है.
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार (Right of private defense) लूट के विरुद्ध (Against robbery) तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी किसी व्यक्ति की मृत्यु या उपहाति, या सदोष अवरोध (Death or hurt, or wrongful restraint) कारित करता रहता या कारित करने का प्रयत्न करता रहता है, अथवा जब तक तत्काल मृत्यु (Immediate death) का, या तत्काल उपहति (Immediate hurt) का, या तत्काल वैयक्तिक अवरोध (Immediate personal inhibition) का, भय बना रहता है.
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार (Right of private defense) आपराधिक अतिचार या रिष्टि के विरुद्ध (against criminal trespass or mischief) तब तक बना रहता है, जब तक अपराधी आपराधिक अतिचार या रिष्टि करता रहता है. संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार रात्री गृह-भेदन के विरुद्ध (Against night-breaking) तब तक बना रहता है, जब तक ऐसे गृहभेदन से आरंभ हुआ गृह-अतिचार होता रहता है.
अगर इसे आम भाषा में कहें तो सम्पत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार (Right of private defense) तब शुरू होता है जब सम्पत्ति के खतरे की आशंका प्रारम्भ (Threat to property) होती है और तब तक बनी रहती है जब तक किसी लोक प्राधिकारी से सहायता के लिये आवेदन या सहायता प्राप्त न कर ली जाये या फिर जब तक खतरे की आशंका बनी रहती है.
इसे भी पढ़ें--- IPC Section 104: मौत के अलावा होने वाले नुकसान से जुड़ी है आईपीसी की धारा 104
क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.