भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धाराओं में कोर्ट (Court), पुलिस (Police) और अन्य कानूनी एजेंसियों (Legal agencies) की कार्य प्रणाली से जुड़े प्रावधान (Provision) दर्ज हैं. इसी प्रकार से आईपीसी (IPC) की धारा 108 (Section 108) में दुष्प्रेरक, बहकानेवाले या उकसानेवाले के बारे में बताया गया है. चलिए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 108 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 108 (Indian Penal Code Section 108)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 108 (Section 108) में दुष्प्रेरक, बहकानेवाले या उकसानेवाले व्यक्ति यानी दुष्प्रेरण करने वाले के बारे में कानूनी जानकारी दी गई है. IPC की धारा 108 के अनुसार, वह व्यक्ति अपराध का दुष्प्रेरण (Abets an offence) करता है, जो अपराध (offence) के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abets) करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जो अपराध होता है, यदि वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति (law-abiding person) द्वारा उसी आशय या ज्ञान से, जो दुष्प्रेरक का है, किया जाता है.
साधारण भाषा में समझें तो जो व्यक्ति अपराध के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है या ऐसे कार्य के किए जाने का दुष्प्रेरण करता है, जिससे अपराध कारित हो, यदि वह कार्य अपराध करने के लिए विधि अनुसार समर्थ व्यक्ति द्वारा दुष्प्रेरण के आशय या ज्ञान से किया गया हो, उसे दुष्प्रेरक कहा जाता है, यानी बहकानेवाले या उकसानेवाले व्यक्ति को दुष्प्रेरक (Abettor) कहा जाता है, जो दुष्प्रेरण (Abets) करता है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.