भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में जुर्म (Offence) और उनकी सजा (Punishment) के बारे में जानकारी दर्ज हैं. साथ ही आईपीसी में कोर्ट (Court), पुलिस (Police) और अन्य कानूनी एजेंसियों (Legal agencies) की कार्य प्रणाली से जुड़े प्रावधान भी मिलते हैं. इसी तरह से आईपीसी (IPC) की धारा 111 (Section 111) में दुष्प्रेरक का दायित्व, जब एक कार्य का दुष्प्रेरण किया गया है और उससे भिन्न कार्य किया गया है. चलिए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 111 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 111 (Indian Penal Code Section 111)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 111 (Section 111) में बताया गया है कि जब कोई उकसाने वाला (abettor) किसी बात के लिए किसी व्यक्ति को उकसाता है मगर वो शख्स वो काम नहीं करता जिसके लिए उसे उकसाया गया है बल्कि वो दूसरा कार्य करता है. IPC की धारा 111 के अनुसार, जब कि किसी एक कार्य का दुष्प्रेरण (Abetment) किया जाता है, और कोई भिन्न कार्य किया जाता है, तब दुष्प्रेरक (abettor) उस किए गए कार्य के लिए उसी प्रकार से और उसी विस्तार तक दायित्व के अधीन (Subject to liability) है, मानो उसने सीधे उसी कार्य का दुष्प्रेरण किया हो:
परन्तुक-परन्तु (proviso-provided) यह तब जब कि किया गया कार्य दुष्प्रेरण का अधिसम्भाव्य परिणाम (Likely outcome) था और उस उकसाहट के असर के अधीन या उस सहायता (Help) से या उस षडयंत्र के अनुसरण (Following a conspiracy) में किया गया था जिससे वह दुष्प्रेरण गठित होता है.
इसे भी पढ़ें--- IPC Section 110: उकसावे में आकर दूसरे मकसद से काम करने की सजा बताती है IPC धारा 110
क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.