Indian Penal Code: सामान्य जनता या दस से अधिक व्यक्ति अगर किसी अपराध का दुष्प्रेरण करते हैं तो वह अपराध की श्रेणी में ही आता है. मतलब ये है कि ऐसा करने वाले लोग अपराध के भागीदार होंगे. भारतीय दंड संहिता की धारा 117 (Section 117) इसी पर आधारित है. आइए जान लेते हैं कि आईपीसी की धारा 117 इस बारे में क्या प्रावधान करती है?
आईपीसी की धारा 117 (Indian Penal Code Section 117)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 117 (Section 117) में जनता या दस से अधिक व्यक्तियों द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध (Offense of abetment) परिभाषित (Define) किया गया है. IPC की धारा 117 अनुसार, जो भी कोई सामान्य जन (Public), या दस से अधिक व्यक्तियों की किसी भी संख्या या वर्ग द्वारा किसी अपराध (Offence) के किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment) करता है, तो वह दंडनीय अपराध (Punishable offence) का भागीदार है. इसके लिए एक अवधि के लिए कारावास (Imprisonment) का प्रावधान है, जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक जुर्माना (Monetary penalty) भी लगाया जा सकता है. या फिर दोनों ही तरह से दंडित किया जा सकता है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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