Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं में उकसाने और बहकाने को अलग-अलग तरीके परिभाषित किया गया है. इसी प्रकार आईपीसी की धारा 132 में ऐसे अपराध की सजा का प्रावधान किया गया है, जिसमें किसी को उकसाकर सेना में विद्रोह करा दिया जाए. तो चलिए जान लेते हैं कि IPC की धारा 132 इस संगीन अपराध के विषय में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 132 (Indian Penal Code Section 132)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 132 (Section 132) में विद्रोह का दुष्प्रेरण यदि उसके परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए, तो उसके बारे में कानूनी प्रावधान किया गया है. IPC की धारा 132 के अनुसार, जो कोई भारत सरकार की सेना (Army), नौसेना (Navy) या वायुसेना (Air Force) के किसी अधिकारी, सैनिक, नौसैनिक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह किए जाने का दुष्प्रेरण (Abetment to revolt) करेगा, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह हो जाए, तो ऐसा व्यक्ति संगीन अपराध (Serious offense) का दोषी (Guilty) माना जाएगा.
सजा का प्रावधान
विद्रोह के लिए उकसाने का दोषी (Guilty) पाए जाने पर सजा-ए-मौत (Death sentence) या आजीवन कारावास (Life imprisonment) या दस वर्ष तक कारावास और आर्थिक दण्ड (Monetary penalty) का प्रावधान किया गया है. आपको बता दें कि यह एक गैर-जमानती (Non-bailable) और संज्ञेय अपराध (Cognizable offenses) है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं (Not negotiable) है. ऐसे मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालय (Sessions court) में की जाती है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.