Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं में अपराध और सजा को लेकर कई कानूनी प्रावधान (Lawful Provisions) किए गए हैं. इसी तरह से आईपीसी की धारा 145 बताया गया है कि गैरकानूनी सभा में शामिल होना या जारी रखना अपराध है, जबकि उसे तितर-बितर करने का आदेश दिया गया हो. चलिए जान लेते हैं कि आईपीसी की धारा 145 इस बारे में क्या कहती है?
आईपीसी की धारा 145 (Indian Penal Code Section 145)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 145 (Section 145) के मुताबिक, किसी विधिविरुद्ध जमाव (Unlawful assembly) में यह जानते हुए कि उसके बिखर जाने का समादेश दे दिया गया है, सम्मिलित होना या उसमें बने रहना अपराध माना गया है. IPC की धारा 145 के अनुसार, जो कोई किसी विधिविरुद्ध जमाव (Unlawful assembly) में यह जानते हुए कि ऐसे विधिविरुद्ध जमाव को बिखर जाने का समादेश (Command to disperse) विधि द्वारा विहित प्रकार से दिया गया है, सम्मिलित होगा, या बना रहेगा, वह अपराध का भागीदार (Partner of crime) माना जाएगा.
सजा का प्रावधान (Punishment provision)
ऐसा करने वाले को किसी भांति के कारावास से दंडित (Punished with imprisonment) किया जाएगा. जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकती है. या उस पर आर्थिक जुर्माना (Monetary penalty) किया जाएगा. या फिर उसे दोनों ही तरह से दंडित किया जाएगा. यह एक जमानती (Bailable) और संज्ञेय अपराध (Cognizable offenses) है. जो किसी भी मजिस्ट्रेट (Magistrate) द्वारा विचारणीय है. यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं (Not negotiable) है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.