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IPC Section 180: बयान पर हस्ताक्षर करने से किया इनकार तो लागू होती है ये धारा

आईपीसी की धारा 180 (IPC Section 180) में ऐसे शख्स के बारे में बताया गया है, जो कथन यानी बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता है. चलिए जान लेते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 180 इस बारे में क्या बताती है?

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कथन पर हस्ताक्षर करने से इनकार किए जाने के बाद लागू होती है ये धारा
कथन पर हस्ताक्षर करने से इनकार किए जाने के बाद लागू होती है ये धारा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कथन पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया तो लगेगी ये धारा
  • अंग्रेजी शासनकाल में लागू हुई थी आईपीसी
  • जुर्म और सजा का प्रावधान बताती है IPC

Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में कई प्रकार के अपराध (Offence) और उनकी सजा को परिभाषित (Define) किया गया है. ऐसे ही आईपीसी की धारा 180 (IPC Section 180) में ऐसे शख्स के बारे में बताया गया है, जो कथन यानी बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करता है. चलिए जान लेते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 180 इस बारे में क्या बताती है?

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आईपीसी की धारा 180 (Indian Penal Code Section 180) 
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 180 (Section 180) में उस शख्स के खिलाफ प्रक्रिया को बताया गया है, जो बयान पर हस्ताक्षर (Sign the statement) करने से इंकार करता है. IPC की धारा 180 के अनुसार, जो कोई अपने द्वारा किये गये किसी कथन पर हस्ताक्षर करने को ऐसे लोक-सेवक (Public Servant) द्वारा अपेक्षा किये जाने पर, जो उससे यह अपेक्षा करने के लिये वैध रूप से सक्षम (Legally capable) हो कि वह उस कथन पर हस्ताक्षर करे, उस कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करेगा, वह अपराधी के तौर पर सजा का हकदार (Deserving of punishment) होगा.

सजा का प्रावधान (Punishment provision)
ऐसा करने वाले को साधारण कारावास से दंडित (Punished with imprisonment) किया जाएगा. जिसकी अवधि तीन मास तक की होगी. या उस पर आर्थिक जुर्माना (Monetary penalty) किया जाएगा, जो पांच सौ रुपये तक का हो सकेगा. या फिर उसे दोनों तरह से दंडित किया जायेगा. यह एक जमानतीय (Bailable) और गैर-संज्ञेय अपराध (Non-cognizable offenses) है. अध्याय 26 के उपबन्धो के अधीन (Subject to the provisions) रहते हुए वह न्यायालय (Court) जिसमे अपराध किया गया है या अपराध न्यायालय में नहीं किया गया है तो कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है. यह अपराध समझौता योग्य नहीं है.

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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.

अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

 

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