Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं में सबूतों (Evidence), बयानों (Statements) और जांच (Investigations) को लेकर भी कानूनी प्रावधान (Legal provisions) किए गए हैं. इसी तरह से आईपीसी की धारा 192 (IPC Section 192) में मिथ्या साक्ष्य (False evidence) के लिए सजा का प्रावधान (Punishment provision) किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 192 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 193 (Indian Penal Code Section 193)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 193 (Section 193) में अदालती कार्यवाही के दौरान झूठे सबूत पेश करने पर सजा का प्रावधान किया गया है. IPC की धारा 193 के अनुसार, न्यायिक कार्यवाही में मिथ्या साक्ष्य प्रविष्ट करने वाले व्यक्ति को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 में दंड का प्रावधान किया गया है. इस संबंध में कोई व्यक्ति किसी के दस्तावेज अथवा इलेक्ट्रॉनिक अभिलेखो में छेड़छाड़ करता है तो वह धारा 193 के तहत अपराधी माना जाएगा.
सजा का प्रावधान (Punishment provision)
ऐसा करने वाले दोषी को किसी भांति के कारावास से दंडित (Punished with imprisonment) किया जाएगा. जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी. साथ ही उस पर जुर्माना (Fine) किया जाएगा. या फिर उसे दोनों तरह से दंडित किया जाएगा. यह एक जमानतीय (Bailable) और गैर-संज्ञेय अपराध (Non-cognizable offenses) है. जिसकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट (First class magistrate) द्वारा की जा सकती है. यह अपराध समझौता योग्य नहीं (Not negotiable) है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.