भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC में अपराध (Crime) और सजा के बारे में प्रावधान मिलते हैं. मगर आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि आईपीसी में क्रमानुसार एक धारा मौजूद तो है, लेकिन उसका कोई वजूद नहीं है और उस धारा को 71 साल पहले ही निरस्त कर दिया गया था. हम बात कर रहे हैं आईपीसी (IPC) की धारा 13 (Section 13) के विषय में. आइए जानते हैं, इस धारा (Section) की कहानी.
क्या थी आईपीसी (IPC) की धारा 13 (Section 13)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में सेक्शन 12 के बाद आती है, धारा 13. लेकिन क्रम में होने के बावजूद यह धारा कोई मायने नहीं रखती. क्योंकि आईपीसी की धारा 13 को 'विधि अनुकूलन आदेश, 1950' के माध्यम से निरस्त कर दिया गया था. इसलिए IPC की यह धारा मात्र एक संख्या बनकर रह गई है.
IPC की धारा 13 (Section 13) की कहानी
भारत में 15 अगस्त 1947 से पहले अंग्रेजों का शासन था. जबकि आईपीसी 1862 में लागू हो गई थी. इसी के चलते भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के सेक्शन 13 में ब्रिटेन की महारानी यानी क्वीन की परिभाषा (Definition of Queen) दी गई थी. Section 13 में महारानी का ही बखान मिलता था. लेकिन 1947 में जब देश आज़ाद हुआ तो उसके बाद नए कानून और संविधान का निर्माण शुरू हुआ. 26 जनवरी 1950 को देश में नया संविधान लागू हुआ तो इसके साथ ही आईपीसी की समीक्षा की गई. जब भारत आजाद था. अब हमें ब्रिटिश रानी का गुणगान करने की ज़रूरत नहीं थी. लिहाजा आईपीसी की धारा 13 को 1950 में ही एक प्रस्ताव लाकर निरस्त कर दिया गया. तभी से आईपीसी में यह धारा कोई मायने नहीं रखती.
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क्या है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
1862 में लागू हुई थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.