भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी IPC में यूं तो अपराध (Crime) और सजा (Punishment) के बारे में प्रावधान मिलते हैं. लेकिन कुछ धाराएं स्थान और व्यक्तियों के संदर्भ में हैं. ऐसी ही एक धारा 13 थी, जो ब्रिटिश क्वीन को परिभाषित करती थी. लेकिन ऐसी ही एक धारा और है, जिसके बारे में हम बताने जा रहे हैं. वो है आईपीसी की धारा 15. आइए जानते हैं, इस धारा (Section) के बारे में..
क्या है आईपीसी की धारा 15 (IPC Section 15)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में सेक्शन 14 के बाद मौजूद है, धारा 15. यह सेक्शन क्रम में तो अपनी जगह पर है, लेकिन अब यह धारा किसी काम की नहीं है. क्योंकि आईपीसी की धारा 15 को 'विधि अनुकूलन आदेश, 1937' के जरिए निरस्त कर दिया गया था. इसलिए IPC की यह धारा एक संख्या के अलावा आईपीसी में कोई मायने नहीं रखती.
दरअसल, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 15 में ब्रिटिश इंडिया की परिभाषा मिलती है. क्योंकि आईपीसी 1862 में अंग्रेजों ने लागू की थी. उस वक्त हमारे देश भारत में ब्रिटिश शासन था. इसलिए आईपीसी की धारा 15 अंग्रेजी शासन वाले भारत को परिभाषित करती थी. लेकिन 1937 में आईपीसी की समीक्षा के दौरान सेक्शन 15 को 'विधि अनुकूलन आदेश, 1937' के तहत धारा 15 को निरस्त कर दिया गया. तभी से आईपीसी की यह धारा अर्थहीन हो गई.
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क्या है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
1862 में लागू हुई थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.