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IPC Section 161 to 165: अधिकारियों के भ्रष्टाचार और जुर्म से संबंधित थीं ये धाराएं, ऐसे की गई थीं निरस्त

आईपीसी (IPC) की धारा 161 से धारा 165 तक निरस्त कर दी गईं थी. जिनका संबंध सरकारी अधिकारियों से था. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 161 से 165 तक क्यों निरस्त की गईं और उनमें क्या प्रावधान मौजूद थे?

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सरकारी अधिकारियों से संबंधित थीं ये धाराएं
सरकारी अधिकारियों से संबंधित थीं ये धाराएं
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सरकारी अधिकारियों से जुड़ी थीं आईपीसी की ये धाराएं
  • सरकारी अधिकारियों के अपराध को करती थी परिभाषित
  • 1988 में निरस्त कर दी गई थीं ये 5 धाराएं
  • ब्रिटिशकाल में लागू की गई थी आईपीसी

Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की धाराओं में अपराध (Offence) और उनकी सजा (Punishment) के साथ-साथ लोक सेवकों (Public servants) और उनसे जुड़े मामलों (cases) की जानकारी (Information) भी दर्ज है. मगर आईपीसी में कुछ धाराएं ऐसी भी हैं, जिन्हें देश आजाद होने के बाद ज़रूरत पड़ने पर निरस्त कर दिया गया. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 161 से धारा 165 तक निरस्त कर दी गईं थी. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 161 से 165 तक क्यों निरस्त की गईं और उनमें क्या प्रावधान मौजूद थे?

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आईपीसी की धारा 161 से 165 आईपीसी (IPC Section 161 to Section 165)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 161 से धारा 165 तक लोक सेवकों (Public servants) द्वारा या उनसे संबंधित अपराधों के विषय (Subjects of offenses) में प्रावधान किए गए थे. जिनमें खासकर भ्रष्टाचार और रिश्वत से जुड़े मामले हुआ करते थे. इन पांचों धाराओं में अलग-अलग तरह के अपराध शामिल थे -
 
धारा 161- सरकारी अधिकारी होते हुए या होने की शीघ्र आशा रखते हुए अपने पद के कार्य के बारे में अपनी वैध तनख्वाह के अलावा कोई और धन लेना. 

धारा 162- सरकारी कर्मचारी पर भ्रष्ट या अवैध साधनों द्वारा प्रभाव डालने के लिए अवैध धन लेना.

धारा 163- सरकारी अधिकारियों पर व्यक्तिगत प्रभाव डालने के लिए अवैध धन लेना.

धारा 164- उपरोक्त लिखित धारा 162 और 163 में परिभाषित अपराधों का लोक सेवक द्वारा अपने खिलाफ अपराध के लिए उकसाना.

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धारा 165- लोक सेवक किसी भी मूल्यवान वस्तु को प्राप्त करता है, बिना किसी विचार के, किसी भी कार्यवाही या व्यवसाय में संबंधित व्यक्ति से ऐसे लोक सेवक द्वारा लेन-देन किया जाना.

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत निरसित
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता असगर खान बताते हैं कि आईपीसी के अध्याय 9 की धारा 161 से 165 तक लोकसेवकों के भ्रष्टाचार से संबंधित प्रावधान शामिल थे. लेकिन 9 सितंबर 1988 को भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (1988 का 49) की धारा 31 के माध्यम से इन पांचों धाराओं को निरसित कर दिया गया था. और अब ये धाराएं केवल आईपीसी में एक क्रम संख्या के तौर पर ही मौजूद हैं.

इसे भी पढ़ें--- IPC Section 160: दंगा करने वालों के खिलाफ सजा का प्रावधान करती है ये धारा 

क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.

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अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

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