देश की कानून व्यवस्था (Law and order) और आईपीसी (IPC) से जुड़ी हमारी इस खास सीरिज में हम आपको सभी धाराओं (Sections) और पुलिस (Police) से जुड़ी अहम जानकारियां दे रहे हैं. इसी के तहत हमने पहले आपको आईपीसी की धारा 1 (Section 1) समेत कुछ अन्य धाराओं के बारे में बताया, अब आगे हम आपको बताने जा रहे हैं आईपीसी की धारा 2 (Section 2) के बारे में.
क्या है आईपीसी (IPC) की धारा 2 (सेक्शन 2)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) यानी आईपीसी (IPC) की धारा 2 भारत के भीतर किए गए अपराधों में सजा दिए जाने और ना दिए जाने का प्रावधान करती है. अगर कानूनी भाषा में इसकी परिभाषा पर जाएं तो आईपीसी के मुताबिक “हर व्यक्ति इस संहिता के उपबन्धों के प्रतिकूल हर कार्य या लोप के लिए, जिसका वह भारत के भीतर दोषी होगा, इसी संहिता के अधीन दण्डनीय होगा अन्यथा नहीं.”
क्या है भारतीय दंड संहिता (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
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अंग्रेजों ने लागू की थी आईपीसी
ब्रिटिश काल में लागू हुई थी आईपीसीब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1 जनवरी 1862 को लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे.