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IPC Section 28: जानिए, क्या है आईपीसी की धारा 28? क्या है प्रावधान?

IPC की धारा 28 में कूटकरण से जुड़े पहलुओं को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 28 (Section 28) क्या बताती है?

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IPC की धारा 28 कूटकरण से संबंधित है
IPC की धारा 28 कूटकरण से संबंधित है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कूटकरण से संबंधित है IPC की धारा 28
  • नकल बनाने को भी परिभाषित करती है धारा 28
  • 1862 में लागू की थी आईपीसी

Indian Penal Code यानी भारतीय दंड संहिता की धाराओं में जुर्म (Crime), सजा (Punishment) के साथ कानून (Law) से जुड़े प्रावधान (Provisions) मौजूद हैं. इसकी धारा 28 में कूटकरण से जुड़े पहलुओं को परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी (IPC) की धारा 28 (Section 28) क्या बताती है?

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आईपीसी की धारा 28 (IPC Section 28)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 28 (Section 28) कूटकरण (Counterfeiting) और किसी भी दिखने वाली चीज को जाली बनाने (Forgery) के संबंध में जानकारी देती है. IPC की धारा 28 के अनुसार अगर कोई शख्स एक चीज को दूसरी चीज के सदृश दिखना (look like) इस आशय से कारित करता है कि वह उस सादृश्य से छल-कपट (Treachery) करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा छल-कपट किया जाएगा, उसे कूटकरण (Counterfeiting) करना कहा जाता है. हालांकि कूटकरण में यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो.

साधारण शब्दों में कहें तो अगर कोई शख्स किसी चीज़ की नकल कर उसके जैसी दूसरी जीज़ बनाता है, जो असली जैसी ही दिखती है. और ऐसा करने के पीछे उसका मकसद किसी धोखा देना या छल-कपट करना है, और वो जानबूझकर ऐसा करता है तो इसे कूटकरण (Counterfeiting) कहा जाता है. 

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इसे भी पढ़ें--- IPC Section 27: जानें, क्या होती है आईपीसी की धारा 27? 

क्या है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गये कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.

अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.

 

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