देश के भीतर अपराध (Crime) करने वालों की सजा का प्रावधान तो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC की धारा 2 के तहत होता है. लेकिन भारत के बाहर हुए जुर्म और उसका संबंध भारत से होने पर, ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 3 के तहत कार्रवाई की जाती है. आपको बताते हैं कि आईपीसी की धारा 3 (Section 3) क्या कहती है.
क्या है आईपीसी (IPC) की धारा 3 (सेक्शन 3)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 3 उन आपराधिक मामलों से जुड़ी है, जो भारत से परे किए गए हों. लेकिन भारत में कानून के अनुसार विचारणीय हो और उसमें सजा पर फैसला होना हो. भारतीय दंड संहिता (IPC) की परिभाषा के मुताबिक कहें तो धारा 3 जिस शख्स ने भारत से बाहर अपराध किया हो और वह किसी भारतीय कानून के अनुसार विचारण का पात्र हो, तो ऐसे मामले का निपटारा आईपीसी की धारा 3 के उपबन्धों के अनुसार बिल्कुल इस तरह से किया जाएगा, मानो वह अपराध भारत के भीतर किया गया था.
क्या है भारतीय दंड संहिता (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किए गए कुछ अपराधों की परिभाषा और दंड का प्रावधान करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
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अंग्रेजों ने लागू की थी आईपीसी
ब्रिटिश काल में आईपीसी लागू हुई थी. ब्रिटिश कालीन भारत के पहले कानून आयोग की सिफारिश पर आईपीसी 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता के तौर पर 1 जनवरी 1862 को लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे.