Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता में जुर्म, सजा और कई कानूनी मामलों से जुड़े प्रावधान (Provision) मौजूद हैं. जिनका इस्तेमाल ज़रूरत पड़ने पर किया जाता है. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 78 (Section 78) में न्यायालय के निर्णय या आदेश (Court decision or order) के अनुसरण में किए गए कार्य के बारे में बताया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 78 क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 78 (IPC Section 78)
IPC की धारा 78 के अनुसार, कोई बात जो न्यायालय (Court) के निर्णय या आदेश (Judgment or order) के अनुसरण में की जाए या उसके द्वारा अधिदिष्ट (Mandated) हो, यदि वह उस निर्णय या आदेश के प्रवृत (Tended) रहते, की जाए, अपराध (Offence) नहीं है, चाहे उस न्यायालय को ऐसा निर्णय या आदेश देने की अधिकारिता (jurisdiction) न रही हो, परन्तु यह तब जब कि वह कार्य करने वाला व्यक्ति सद्भावपूर्वक विश्वास (Good faith believes) करता हो कि उस न्यायालय को वैसी अधिकारिता थी.
अगर इसे साधारण भाषा में कहें तो ऐसा कोई काम जुर्म (Offence) नहीं है जो कोर्ट के आदेश (Court order) के अनुसार किया गया हो, फिर चाहें वह बाकियों की नजर में जुर्म जैसा क्यों ना हो.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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