Indian Penal Code: भारतीय दंड संहिता की धाराएं अपराध और उनकी सजा को परिभाषित करती है. साथ ही कई पदों की शक्तियों के बारे में जानकारी भी देती हैं. ऐसे ही आईपीसी (IPC) की धारा 92 (Section 92) में सहमति के बिना किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य परिभाषित किया गया है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 92 इस बारे में क्या कहती है?
आईपीसी की धारा 92 (Indian Penal Code Section 92)
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 92 (Section 92) में सहमति के बिना (Without consent) किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक (In good faith) किया गया कार्य परिभाषित (Define) किया गया है. IPC की धारा 92 के अनुसार, कोई बात जो किसी व्यक्ति के फायदे के लिए सद्भावपूर्वक यद्यपि, उसकी सम्मति के बिना, की गई है, ऐसी किसी अपहानि के कारण (Because of harm), जो उस बात से उस व्यक्ति को कारित हो जाए, अपराध (Offence) नहीं है, यदि परिस्थितियां (Circumstances) ऐसी हों कि उस व्यक्ति के लिए यह अंसभव (Impossible) हो कि वह अपनी सम्मति प्रकट करे या वह व्यक्ति सम्मति देने के लिए असमर्थ हो और उसका कोई संरक्षक (Custodian) या उसका विधिपूर्ण भारसाधक (lawful charge) को दूसरा व्यक्ति न हो जिससे ऐसे समय पर सम्मति अभिप्राप्त करना संभव हो कि वह बात फायदे के साथ की जा सके, परन्तु–
पहला- इस अपवाद का विस्तार (Extension of exception) साशय मृत्यु कारित करने या मृत्यु कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;
दूसरा- इस अपवाद का विस्तार (Extension of exception) मृत्यु या घोर उपहति (death or grievous hurt) के निवारण के या किसी घोर रोग या अंगशैथिल्य (Alopecia) से मुक्त करने के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए किसी ऐसी बात के करने पर न होगा, जिसे करने वाला व्यक्ति जानता हो कि उससे मृत्यु कारित होना संभाव्य (likely to cause death) है;
तीसरा- इस अपवाद का विस्तार (Extension of exception) मृत्यु या उपहति के निवारण के प्रयोजन से भिन्न किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया उपहति कारित (Voluntarily caused hurt) करने या उपहति कारित करने का प्रयत्न करने पर न होगा;
चौथा- इस अपवाद का विस्तार (Extension of exception) किसी ऐसे अपराध के दुष्प्रेरण (Abetment of crime) पर न होगा, जिस अपराध के किए जाने पर इसका विस्तार नहीं है.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.
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