भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 96 से लेकर 106 तक आत्मरक्षा के अधिकारों की विधिपूर्ण व्याख्या मिलती है. इसी कड़ी में आईपीसी की धारा 98 (IPC Section 98) विकृत चित्त आदि के व्यक्ति के कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार परिभाषित करती है. आइए जानते हैं कि आईपीसी की धारा 98 इस बारे में क्या जानकारी देती है?
आईपीसी की धारा 98 (Indian Penal Code Section 98)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 98 (Section 98) में विकृतचित्त व्यक्ति (Person of unsound mind) के कार्य (Act) के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा (Private defence) का अधिकार बताया गया है. IPC की धारा 98 के मुताबिक, जब कि कोई कार्य (Act) जो अन्यथा कोई अपराध (Offence) होता, उस कार्य को करने वाले व्यक्ति के बालकपन (Childhood), समझ की परिपक्वता के अभाव (Lack of maturity of understanding), चित्तविकृति (Unsoundness of mind) या मत्तता (Intoxication) के कारण, या उस व्यक्ति के किसी भ्रम के कारण (because of confusion), वही अपराध नहीं है, तब हर व्यक्ति उस कार्य के विरुद्ध प्राइवेट प्रतिरक्षा (Private defense) का वही अधिकार रखता है, जो वह उस कार्य के वैसा अपराध होने की दशा में रखता.
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क्या होती है आईपीसी (IPC)
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) IPC भारत में यहां के किसी भी नागरिक (Citizen) द्वारा किये गये कुछ अपराधों (certain offenses) की परिभाषा (Definition) और दंड (Punishment) का प्रावधान (Provision) करती है. आपको बता दें कि यह भारत की सेना (Indian Army) पर लागू नहीं होती है. पहले आईपीसी (IPC) जम्मू एवं कश्मीर में भी लागू नहीं होती थी. लेकिन धारा 370 हटने के बाद वहां भी आईपीसी लागू हो गई. इससे पहले वहां रणबीर दंड संहिता (RPC) लागू होती थी.
अंग्रेजों ने लागू की थी IPC
ब्रिटिश कालीन भारत (British India) के पहले कानून आयोग (law commission) की सिफारिश (Recommendation) पर आईपीसी (IPC) 1860 में अस्तित्व में आई. और इसके बाद इसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के तौर पर 1862 में लागू किया गया था. मौजूदा दंड संहिता को हम सभी भारतीय दंड संहिता 1860 के नाम से जानते हैं. इसका खाका लॉर्ड मेकाले (Lord Macaulay) ने तैयार किया था. बाद में समय-समय पर इसमें कई तरह के बदलाव किए जाते रहे हैं.