झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 'लाभ का पद' मामले में फंसते नजर आ रहे हैं. सभी पक्षों को सुनने के बाद चुनाव आयोग ने इन आरोपों के संबंध में अपनी सिफारिश राज्यपाल को भेजी है. जिसमें चुनाव आयोग ने सीएम हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की सिफारिश भी की है. यह सिफारिश लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) की धारा 9 ए के तहत की गई है. आइए जानते हैं कि आखिर ये लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 क्या है?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951
संसद के सदनों और प्रत्येक राज्य के विधानमंडल के सदन या सदनों के चुनाव, उन सदनों की सदस्यता की योग्यता और अयोग्यता के संचालन के लिए भारत की संसद ने साल 1951 में एक अधिनियम पारित किया था. जिसे लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के नाम से जाना जाता है. इसे तत्कालीन कानून मंत्री डॉ बीआर अंबेडकर ने खुद संसद में पेश किया था. यह अधिनियम देश में पहले आम चुनाव से ठीक पहले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 327 के तहत संसद द्वारा अधिनियमित किया गया था. चुनावों में या उसके संबंध में भ्रष्ट आचरण और अन्य अपराध से जुड़े संदेहों और विवादों का निर्णय इसी अधिनियम के तहत किया जाता है.
धारा 9 (ए)
कोई भी जनप्रतिनिधि एक साथ दो ऐसे पदों पर नहीं रह सकता, जहां पदासीन रहते उसे आर्थिक और अन्य प्रकार के व्यक्तिगत लाभ हासिल हों. लाभ के पद जैसे मामलों में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (ए) जनप्रतिनिधियों को एक से ज्यादा पद लेने से रोकती है. इसके अलावा, यही काम संविधान के अनुच्छेद 191(1)(ए) के तहत भी किया जाता है.
क्या होता है लाभ का पद?
संविधान में लाभ के पद का पहला उल्लेख अनुच्छेद 102 (1)(क) में मिलता है. जिसके अनुसार, 'कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर, जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना संसद ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है.'
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में कई बार संशोधन किया जा चुका है. जिसमें कुछ संशोधन उल्लेखनीय हैं. मसलन, लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1966 (1966 का 47), जिसने चुनाव न्यायाधिकरणों को समाप्त किया और चुनाव याचिकाओं को उच्च न्यायालयों में स्थानांतरित कर दिया. हालांकि हाई कोर्ट के आदेशों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है. लेकिन राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति से संबंधित चुनावी विवादों की सुनवाई सीधे सुप्रीम कोर्ट द्वारा की जाती है. इसके बाद एक और संशोधन विशेष था, जिसे लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और मान्यता) अधिनियम, 2013 (2013 का 29) कहा जाता है. इसके बाद लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) विधेयक 2016 संसद में पेश किया गया था. जिसे सांसद वरुण गांधी ने लोकसभा में पेश किया था.