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Neelkanth Ganju Murder: एक जज का खौफनाक कत्ल, जिसके बाद घाटी से शुरू हुआ था कश्मीरी पंडितों का पलायन

तीन दशक पहले सेवानिवृत सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या के पीछे की साजिश का पता लगाने के लिए राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने इस केस को फिर से खोलने का फैसला किया है. साथ ही स्थानीय लोगों से इस मामले में सहयोग करने की अपील भी की है.

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नीलकंठ गंजू की हत्या का सच सामने लाने के लिए ये केस रिओपन किया जा रहा है
नीलकंठ गंजू की हत्या का सच सामने लाने के लिए ये केस रिओपन किया जा रहा है

Neelkanth Ganju Murder Case: कश्मीर में दहशतगर्दी के काले कारोबार का एक पन्ना फिर से खुलने वाला है. जम्मू कश्मीर की स्टेट इनवेस्टिगेशन एजेंसी यानी एसआईए (SIA) ने अब से ठीक 33 साल पहले श्रीनगर में मारे गए रिटायर्ड डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज नीलकंठ गंजू के कत्ल के मामले को फिर से खोलने का फैसला किया है. एक ऐसा फैसला जो जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के आतंकी यासीन मलिक के गले की फांस बन सकता है. उसे फांसी की सज़ा दिला सकता है, साथ ही दुनिया भर में रह रहे लाखों कश्मीरी हिंदुओं के लिए एक उम्मीद की किरण भी साबित हो सकता है.

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4 नवंबर 1989, हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट, श्रीनगर
यही वो तारीख थी, जब दिन दहाड़े सरे बाजार तीन आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर रिटायर्ड जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी थी. उन दिनों जम्मू-कश्मीर में इन आतंकियों का खौफ कुछ इतना ज्यादा था कि वारदात के बाद उनकी लाश महाराज बाजार में करीब दो घंटे तक यूं ही पड़ी रही थी. किसी ने उसके पास तक जाने की हिम्मत नहीं की थी. 

आतंकी को दी थी सजा-ए-मौत
जानते हैं उनका कसूर क्या था? तो सुनिए, पहला कसूर तो यही था कि उन्होंने एक जज के तौर पर कश्मीर के एक आतंकवादी मकबूल बट्ट को 1966 में हुए एक पुलिस अधिकारी के कत्ल के मामले में कसूरवार ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई थी, जबकि दूसरा कसूर ये कि वो खुद एक कश्मीरी पंडित थे. यही बात कश्मीर में दहशत की हुकूमत कायम करने वाले आतंकियों को कुछ इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने जस्टिस गंजू की खुलेआम हत्या कर दी. और तो और इस हत्या के बाद आतंकी संगठन जेकेएलएफ के तत्कालीन मुखिया यासीन मलिक ने एक इंटरव्यू में खुद अपनी जुबान से जस्टिस गंजू का कत्ल करने की बात कबूल भी की. 

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33 साल बाद होगा इंसाफ!
लेकिन अब वक्त बदल चुका है. दरिया में काफी पानी बह चुका है. यासीन मलिक जहां तिहाड़ में अपनी एड़ियां रगड़ रहा है, वहीं उसका विदेशी मीडिया के सामने किया गया ये कबूलनामा अब उसके लिए नई मुसीबत की वजह बन सकता है. बस, जरूरत इस बात की है कि 33 सालों के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस को इस केस से जुड़े वो तमाम सबूत और गवाह मिल जाएं, जो गुनहगारों को गुनहगार करार दिलाने के काबिल हों. लेकिन इससे पहले कि इस केस के बारे में और बात करें, आईए इस केस को खोलने के फैसले के साथ ही जम्मू कश्मीर पुलिस की एसआईए लोगों से जो अपील की है, उस पर एक निगाह डाल लेते हैं.

एसआईए की लोगों से अपील
तीन दशक पहले सेवानिवृत सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की हत्या के पीछे की साजिश का पता लगाने के लिए राज्य जांच एजेंसी (SIA) हत्या के मामले के तथ्यों या परिस्थितियों से परिचित सभी व्यक्तियों से अपील करती है कि वे आगे आएं और घटना का विवरण साझा करें. ऐसे सभी व्यक्तियों की पहचान गुप्त रखी जाएगी और उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा.

जगी इंसाफ की उम्मीद
स्टेट इनवेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) की इस अपील का कितना असर होता है और जम्मू कश्मीर पुलिस को इस मामले में कितने सबूत और गवाह मिलते हैं, ये तो देखनेवाली बात होगी, लेकिन देर से ही सही, जम्मू कश्मीर पुलिस की ओर से लिए गए इस फैसले का जस्टिस नीलकंठ गंजू समेत कश्मीर से जुड़े कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है. अमेरिका में रह रहीं जस्टिस गंजू की पोती स्वपना रैना का मानना है कि सरकार के इस फैसले ने पुराने जख्मों को कुरेदा तो है, लेकिन इससे उम्मीद की किरण भी जगी है.

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जज गंजू की लाश हत्या के बाद 2 घंटे तक मौका-ए-वारदात पर ही पड़ी रही थी

14 सितंबर 1989
80 के दशक में जस्टिस गंजू का कत्ल आतंकवादियों की ओर से अंजाम दी गई, दूसरी ऐसी बड़ी वारदात थी, जिसके बाद घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन की शुरुआत हुई. इससे पहले आतंकियों ने पेशे से वकील और बीजेपी के नेता टीका लाल टपलू को उन्हीं के घर बाहर गोलियों से छलनी कर दिया था. आतंकी टपलू को लंबे वक्त से मारने की साजिश रच रहे थे. उन्हें भी खुद पर मंडराते खतरे का अहसास था. शायद तभी उन्होंने आतंकियों से बचने के लिए अपने परिवार को दिल्ली में छोड़ दिया था और फिर अपनों के बीच कश्मीर लौट चुके थे. लेकिन 14 सितंबर 1989 को आतंकियों ने उन्हें भी गोलियों का निशाना बना डाला था. असल में टपलू उस रोज सुबह अपने घर के बाहर रो रही एक बच्ची से उसका हाल पूछने बाहर निकले थे कि वहां पहले से घात लगाए इंतजार कर रहे आतंकियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया था.

जस्टिस गंजू के कत्ल के मामले में अब तक हुई तफ्तीश, कश्मीर में हुए बेगुनाह कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और जस्टिस गंजू के कत्ल का मास्टरमाइंड माने जाने वाले आतंकी यासीन मलिक के बारे में आपको आगे बताएंगे, लेकिन आईए पहले उस कश्मीरी आतंकी मकबूल बट के बारे में जान लीजिए, जिसे फांसी की सज़ा सुनाए जाने की वजह से आतंकियों ने रिटायर्ड जस्टिस गंजू को गोलियों का निशाना बनाया.

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कौन था आतंकी मकबूल बट्ट?
मकबूल बट्ट ही वो कश्मीरी आतंकी था, जिसने नेशनल लिबरेशन फ्रंट के नाम से एक आतंकी संगठन की बुनियाद रखी थी. इस संगठन का ताल्लुक आजाद कश्मीर प्लेबिस्साइट फ्रंट से था और तब नेशनल लिबरेशन फ्रंट यानी एनएफएल को मिलिट्री विंग के तौर पर पर जाना जाता था. सरकार ने ऑन-लॉ-फुल प्रिवेंशन एक्ट यानी यूएपीए के तहत तब एनएफएल को बैन भी कर दिया था, लेकिन इसके आतंकी घाटी में खून खराबा करते हुए घूम रहे थे. बट्ट को दो सरकारी अधिकारियों के कत्ल का दोषी पाया गया था और 11 फरवरी 1984 को उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया था. 

मकबूल बट्ट की क्राइम कुंडली
मकबूल बट्ट का जन्म 18 फरवरी 1938 को कुपवाड़ा जिले में हुआ था. वो कॉलेज के दिनों में ही मिर्जा अफजल बेग के प्लेबिस्साइट फ्रंट से जुड़ गया था और अगस्त 1958 में शेख अब्दुल्ला की गिरफ्तारी के बाद पाकिस्तान भाग गया था. बाद में उसने आजाद कश्मीर प्लेबिस्साइट फ्रंट का दामन थाना और नेशनल लिबरेशन फ्रंट की शुरुआत की. बट्ट और उसके आतंकी संगठन पर सीआईडी अफसर अमरचंद और इंग्लैंड में भारतीय राजनायिक रवींद्र म्हातरे के कत्ल का इल्जाम लगा. इंडियन एयरलाइंस के एक प्लेन गंगा के हाईजैक करने का इल्जाम भी लगा. आतंकी तब इस प्लेन को लाहौर ले कर गए थे. इसके 36 मुसाफिरों को उन्होंने आजाद तो कर दिया था, लेकिन अपनी मांगें मनवा ली थी. लेकिन 1968 को बट्ट को तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की अदालत ने सीआईडी अफसर अमरचंद के कत्ल का दोषी पाया और उसे फांसी की सज़ा सुनाई. और आखिरकार 11 फरवरी 1984 को उसे फांसी दे दी गई थी.

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यासीन मलिक का काला चिठ्ठा
अब बात उस यासीन मलिक की, जिसे जस्टिस गंजू की हत्या का मास्टरमाइंड माना जाता है. जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट नाम के आतंकी संगठन का मुखिया यासीन मलिक इन दिनों तिहाड़ जेल में आजीवन कारावार की सजा भुगत रहा है. उसे कोर्ट ने 2017 टेरर फंडिंग केस में ये सजा सुनाई है. श्रीनगर के रहनेवाले मलिक पर चार एयरफोर्स जवानों की हत्या करने का संगीन इल्जाम भी है. इसके अलावा जम्मू कश्मीर में हुए नरसंहार की कई वारदातों में उसका नाम आता रहा है और उसे 1990 में हुए कश्मीरी पंडितों के पलायन का सबसे बड़ा विलेन माना जाता है. लेकिन यही वो यासीन मलिक है, जो जस्टिस गंजू की हत्या कर आतंकी मकबूल बट की हत्या का बदला लेने का दावा कर चुका है.

कौन है यासीन मलिक?
यासीन मलिक का जन्म 3 अपैल 1966 को श्रीनगर के मायसूमा इलाके में हुआ था. उसके पिता गुलाम कादिर सरकारी बस ड्राइवर थे. मलिक ने श्रीनगर के प्रताप कॉलेज से ही अपनी पढ़ाई की और फिर 80 के दशक में उसने ताला पार्टी के नाम से एक सियासी संगठन की शुरुआत की और इसकी आड़ में दहशत का खेल शुरू कर दिया. 1983 में इंडिया वेस्ट इंडीज मैच के दौरान गड़बड़ी फैलाने के मामले में उसका नाम सामने आया था, लेकिन इसके बाद 1984 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के चीफ मकबूल बट्ट को हुई फांसी के बाद वो खुल कर जेकेएलएफ की झंडराबरदारी करने लगा था. 1986 में जेल से बाहर आने के बाद उसने अपनी पार्टी का नाम बदल कर इस्लामिक स्टूडेंट लीग रख लिया और फिर नौजवानों को बरगलाने लगा. बाद में 1989 में उसने अपने साथियों के साथ मिलकर तत्कालीन गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कर लिया था.

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जाहिर है, यासीन मलिक के गुनाहों की फेहरिस्त काफी लंबी है. ऐसे में अगर जस्टिस गंजू के कत्ल के मामले में यासीन मलिक का जुर्म साबित हो जाता है, तो बहुत मुमकिन है कि कानून की अदालत में उसके मौत के परवाने पर भी मुहर लग जाए और उसे फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए. 

 

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