कानून व्यवस्था (Law and Order) को बनाए रखना पुलिस (Police) का पहला काम होता है. इस काम में अहम रोल निभाते हैं पुलिस थाने (Police Station). जहां तैनात अधिकारी (Officers) और कर्मचारी (Police personnel) अपराधियों (Criminals) पर अंकुश लगाने और समाज में शांति (Peace in the society) बनाए रखने का काम करते हैं. इसी दौरान पुलिस एक ज़रूरी काम और करती है, जिसे निगरानी (Surveillance) कहते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ये निगरानी होती क्या है?
'निगरानी' शब्द का मतलब
दरअसल, निगरानी (Surveillance) फारसी भाषा (Persian language) का शब्द है. इसका अर्थ (Meaning) होता है- नज़र रखना, चौकसी, पहरेदारी या फिर किसी शख्स के बारे में या उसके काम, चाल-चलन आदि पर इस तरह से नजर रखना कि इस बारे में किसी को भी पता ना चले. और किसी अनौचित्य (Impropriety) या सीमा का उल्लंघन (Border violation) भी न होने पाए.
पुलिस में निगरानी
भारतीय पुलिस प्रणाली बहुत पुरानी है. जब अंग्रेजों ने भारत में पुलिस की नींव रखी थी, तब पुलिस से संबंधित तमाम दस्तावेज हिंदी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी भाषा में बनाए गए थे. तभी से उन अलग-अलग भाषाओं के अनेक शब्द पुलिस रोजमर्रा के काम में इस्तेाल करती है. इसी में एक शब्द आता है निगरानी, जो पुलिस के लिए काफी अहम है. निगरानी से मतलब है किसी व्यक्ति या अपराधी के ऊपर गुप्त तरीके से नजर रखना और उसकी गतिविधियों से जुड़ी सूचनाएं इकठ्ठा करना.
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निगरानी किस शख्स की करनी है और कैसे करनी है, इसके बारे में सभी जिलों की पुलिस को पता रहता है. पुलिस उसी का अनुपालन करते हुए ही किसी की निगरानी करती है. खासकर अपराधियों की. पुलिस किसी भी संदिग्ध जगह पर या किसी संदिग्ध पर निगरानी कर सकती है.
निगरानी का मकसद
पुलिस अपराधियों पर नजर रखने और इलाके में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए के लिए भी निगरानी करती है. अपराध से जुड़ी किसी भी गतिविधि का पता लगाने के लिए भी पुलिस निगरानी करती है. पुलिस ऐसे लोगों की निगरानी भी करती है, जिनका नाम थाने के क्राइम रिकॉर्ड में दर्ज हो. या फिर वो लोग जो अपराध की दुनिया में उभर रहे हों. ऐसे लोग जो गैरकानूनी धंधों में शामिल हों या फिर सीआरपीसी (CrPC) की धारा 110 के अंतर्गत पाबंद किया गया हो. धारा 432 और 356 के अंतर्गत छोड़े गए अपराधियों या किसी अपराध में शामिल होने वाले व्यक्ति विशेष की भी निगरानी की जाती है.