महाराष्ट्र एटीएस ने मनसुख हिरेन के कत्ल को लेकर एक सनसनीखेज खुलासा किया है. एटीएस के हवाले से मिली जानकारी के मुताबिक मनसुख हिरेन का कत्ल 4 से 5 लोगों ने मिलकर किया था. हिरेन को पहले कार में बेहोश किया गया था. इस कत्ल की सबसे अहम बात ये कि उस वक्त सचिन वाज़े भी वहां मौजूद था. कत्ल की साजिश कुछ ऐसे रची गई कि मनसुख की हत्या के दो घंटे बाद ही सचिन वाज़े वापस ऑफिस पहुंच गया था. फिर उसी रात वो मुंबई के एक बार में छापा मारता है. और इस कार्रवाई के बाद वापस अपने ऑफिस जाता है. दरअसल, ये सब उसकी साजिश का ही हिस्सा था.
एनआईए के पास मनसुख हिरेन की मौत की जांच जाने से ऐन पहले महाराष्ट्र एटीएस ने मनसुख हिरेन के क़त्ल की तमाम कड़ियों को जोड़ कर मौत की गुत्थी सुलझा लेने का दावा किया है. एटीएस के मुताबिक चार मार्च की उस रात जिस रात मनसुख का क़त्ल हुआ. उसकी पूरी कहानी एटीएस के पास है. एटीएस से ये कहानी आजतक के भी हाथ लगी. तो पेश है, मनसुख हीरेन के क़त्ल की पूरी कहानी.
चार मार्च की रात करीब सात बजे सचिन वाज़े क्राइम ब्रांच सीआईयू के अपने दफ्तर से ठाणे के लिए निकलते हैं. ठाणे पहुंचने के बाद मनसुख हिरेन को फोन करते हैं. इसके बाद वो उसे एक खास जगह पर बुलाते हैं. सचिन वाज़े मनसुख हिरेन से ये भी कहता है कि वो अपनी बीवी विमला को ये बताए कि कांदीवली पुलिस स्टेशन से किसी तावड़े साहब का फ़ोन आया है.
दरअसल, सचिन वाज़े को मालूम था कि मनसुख हिरेन की बीवी और परिवार के लोग उससे नाराज़ हैं. क्योंकि उसने मनसुख को एंटीलिया केस में दो-तीन दिन के लिए गिरफ्तार हो जाने को कहा था. साथ ही ये वादा किया था कि दो तीन बाद वो उसे छुड़ा लेगा. ये बात मनसुख हिरेन ने अपनी पत्नी और घरवालों को बता दी थी. इसी के बाद से वो लोग सचिन वाज़े से नाराज़ थे. और बस इसी वजह से सचिन वाज़े ने मनसुख हिरेन ने ये कहा कि वो किसी तावड़े का नाम लेकर घर से बाहर निकले.
मनसुख हिरेन रात करीब सवा आठ बजे घर से निकलता है और सचिन वाज़े की बताई जगह पर पहुंच जाता है. सचिन वाज़े वहां एक गाड़ी में तीन-चार लोगों के साथ मनसुख का इंतज़ार कर रहा था। इसके बाद मनसुख को उसी गाड़ी में बिठा लिया जाता है. गाड़ी चल पड़ती है. थोड़ी दूर जाने के बाद गाड़ी में सवार लोग रुमाल में क्लोरोफॉर्म डाल कर मनसुख को बेहोश करने की कोशिश करते हैं. मनसुख को शक हो जाता है. वो विरोध करता है. इस चक्कर में हाथापाई हो जाती है. जिसकी वजह से मनसुख हिरेन के चेहरे पर चोटें आती हैं.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ये कहा गया है कि मनसुख के चेहरे पर चोट के कई निशान थे. ये चोट एंटी मॉर्टम थे. यानी ज़िंदा रहते हुए लगे थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक मनसुख के चेहरे के बायीं तरफ़, नाक की बायीं तरफ़, ऊपरी होंठ, दायें गाल, टुड्ढी और दायें आंख के क़रीब चोट के निशान मिले हैं. इसके अलावा शरीर पर चोट के कोई और निशान नहीं थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक खोपड़ी भी सही-सलामत थी. कुछ देर की जद्दोजहद के बाद आखिरकार क़ातिल मनसुख पर काबू पा लेते हैं. क्लोरोफॉर्म की वजह से मनसुख बेहोश हो जाता है. इसके बाद उसे मुंब्रा के करीब समंदर में खाड़ी में फेंक दिया जाता है. ये सोच कर कि हाई टाइड की वजह से लाश बह कर दूर चली जाएगी.
एटीएस सूत्रों के मुताबिक मनसुख की लाश के साथ जो पांच रुमाल मिले, उन रुमालों से मनसुख का मुंह या नाक नहीं बांधे गए थे, बल्कि ये रुमाल मनसुख के मास्क के पीछे रखे गए थे. मकसद यही था कि क्लोरोफॉर्म में डूबे रूमाल से मनसुख के मुंह और नाक को दबा कर उसे बेहोश किया जाए और ठीक ऐसा ही हुआ. यानी एटीएस के हिसाब से इन पांच रुमालों की गुत्थी भी सुलझ गई है.
एटीएस सूत्रों के मुताबिक ये सारा काम लगभग ढाई घंटे के अंदर हो चुका था. क्योंकि रात ग्यारह बजते बजते सचिन वाज़े वापस क्राइम ब्रांच के दफ्तर पहुंच चुका था. क्राइम ब्रांच के दफ्तर पहुंचने के बाद सचिन वाज़े अपनी टीम के साथ फिर बाहर निकलता है. इस बार वो डोंगरी इलाके में एक टिप्सी बार पहुंचता है छापा मारने के लिए. बार में छापा मारने के बाद फिर वो वापस पहले दफ्तर और फिर घर पहुंच जाता है. यानी सचिन वाज़े मनसुख हिरेन का क़त्ल करने के बाद वापस ड्यूटी पर आता है. रेड मारता है और फिर वापस जाता है.
मौका-ए-वारदात पर सचिन वाज़े की मौजूदगी का राज तब खुला, जब सज़ायाफ्ता बर्खास्त सिपाही विनायक शिंदे और सटोरिये नरेश गोर से एटीएस ने पूछताछ की. पूरी साज़िश के लिए जो पांच से छह सिम ये लोग इस्तेमाल कर रहे थे, उन्हीं सिम की मदद से चार मार्च की रात ठाणे में सचिन वाज़े के लोकेशन का पता चला. और इसी के बाद एटीएस को ये यकीन हो चला कि सचिन वाज़े ने सिर्फ़ मनसुख हिरेन के क़त्ल का ऑर्डर ही नहीं दिया था, बल्कि क़त्ल के वक़्त वो खुद उस गाड़ी में मौजूद था.
इतना ही जांच को भटकाने के लिए मनसुख हिरेन के क़त्ल के बाद मनसुख के मोबाइल को इन लोगों ने वसई में दोबारा ऑन किया था. ताकि ऐसा लगे कि मनसुख उस रात आखिरी बार वसई में पाया गया था. जबकि सच्चाई ये है कि रात क़रीब साढ़े बारह बजे वसई में मोबाइल ऑन करने से लगभग दो घंटे पहले ही मुंब्रा क्रीक के क़रीब मनसुख की मौत हो चुकी थी.
हमने कुछ दिन पहले आपको आजतक पर बताया था कि 17 फरवरी की जिस शाम मनसुख हिरेन की स्कॉर्पियो फर्ज़ी चोरी हुई थी, उसके क़रीब तीन घंटे बाद ही मनसुख हिरेन और सचिन वाज़े मुंबई में सीएसटी के बाहर मिले थे. हमने आपको ये भी बताया था कि सीएसटी के बाहर की वो सीसीटीवी तस्वीरें एनआईए ने बरामद कर ली है. आजतक के हाथ 17 फरवरी की उस रात की सीसीटीवी तस्वीरें भी लग चुकी हैं.
उस सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है कि सीएसटी के बाहर एक ट्रैफिक लाइट के करीब बीच सड़क पर एक काली मर्सिडीज़ खड़ी है. ये वही मर्सिडीज़ है, जो क्राइम ब्रांच के दफ्तर के बाहर से बाद में एनआईए ने ज़ब्त की. सिग्नल ग्रीन होने के बावजूद काली मर्सिडीज़ बीच सड़क पर खड़ी है. इसी मर्सिडीज़ में एक शख्स आकर बैठता है. वो जो शख्स उस वक्त मर्सिडीज में बैठ रहा है, वो कोई और नहीं मनसुख हिरेन है. जबकि गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर खुद सचिन वाज़े है. फुटेज से मिली तस्वीरें सचिन वाज़े की उस झूठ की कलई खोलती है, जिसमें सचिन वाज़े ने ये कहा था कि 17 फरवरी या उसके बाद वो कभी मनसुख हिरेन से नहीं मिला था. स्कॉर्पियो की फर्ज़ी चोरी की घटना के तीन घंटे के अंदर-अंदर मनसुख और सचिन वाज़े की ये मुलाक़ात साज़िश को बेपर्दा करती है.
उधर, 12 दिन की पुलिस हिरासत ख़त्म होने के बाद सचिन वाज़े को गुरुवार को अदालत में पेश किया गया. जहां दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने सचिन वाज़े को 10 दिन की और एनआईए हिरासत में भेज दिया है. यानी सचिन वाज़े अब तीन अप्रैल तक एनआईए की हिरासत में रहेगा. दरअसल, एनआईए ने एंटीलिया केस में यूएपीए का सेक्शन भी जोड़ दिया है. यूएपीए के तहत पुलिस हिरासत की मियाद अधिकतम 30 दिनों की होती है.
इससे पहले सचिन वाज़े की रिमांड मांगते हुए एनआईए ने अदालत को बताया कि सचिन वाज़े से अब तक की पूछताछ के बाद वो कई अहम सबूत हासिल कर चुकी है. इनमें 1.2 टीबी डेटा, अलग-अलग मोबाइल फ़ोन, जले हुए कपड़े और कुछ दूसरे दस्तावेज़ शामिल हैं. एनआईए ने अदालत को ये भी बताया कि सचिन वाज़े की सर्विस रिवॉल्वर की तीस में से 25 गोलियां गायब हैं. इसके अलावा सचिन वाज़े के कब्जे से 62 ऐसे कारतूस मिले, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. इन चीजों का पता लगाने के लिए पुलिस हिरासत ज़रूरी है.
जबकि दूसरी तरफ सचिन वाज़े के वकील ने अदालत में कहा कि उसके मुवक्किल ने कभी भी जुर्म कबूल नहीं किया है. उसे बस इस केस में बलि का बकरा बनाया जा रहा है. सचिन वाज़े की तरफ से अदालत में कहा गया कि एंटीलिया केस की जांच में वो डेढ़ दिन का जांच अधिकारी था. इस दौरान उसने, क्राइम ब्रांच की टीम ने और मुंबई पुलिस ने पूरी ईमानदारी से मामले की जांच की. इस साज़िश से उसका कोई लेना देना नहीं है. यहां तक कि पूछताछ के लिए एनआईए के पास वो खुद से गया था. लेकिन फिर बाद में अचानक चीज़ें बदल गई. सचिन वाज़े का ये भी कहना था कि उसे साज़िश के तहत इस केस में फंसाया जा रहा है. लेकिन दोनों की दलील सुनने के बाद अदालत ने एनआईए की अर्ज़ी मंज़ूर कर ली और अगले दस दिनों के लिए सचिन वाज़े को एनआईए की हिरासत में भेज दिया.