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संसद में धुआं-धुआं, 6 आरोपी और महीनों की साजिश... सुरक्षा में चूक के लिए नई दिल्ली जिला पुलिस भी जिम्मेदार

संसद के बाहरी इलाके में धारा 144 लागू होती है, लेकिन वहां बाकायदा 6 आरोपी संसद भवन के पास जमा हुए और फिर इस घटना को अंजाम दिया और दिल्ली पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी.

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संसद की बाहरी सुरक्षा का जिम्मा दिल्ली पुलिस के पास है
संसद की बाहरी सुरक्षा का जिम्मा दिल्ली पुलिस के पास है

Parliament Security Lapse Delhi Police Negligence: संसद की सुरक्षा में चूक को लेकर 8 सुरक्षाकर्मियों को बेशक सस्पेंड कर दिया गया है, लेकिन सच तो ये भी है कि इसके लिए काफी हद तक दिल्ली पुलिस का नई दिल्ली जिला पुलिस भी जिम्मेदार है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि संसद भवन के बाहर की सुरक्षा का जिम्मा दिल्ली पुलिस के पास है. संसद के बाहर धारा 144 लागू होती है. सस्पेंड किए गए सभी आठ सुरक्षाकर्मी लोकसभा सचिवालय के सिक्योरिटी स्टाफ से हैं.

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धारा 144 का उल्लंघन, सोती रही पुलिस
संसद के बाहरी इलाके में धारा 144 लागू होती है, लेकिन वहां बाकायदा 6 आरोपी संसद भवन के पास जमा हुए और फिर इस घटना को अंजाम दिया और दिल्ली पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगी. पहला पुलिस का सूचना तंत्र फेल हुआ, दूसरा आरोपी संसद के बाहर तक पहुंचे और जो करना चाहते थे, वो किया. ऐसे में दिल्ली पुलिस पर सवाल उठना तो लाजिमी है. खासकर इलाके के डीसीपी, एडिश्नल डीसीपी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते.

डीसीपी ने नहीं उठाया फोन
इस बारे में जब 'आज तक' ने इलाके के डीसीपी प्रणव तायल से बात करनी चाही तो उन्होंने फोन नहीं उठाया. 

संसद सत्र के दौरान 12 सौ पुलिसकर्मियों की तैनाती
सूत्रों के मुताबिक, इस संसद सत्र के दौरान करीब 1200 हथियारबंद पुलिसकर्मी ड्यूटी पर तैनात थे. इनमें करीब 400 से ज्यादा पुलिसकर्मी दूसरे जिलों से यहां ड्यूटी करने आए थे, जबकि बाकी पुलिसकर्मी नई दिल्ली जिला पुलिस के थे. जब लोकसभा और राज्यसभा का सत्र होता है, तो 700 से ज्यादा सांसद दिल्ली में होते हैं. इसमें लोकसभा अध्यक्ष, पीएम, होम मिनिस्टर से लेकर सोनिया गांधी समेत कई वीवीआईपी (VVIP) मौजूद रहते हैं. संसद भवन पहुंचने के बाद ऐसे उनकी सुरक्षा का जिम्मा दिल्ली पुलिस पर भी होता है.

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एक डीसीपी, तीन एडिश्नल डीसीपी, फिर भी वारदात
एक तरह से कहा जाए तो नई दिल्ली पुलिस जिले के डीसीपी प्रणव तायल संसद की बाहरी सुरक्षा के इंचार्च हैं. इसके अलावा इस जिले में एडिश्नल डीसीपी रविकांत, एडिश्नल डीसीपी गौरव गुप्ता और ए रमेश भी हैं. लेकिन इतने अधिकारी और स्टाफ होने के बाद भी अगर ऐसी घटना हो जाए, फिर तो सवाल उठना लाजिमी है.

20 से 25 कंपनी पैरामिलिट्री फोर्सस की तैनाती
गनीमत थी कि घटना के वक्त संसद में पीएम, गृहमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष मौजूद नहीं थे. दिल्ली पुलिस के अलावा भी संसद के बाहर और अंदर करीब 20 से 25 पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों की भी तैनाती होती है. एक कंपनी में करीब 70 सुरक्षा कर्मी शामिल होते हैं. यानी वहां करीब-करीब 1700 सुरक्षा कर्मी और तैनात होते हैं. इस हिसाब से करीब 3 हजार सुरक्षाकर्मी संसद की सुरक्षा में तैनात रहते हैं. संसद भवन के आसपास पूरे घेरे में पुलिस बैरिकेड, रूफ टॉप अरेंजमेंट, पीसीआर वाहन समेत सुरक्षा के व्यापक इंतजाम होते हैं. ऐसे में वहां लोग इकट्ठा न हो, कोई अप्रिय घटना न हो, ये जिम्मा दिल्ली पुलिस का होता है, लेकिन अफसोस की बात ये है कि बुधवार को ये तमाम इंतजामात धरे के धरे रह गए.

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संसद में मल्टी लेयर सिक्योरिटी
संसद भवन के अंदर मल्टी लेयर सिक्योरिटी होती है. जिस संसद भवन की सुरक्षा में ये बड़ी चूक हुई है, ये वही नया संसद भवन है. जो इसी साल बन कर तैयार हुआ था. इस नए संसद भवन को बनाने में कुल 12 सौ करोड़ रुपये खर्च हुए थे. दावा किया गया था कि सुरक्षा के लिहाज़ से ये नया संसद भवन करीब सौ साल पुराने उस पुराने संसद भवन से हर मायने में बेहतर है. सिर्फ तीन महीने पहले ही 19 सितंबर को इस नए संसद भवन का शुभारंभ हुआ था. लेकिन जिस तरह से दो लोग एक बीजेपी सांसद के विजिटर पास पर अपने जूते में कलर क्रैकर छुपा कर संसद भवन के अंदर दाखिल हो जाते हैं और फिर विजिटर गैलरी से नीचे छलांग लगा लेते हैं, उससे साफ है कि 13 दिसंबर 2001 से आज भी हमने कुछ नहीं सीखा.

ऐसे बनता है संसद का विजिटर पास
अमूमन संसद भवन में लोकसभा या राज्यसभा की कार्यवाही देखने के लिए आम लोगों के जाने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन इसके लिए कुछ नियम कानून हैं. जिनमें एक सबसे अहम है कि कोई भी विजिटर जो संसद की कार्यवाही देखना चाहता है या संसद भवन जाना चाहता है, उसे अपने परिचित जो अमूमन उसी सांसद के संसदीय इलाके से आते हों, उनकी सिफारिश पर ही विजिटर पास मिलता है. ऐसे विजिटर पास सांसदों और मंत्रियों के अलावा लोक सभा अध्यक्ष की सिफारिश पर भी विजिटर्स को दिए जाते हैं.

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कई चरणों में होती सुरक्षा जांच
विजिटर पास मिलने के बाद संसद भवन पहुंचने पर सबसे पहले गेट पर पूरी तलाशी ली जाती है. संसद के अंदर फोन या कोई भी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट ले जाने पर सख्त रोक है. मेन गेट की तलाशी के बाद संसद भवन के अंदर दो लेयर की और सिक्योरिटी होती है, जिसमें फिर से बॉडी सर्च यानी जमा तलाशी होती है. विजिटर या दर्शकों के लिए संसद भवन के अंदर दर्शक दीर्घा सदन के ऊपरी हिस्से में होती है. अब जरा सोचिए, कि संसद में घुसने वाले दोनों शख्स तीन-तीन लेयर की सिक्योरिटी को चकनाचूर करते हुए अपने जूते में कलर क्रैकर छुपा कर ले गए. अगर कलर क्रैकर की जगह वो कुछ और होता तो?

सबसे पहले तैनात रहती है दिल्ली पुलिस 
संसद की सुरक्षा इंतजाम तीन लेयर तक होता है. जिसमें एक सुरक्षा इंतजाम बाहरी हिस्से का होता है जिसकी जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस की होती है. यानी अगर कोई भी संसद भवन में जाता है या संसद भवन के भीतर जबरन घुसने की कोशिश करता है तो सबसे पहले उसे दिल्ली पुलिस के मुस्तैद सिपाहियों की नज़रों से या उनका सामना करना पड़ता है.

दूसरी सुरक्षा लेयर में होता है पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप
इसके बाद आती है दूसरी लेयर. इस लेयर के लिए पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप जिम्मेदार होता है. जबकि तीसरी लेयर की जिम्मेदारी पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस की होती है. पर्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस (PSS) के पास राज्यसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी होती है.

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बंद रहते हैं संसद भवन के ज्यादातर गेट
संसद भवन में कुल 12 गेट हैं लेकिन सुरक्षा के लिहाज से ज्यादातर गेट बंद ही रखे जाते हैं. लेकिन सभी गेट पर सुरक्षा का भारी बंदोबस्त होता है और हर दस सेकंड में वहां का सिक्योरिटी सिस्टम अपडेट किया जाता है. आमतौर पर संसद परिसर में जिन गेटों से आवाजाही होती है, उस गेट पर सुरक्षा का बंदोबस्त सीआरपीएफ और दिल्ली पुलिस के हवाले होता है. गेट से गुज़रने वाले हरेक शख्स की तलाशी ली जाती है, जबकि सांसदों, मंत्रियों और अफसरों की गाड़ियों पर सुरक्षा स्टीकर होते हैं, जिन्हें कैमरे देखकर स्कैन करते हैं और उसके बाद बूम गेट खुद-ब-खुद खुल जाते हैं.

पहली लेयर में होते हैं दिल्ली पुलिस और CRPF के जवान
वैसे राज्य सभा और लोकसभा दोनों की अलग अलग पर्सनल पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस (PPSS) होती है. पीपीएसएस साल 2009 में गठित हुई थी. इस सर्विस के अस्तित्व में आने से पहले इसे वॉच एंड वॉर्ड के नाम से पहचाना जाता था. इस सिक्योरिटी सर्विस का काम संसद में किसी के भी आने जाने पर नजर रखना और किसी भी हालात से निपटने के साथ-साथ स्पीकर, सभापति, उपसभापति और सांसदों को सुरक्षा प्रदान करना है. जबकि पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (PSS) का काम आम लोगों के साथ-साथ पत्रकारों और ऐसे लोगों के बीच क्राउड कंट्रोल करना होता है, जो या तो सांसद है या फिर संवैधानिक पदों पर आसीन होते हैं. इस सिक्योरिटी का काम संसद पहुंचने वाले लोगों के सामान की जांच करना और स्पीकर, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति, राष्ट्रपति की सिक्योरिटी डिटेल के साथ लायजनिंग करना है.
 

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