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हर महीने 10 अपराधी ढेर! जानिए देश में एनकाउंटरों की कहानी, यूपी-बिहार से आगे है ये राज्य

उमेश पाल हत्याकांड के मामले में प्रयागराज पुलिस ने एक और आरोपी को एनकाउंटर में ढेर कर दिया है. अब जिसका एनकाउंटर हुआ है, उसका नाम विजय चौधरी उर्फ उस्मान था. बताया जा रहा है कि विजय ने ही उमेश पाल पर पहली गोली चलाई थी. ऐसे में जानना जरूरी है कि देश में एनकाउंटर पर आंकड़े क्या कहते हैं? पुलिस कब गोली चला सकती है?

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प्रयागराज में एनकाउंटर साइट की तस्वीर (फोटो- PTI)
प्रयागराज में एनकाउंटर साइट की तस्वीर (फोटो- PTI)

प्रयागराज पुलिस ने उमेश पाल हत्याकांड के एक और शूटर को एनकाउंटर में ढेर कर दिया. आज जिसका एनकाउंटर किया गया, उसका नाम विजय चौधरी उर्फ उस्मान था. पुलिस का कहना है कि एनकाउंटर में वो घायल हो गया था, उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसकी मौत हो गई.

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उमेश पाल की 24 फरवरी को घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हमले में उमेश पाल के दो सिक्योरिटी गार्ड भी मारे गए. उमेश पाल 2005 के राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह थे. राजू पाल हत्याकांड के मुख्य आरोपी पूर्व सांसद अतीक अहमद हैं, जो अभी गुजरात की जेल में बंद हैं.

उमेश पाल की पत्नी जया पाल ने इस मामले में अतीक अहमद, उनकी पत्नी शाइस्ता परवीन, भाई अशरफ, दो बेटे, गुड्डु मुस्लिम और गुलाम के अलावा 9 लोगों के खिलाफ केस दर्ज करवाया है.

प्रयागराज पुलिस ने आज जिस विजय चौधरी उर्फ उस्मान का एनकाउंटर किया है, उस पर ही उमेश पाल पर पहली गोली चलाने का आरोप था. धूमगंज के एसएचओ राजेश कुमार मौर्या ने न्यूज एजेंसी को बताया कि विजय चौधरी को गर्दन, सीने और जांघ में गोली लगी थी. पुलिस ने बताया कि एनकाउंटर के दौरान कॉन्स्टेबल नरेंद्र पाल को हाथ में चोटें लगीं हैं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

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बहरहाल, विजय के एनकाउंटर पर पुलिस ने जो थ्योरी दी है, उस पर परिवार ने सवाल उठाए हैं. विजय की पत्नी का कहना है कि पति के साथ मुझे भी मार दिया जाए, क्योंकि मेरे आगे पीछे कोई नहीं है, मैं किसके सहारे जिऊंगी? 

हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठे हों. एनकाउंटर पर अक्सर सवाल उठाए जाते रहे हैं, क्योंकि पुलिस दावा करती है कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर पुलिस कब किसी पर गोली चला सकती है? और पुलिस का गोली चलाना कब अपराध माना जाता है? लेकिन उससे पहले जानते हैं आंकड़े क्या कहते हैं?

6 साल, 813 मौतें...

- पिछले साल 23 मार्च को गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने एनकाउंटर में होने वाली मौतों को लेकर आंकड़े दिए थे. ये आंकड़े 1 अप्रैल 2016 से 10 मार्च 2022 तक के थे.

- इसके मुताबिक, 6 साल में पुलिस एनकाउंटर में 813 लोगों की मौत हो चुकी थी. सबसे ज्यादा 264 एनकाउंटर किलिंग्स छत्तीसगढ़ में हुए. वहीं, उत्तर प्रदेश में 121 अपराधियों की एनकाउंटर में मौत हुई थी. जबकि, बिहार में 25 अपराधी एनकाउंटर में ढेर किए गए.

- सरकार की ओर से दिए घए आंकड़ों के मुताबिक, एनकाउंटर किलिंग्स के इन 813 मामलों में से 459 डिस्पोज हो चुके हैं, जबकि 354 मामलों में जांच जारी है. कुल मिलाकर देखा जाए तो 6 साल में हर महीने में 10 अपराधी एनकाउंटर में मारे गए.

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- इसी दौरान राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस एनकाउंटर के 107 मामलों में मुआवजा देने का आदेश दिया था. इस दौरान पीड़ितों को 7.16 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया था.

क्या पुलिस किसी पर भी गोली चला सकती है?

- इसका जवाब है नहीं. पुलिस सिर्फ दो स्थिति में ही किसी पर गोली चला सकती है. पहली स्थिति में जब कोई अपराधी गिरफ्तारी से भाग रहा हो और दूसरी स्थिति में आत्मरक्षा के मामले में. गोली चलाने को लेकर तो साफ-साफ कोई गाइडलाइन नहीं है, लेकिन गोली चलने पर मौत होने पर सख्त गाइडलाइंस हैं.

- 29 मार्च 1997 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के तब के अध्यक्ष जस्टिस एमएन वेंकटचलैया ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक नोट भेजा था. इसमें इन दो स्थितियों के बारे में बताया गया था, जब पुलिस गोली चला सकती थी और गोली चलाने पर अगर अपराधी की मौत भी हो जाती है तो भी उसे अपराध नहीं माना जा सकता.

- जस्टिस वेंकटचलैया ने इस नोट में साफ-साफ ये भी कहा था कि इन दो स्थितियों के दायरे से बाहर अगर किसी और परिस्थिति में गोली चलती है और उससे अपराधी की मौत हो जाती है, तो उसे तब तक 'गैर इरादतन हत्या' माना जाएगा, जब तक कानून के तहत ये साबित नहीं हो जाता कि ये अपराध नहीं था. 

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- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर की धारा 46 के तहत, अगर कोई भी आरोपी गिरफ्तारी का विरोध करता है या गिरफ्तारी से बचने की कोशिश करता है, तो पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए कुछ भी कर सकती है.

- हालांकि, धारा 46 का ही सब-क्लॉज 3 ये भी कहता है कि पुलिस की ऐसी कार्रवाई में ऐसे किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं होनी चाहिए, जो सजा-ए-मौत या आजीवन कारावास की सजा का आरोपी नहीं है.

- वहीं, आईपीसी की धारा 100 में प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति आत्मरक्षा में किसी भी व्यक्ति की जान ले सकता है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि किसी की भी जान ले ली जाएगी. इसके लिए 6 परिस्थितियां तय की गईं, जिसमें आत्मरक्षा के लिए किसी की जान लेना अपराध नहीं माना जाएगा.

क्या हैं वो 6 परिस्थितियां?

1. ऐसा हमला जिससे मौत होने की आशंका हो.

2. ऐसा हमला जिससे गंभीर चोट पहुंचने की आशंका हो.

3. बलात्कार करने के इरादे से किया गया कोई हमला.

4. अप्राकृतिक संबंध बनाने के इरादे से किया कोई हमला.

5. अपहरण करने के इरादे से किया गया हमला.

6. अगर किसी व्यक्ति को गलत तरीके से बंधक या कैद में कर रखा हो और उसे इस बात की आशंका हो कि वो अपनी रिहाई के लिए सरकारी अधिकारी की मदद नहीं ले सकता, तो ऐसे मामले में भी आत्मरक्षा में किसी की जान लेना अपराध नहीं होगा.

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एनकाउंटर को लेकर क्या है गाइडलाइंस?

- पुलिस एनकाउंटर या फायरिंग में हुई मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइंस तय की हुई हैं. इसके मुताबिक, ऐसे मामले में तुरंत FIR दर्ज होनी चाहिए और इसकी जांच सीआईडी या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवाना जरूरी है. 

- सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, पुलिस फायरिंग में हुई हर मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए. ऐसे मामलों की सूचना बिना देरी किए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग को देना जरूरी है.

- इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी कुछ गाइडलाइंस हैं. इनमें कहा गया है कि पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई मौत की जानकारी 48 घंटे के भीतर आयोग को देना जरूरी है. इसके तीन महीने बाद एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करना होगा. ये भी कहा गया है कि अगर जांच में पुलिस दोषी पाई जाती है तो मारे गए व्यक्ति के परिजनों को मुआवजा देना होगा.

 

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