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आनंदपाल का अपराध शास्त्र और लेडी डॉन की एंट्री

शेखावाटी के गैंगस्टरों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. गैंग्स ऑफ शेखावटी का गैंगवार एक इमोशनल वार रहा है, जिसका सबसे बड़ा किरदार आनंदपाल सिंह बनकर उभरा था. इस गैंगवार में अब तक दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है.

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पुलिस ने भारी सुरक्षा के बीच आनंदपाल का दाह संस्कार करा दिया
पुलिस ने भारी सुरक्षा के बीच आनंदपाल का दाह संस्कार करा दिया

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शेखावाटी के गैंगस्टरों की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. गैंग्स ऑफ शेखावटी का गैंगवार एक इमोशनल वार रहा है, जिसका सबसे बड़ा किरदार आनंदपाल सिंह बनकर उभरा था. इस गैंगवार में अब तक दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है.

ये गैंगस्टर कभी आपस में दोस्त हुआ करते थे, लेकिन बिजनेस के सिलसिले में गैंग के दो लोगों के बीच लड़ाई हुई और अपने-अपने करीबियों की मौत का बदला लेने के लिए दूसरे गैंग के गुर्गों की लाशें ये गिराते रहते हैं. इन बदमाशों के बीच जब भी गैंगवार हुई है. किसी अपने को इन्होंने खोया और फिर उसकी चिता पर बदला लेने की कसम के साथ दूसरे गैंग पर हमला भी किया.

शराब कारोबार में शुरू हुई थी रंजिश

साल 2005 में शेखावटी के रहने वाले राजू ठेठ, बलवीर बानूड़ा और गोपाल फोगावट ने मिलकर जीण माता में शराब की दुकान ली थी. इसी कारोबार में आगे हुए झगड़े के चलते राजू ठेठ और बलवीर बानूड़ा के बीच विवाद हो गया था. उस समय दुकान का पूरा काम बानूड़ा का साला गोपाल देखा करता था. दोनों के बीच रंजिश इतनी बढ़ गई कि राजू ठेठ ने साथियों के साथ मिलकर बलवीर बानूड़ा के साले गोपाल की पीट पीटकर हत्या कर दी थी.

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चिता पर खाई बदले की कसम

यहीं से शुरू हुआ दोनों गुटों के बीच बदले का खेल. अपने साले की हत्या के बाद बलवीर बानूड़ा ने उसकी चिता पर राजू ठेठ से बदला लेने की कसम खाई. राजू ठेठ से अलग होकर बलवीर बानूड़ा कमजोर हो गया था. गुट को मजबूत करने के लिए उसने नागौर के अपने साथी आनंदपाल की मदद ली. तब आनंदपाल पढ़ाई-लिखाई के बाद टीचर और फौज की नौकरी की तैयारी कर रहा था. बेहद निडर आनंदपाल के साथ मिलकर उसने शराब और माइनिंग का कारोबार शुरू किया और इसी दौरान बदले की आग को भी उसने जिंदा रखने के लिए गुट को मजबूत बना लिया.

फोगावाट ने दोनों गैंग के बीच बनाई शांति

काफी समय से बलवीर बानूड़ा राजू ठेठ के गैंग से बदला लेने की योजना बना रहा था, लेकिन राजू ठेठ के खास दोस्त गोपाल फोगावट ने उसे समझाया बुझाया. राजनीतिक तौर पर गोपाल फोगावाट की शेखावाटी में अच्छी साख थी. गोपाल फोगावट ही था, जिसने इस इलाके में गुटों के बीच शांति बनाने की कोशिश की थी. उसनेराजू ठेठ ओर बलवीर बानूड़ा के एरिया भी बांट दिए थे, लेकिन उसका झुकाव राजू ठेठ की ओर ज्यादा था. बलवीर बानूड़ा को इसी बात से ज्यादा समस्या थी.

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फोगावट को छलनी कर बानूड़ा ने पूरी की आधी कसमइसी दौरान 2006 की जून महीने में राजू ठेठ के खास आदमी गोपाल फोगावट की मुखबिरी उसे मिली. उसे पता चला कि वह सीकर के बाजार में किसी टेलर की दुकान पर अकेला जा रहा है. मौका देखकर बानूड़ा गैंग ने गोपाल फोगावट को सरे बाजार गोलियों से भून दिया. इस तरह गोपाल बानूड़ा की आधी कसम तो पूरी हो गई, लेकिन राजू ठेठ को मारना उसके लिए बाकी था.

फोगावट की मौत से बदले समीकरण

गोपाल फोगावट की हत्या की इस क्षेत्र के सारे समीकरण बदल दिए. उसकी अंतिम यात्रा में राजू ठेठ ने बलवीर बानूड़ा को खत्म करने का प्रण लिया था. अपने साथी और खास दोस्त को खोने के बाद राजू ठेठ के जीवन का बस एक ही मकसद रह गया था और वह था बलवीर बानूड़ा को खत्म करना. हालांकि राजू ठेठ जानता था कि आनंदपाल का साथ होने की वजह से ये काम उसके लिए आसान नहीं था. वह मौके का इंतजार करने लगा. इसी बीच दोनों गुटों के बीच एक दूसरे के गर्गों पर हमले भी चलते रहे. दूसरे धंधों और हत्या के कई मामलों की वजह से अब पुलिस भी इनके पीछे लगी हुई थी. लिहाजा कुछ सालों तक दोनों गैंग के बदमाश अंडरग्राउंड हो गए.

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2012 में फिर सुलगी बदले की आग

साल 2012 में जब राजू ठेठ, आनन्दपाल और बलवीर बानूड़ा गिरफ्तार हो गए, तो बदले की आग फिर से सुलगने लगी. बलवीर बानूड़ा ने अपने खास आदमी सुभाष बराल को सीकर जेल में बंद राजू ठेठ को मारने का जिम्मा सौंपा. सुभाष बराल तब सीकर जेल में ही बंद था, वहीं उसको हथियार भिजवाए गए. 26 जनवरी 2013 को सुभाष बराल ने राजू ठेठ पर हमला कर दिया, लेकिन किस्मत से गोली राजू ठेठ के जबड़े में लगी और वो बच गया.

राजू ठेठ ने इस तरह पूरी अपनी कसम

जेल में अपने ऊपर हुए इस हमले से राजू ठेठ तिलमिला गया. अब उसके लिए बलवीर बानूड़ा और आनंदपाल से बदला लेना बेहद जरूरी हो गया था. राजू ठेठ के जेल में आने के बाद उसने अपने भाई ओमप्रकाश उर्फ ओमा को गैंग का कमांडर बना दिया था. इसी दौरान बलवीर बानूड़ा और आनंदपाल का गैंग बीकानेर जेल में बंद था. संयोग से ओमप्रकाश ठेठ का साला जयप्रकाश और उसका दोस्त रामप्रकाश भी बीकानेर जेल में ही बंद थे. राजू ठेठ की योजना पर दोनों को जेल में हथियार भिजवाए गए और 24 जुलाई 2014 को बीकानेर जेल में बलवीर बानूड़ा और आनंदपाल पर हमला हुआ, जिसमें बलवीर बानूड़ा की मौत हो गई.

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फिर आनंदपाल ने खाई राजू ठेठ को मारने की कसम

इस तरह राजू ठेठ की एक कसम तो पूरी हो गई थी, लेकिन अपने अजीज दोस्त की मौत के बाद आनंदपाल ने राजू ठेठ को मारने की कसम खाई. आनंदपाल के गैंग का जिम्मा उसके भाई विक्की के पास चला गया. विक्की कुछ समय पहले ही हत्या के एक मामले में पैरोल से फरार हुआ था, जबकि राजू ठेठ के गैंग का संचालन उसका भाई ओमप्रकाश कर रहा था.

फिर उन्हें पता चला कि दोनों गुटों ने एक दूसरे गुट की सुपारी दे रखी थी. राजू ठेठ ने बीकानेर के रामकिशन सिहाग हत्या मामले में फरार बदमाश शंकर को आनंदपाल की सुपारी दी है. इन बदमाशों के बीच गैंगवार की दास्तान आपसी रंजिश और कारोबार से अधिक बदले की कहानी है. एक ऐसी जंग है, जिसमें हत्या का बदला हत्या के अलावा कुछ भी नहीं है. ये एक ऐसा अंतहीन सिलसिला है, जिसमें जब सारे किरदारों का खात्मा नहीं होगा गोलियां चलनी थमेंगी नहीं.

फिर हुई लेडी डॉन अनुराधा की धमाकेदार एंट्री

राजस्थान के इस गैंगवार ने पहली बार लेडी डॉन का कहर भी देखा. अंग्रेजी स्कूल में पढ़ी कई भाषा बोलने वाली एमबीए लेडी डॉन अनुराधा चौधरी आनंदपाल के करीब आई और देखते-देखते ही अपराध जगत पर छा गई. एक व्यपारी के अपहरण के दौरान नाकेबंदी में अनुराधा पकड़ी गई और फिलहाल जयपुर के सेंट्रल जेल में बंद है. उस पर हत्या, अपहरण और मारपीट जैसे दर्जनों गंभीर मामले चल रहे हैं.

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जुर्म की दुनिया में अनुराधा की थी अलग ही हैसियत

जींस पैंट के साथ टी शर्ट और शर्ट में रहने वाली लंबी कद-काठी की अनुराधा की भारी-भरकम सुरक्षा देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि अनुराधा अपराध की दुनिया में क्या हैसियत रखती है. जयपुर के एक बड़े परिवार की रहने वाली अनुराधा अजमेर के सोफिया स्कूल की पढ़ी लिखी है और फर्राटे से अंग्रेजी बोलती है. लेकिन जल्दी पैसा कमाने और अय्याशी भरी जिंदगी की चाह ने अनुराधा को अपराध की दुनिया में खींच लाया.

आनंदपाल गैंग की नंबर टू बन गई अनुराधा

अनुराधा सीकर में आनंदपाल सिंह के करीब आई और देखते-देखते आनंदपाल सिंह के गैंग की नंबर दो बन गई. पढ़ाई लिखाई में अच्छी होने की वजह से कोर्ट कचहरी से लेकर अपराध की प्लानिंग का जिम्मा भी अनुराधा पर ही रहता था. आनंदपाल के जेल जाने के बाद गैंग की जिम्मेदारी अनुराधा पर आ गई थी. एक दिन सीकर में एक व्यापारी ने अनुराधा को रंगदारी नहीं दी तो वह उसका अपहरण कर ला रही थी. रास्ते में पुलिस ने नाकेबंदी कर थी और इसी दौरान उसकी गाड़ी खराब हो गई, जिससे वह पुलिस की पकड़ में आ गई. तब से वह जयपुर की जेल में बंद है और सीकर, नागौर, बीकानेर और अजमेर में उस पर दर्जनों अपराधिक मुकदमे चल रहे हैं.

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दरअसल राजस्थान में चल रहे इस गैंगवार ने किसानों और व्यापारियों समेत आम लोगों में डर पैदा कर दिया है. सरेआम चलती गोलियां और हत्याओं के दौर ने पुलिस के साथ-साथ सरकार के कामकाज पर भी सवाल खड़ा किया है. अक्सर कांग्रेस और बीजेपी के नेता एक दूसरे पर इन गैंगस्टरों से मिलने जेल में जाने का आरोप लगाते रहते हैं. दोनों ही दल के नेताओं पर आरोप है कि चुनाव में वोट पाने के लिए इन गैंगस्टरों का सहारा नेता लेते हैं.

 

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