राजद्रोह कानून को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में अब मंगलवार को सुनवाई होगी, जिसके लिए दोपहर दो बजे का वक्त तय किया गया है. सभी पक्षकारों को शनिवार तक लिखित दलील देनी है. जबकि भारत सरकार सोमवार की सुबह तक अपना जवाब दाखिल करेगी.
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि मुख्य सवाल ये है कि केदारनाथ सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का फैसला सही था या नहीं. केदार नाथ सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हुए इसके दुरुपयोग के दायरे को सीमित करने का प्रयास किया था.
अदालत ने माना था कि जब तक हिंसा के लिए उकसाने या ललकारने या फिर आह्वान नहीं किया जाता, तब तक सरकार देशद्रोह का मामला दर्ज नहीं कर सकती. केदारनाथ सिंह बनाम भारत सरकार मामले में आए फैसले ने उन स्थितियों को बेहद सीमित कर दिया था जिनमें राजद्रोह या देशद्रोह की धाराओं का इस्तेमाल किया जा सकता है.
लेकिन अब यह आरोप लगाया जा रहा है कि कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है. इसे देखते हुए अब बड़ा मसला ये हो गया है कि देशद्रोह कानून की वैधता का मामला 7 जजों की संविधान पीठ को भेजा जाए या नहीं?
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सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जवाब दाखिल करने के लिए अदालत ने सरकार को उचित समय दे दिया है. सीजेआई ने कहा कि 9 महीने पहले ही नोटिस जारी किया गया था. दूसरी याचिकाओं को अलग-अलग बेंच से एक साथ लाया गया. इतने वक्त मे भी जवाब दाखिल नहीं हुआ!
कपिल सिब्बल ने कहा कि सुनवाई शुरू की जानी चाहिए. सीजेआई जस्टिस एनवी रमण ने भी सहमति जताते हुए कहा कि मुझे नहीं लगता कि मामले की सुनवाई में कोई दिक्कत होनी चाहिए.
जिस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसे केंद्र सरकार के स्टैंड के बिना शुरू नहीं किया जाना चाहिए. मेरे लिए यह जरूरी होगा कि मैं सक्षम विभाग से चर्चा करूं. मैं कोई अनुचित समय नहीं मांग रहा हूं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक जवाब तैयार है लेकिन सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन का इंतज़ार है, इसके लिए थोड़ा और समय चाहिए.
अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि देशद्रोह कानून के लिए दिशानिर्देश बनाए जाने जरूरी हैं. उन्होंने हुए कहा कि हनुमान चालीसा पढ़ने के मामले में भी देशद्रोह की धारा लगायी गई है. ऐसे में दिशानिर्देश की सख्त ज़रूरत है.
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कोर्ट ने पूछा कि क्या इस मामले को बड़ी बेंच को रेफर किए बिना सुनवाई हो सकती है? चीफ जस्टिस की अगुआई वाली तीन जजों की विशेष पीठ की ओर से देशद्रोह की कानूनी धाराओं की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए बड़ी पीठ को भेजने का संकेत दिया है.
कानून ही असंवैधानिक या गैर कानूनी हो जाए तो लोक व्यवस्था यानी कानून व्यवस्था की स्थिति पर असर पड़ेगा. अब यही स्थिति धारा 124 (ए) को लेकर भी है. अनुच्छेद 14 और 21 की व्याख्या की जरूरत है. क्योंकि अब समय कानून व्यवस्था और मौलिक अधिकारों के बीच बेहतर संतुलन कायम करने का है.
कपिल सिब्बल ने कहा कि 124(ए) का संबंध राज्यों से है, केंद्र से नहीं. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वो इस बाबत सोमवार सुबह तक लिखित दलीलें दे सकते हैं. याचिकाकर्ता भी शनिवार तक अपनी लिखित दलीलें दे सकते हैं. मंगलवार को अब इस मामले की सुनवाई दोपहर दो बजे यानी भोजनावकाश के बाद होगी.
सॉलिसिटर जनरल और कपिल सिब्बल ने अदालत को मंगलवार के लिए अपनी मजबूरियां बताई. मगर कोर्ट ने कहा कि दूसरे मामलों में अपनी पेशी एडजस्ट कर लें.