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Ramesh Babu Shukla murder case: लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में मार्च 2017 में मारे गए आतंकी सैफुल्ला के दो साथियों आतिफ मुजफ्फर और फैसल को एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई है. दोनों आतंकियों को फांसी के फंदे तक पहुंचाने में ATS की तहकीकात और गवाहों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
यूपी एटीएस ने कैसे इस पूरे ऑपरेशन को अंजाम दिया था? और किन गवाहों की वजह से आईएसआईएस के ये आतंकी अपनी सजा तक पहुंचे. इस बारे में यूपी के तत्कालीन एटीएस चीफ और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री असीम अरुण ने 'आज तक' से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि आईएसआईएस समूह ने भोपाल से उज्जैन जाने वाली एक ट्रेन ब्लास्ट किया था. इसके बाद तीन आतंकी पकड़े गए थे.
बाद में यूपी की राजधानी लखनऊ में सैफुल्लाह का एनकाउंटर हुआ लेकिन उसके दो साथी आतिफ मुजफ्फर और फैसल पकड़े गए थे. एटीएस ने जब पूछताछ की तो उन लोगों ने कबूल किया कि प्रिंसिपल शुक्ला का मर्डर उन्होंने किया था. यह बात बहुत चौंकाने वाली थी. इनका जो विदेशी हैंडलर था, वो इनको हथियार चलाना और विस्फोटक बनाना सिखा रहा था. उसने कहा था कि तुमने तैयारी कर ली लेकिन जब किसी को मारने की बारी आएगी तो तुम मार पाओगे कि नहीं? इसके बाद केवल ट्रायल के लिए यह लोग निकले थे. इन्होंने वहां शुक्ला को देखा और उनके हाथ में कलावा और माथे पर तिलक देखकर उनको गोली मार दी.
पूर्व आईपीएस असीम अरुण ने बताया कि उस समय इस घटना का खुलासा नहीं हुआ था. साथ ही साथ इन लोगों ने बताया कि सैफुल्लाह के घर से जो टेप लगी हुई पिस्तौल बरामद हुई थी. उस पिस्टल से फायर किया गया था. जिसका फॉरेंसिक में मिलान कराया तो शुक्ला के शरीर से बरामद गोली और वहां मिला खोखा एक ही थे.
सैफुल्लाह आतिफ और उसके साथी को कैसे जिहादी बनाने की कोशिश कर रहा था, इसके प्रमाण भी मिले हैं. बताया गया कि कानपुर के जाजमऊ में एक मस्जिद में कुरान सेंटर था. वहां पर एक दर्श नाम की प्रक्रिया होती है, जिसमें धार्मिक बातें की जाती है. वहां पर इन लोगों ने जिहादी बातें कर आतंकवाद को बढ़ाने की प्रेरणा दी. ऐसे लोगों ने अपना बयान दिया और कोर्ट में यह सिद्ध हुआ कि यह आईएसआईएस से प्रेरित आतंकवादी ग्रुप है. उनके फोन से तमाम तस्वीरें मिलीं. घटनास्थल से आईएसआईएस का झंडा भी मिला था.
दोनों आरोपियों को सजा दिलाने में गवाही का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. जिन लोगों ने साफगोई से बताया कि उनको भी जिहाद में जोड़ने का प्रयास हुआ था, लेकिन वह नहीं जुड़े लेकिन उन लोगों ने इस केस में गवाही दी थी.
असीम बताते हैं कि सैफुल्लाह का एनकाउंटर हुआ तो उसके पिता ने उसकी लाश लेने से मना कर दिया था और कहा था कि किसी भी राष्ट्र द्रोही की लाश नहीं लेंगे. इसमें जहां कुछ मुस्लिम युवक आतंकवाद की तरफ बढ़े और एक घटना को अंजाम भी दिया. हम कानूनी प्रक्रिया से सफल हुए तो वहीं कुछ ऐसे साथी भी हैं जिनके संपर्क में यह लोग आए थे, जो मुस्लिम समुदाय के हो सकते हैं लेकिन उन्होंने कानून में विश्वास रखते हुए गवाही दी और सजा दिलाने में सहयोग किया. सैफुल्लाह के परिजनों ने जब उसकी लाश लेने से मना कर दिया था तो लखनऊ पुलिस ने उसका अंतिम संस्कार किया था.
यूपी के मंत्री असीम अरुण ने घटना के बारे में बताया कि उस वक्त सूचना मिली थी कि उज्जैन एक्सप्रेस में एक विस्फोट हुआ है, जिसमें आरोपियों का एक हाइड आउट लखनऊ में है. यह साफ नहीं था कि कितने लोग हैं? क्योंकि ग्रुप बड़ा है. इसका अंदाजा था. हम लोगों ने हर संभव प्रयास किया कि सैफुल्लाह को जिंदा पकड़ा जाए क्योंकि जिंदा पकड़े जाने पर और सूचनाओं मिलती. हमने सरेंडर कराने की पूरी कोशिश की. 12 घंटे लगातार फायरिंग होती रही. हमने केमिकल स्प्रे, मिर्ची बम, आंसू गैस सभी का प्रयोग किया, लेकिन हम उसको सरेंडर नहीं करा पाए. वो लगातार बोलता रहा मैं जिहाद की राह पर हूं. सरेंडर नहीं करूंगा. और आखिर में हमें शूटआउट करना पड़ा, जिसमें वह मारा गया.
लीगल सिस्टम पुलिसिंग के लिए बड़ी चुनौती है. पहले किसी को यात्रा करनी पड़ती थी ट्रेनिंग लेने के लिए, लेकिन आज ऑनलाइन ऐसे प्लेटफार्म हैं. जिनको क्रैक करना ट्रैक करना मुश्किल होता है. उनका प्रयोग करके विदेश में बैठे उनके आका पूरी दुनिया में ऐसा काम कर रहे हैं. लेकिन बीते कुछ वर्षों में टेक्नोलॉजी इंप्रूव हुई है, सरकारों का सहयोग अच्छा रहा जिसकी वजह से आईएसआईएस जैसे ग्रुप नहीं बढ़े. इंटरनेट बढ़ता रहेगा. यह चुनौती हमारे सामने रहेगी लेकिन इसी इंटरनेट का प्रयोग करके हम लोगों ने नौजवानों को जागरूक करने में सफलता हासिल की, जो थोड़ा आतंकवाद की तरह बढ़े उनको रोका गया. जहां पर एक तरफ गिरफ्तारियां हुई हैं, वहीं अब फांसी भी होगी. अब तो बड़ी संख्या में नौजवानों को रोका जा रहा है.
क्या था रमेश बाबू शुक्ला हत्याकांड?
24 अक्टूबर 2016 का दिन था, जब कानपुर में एक स्कूल के रिटायर्ड प्रिंसिपल रमेश बाबू शुक्ला की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.इस कत्ल को उस वक्त अंजाम दिया गया था, जब रमेश कानपुर के चकेरी इलाके में साइकिल से घर जा रहे. इसी दौरान सैफुल्लाह, आतिफ मुजफ्फर और फैसल ने गोली मारकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था.
आतंकियों ने हाथ में कलावा देखकर रमेश बाबू को टारगेट बनाया था. जांच में ये बात भी सामने आई थी कि आतंकियों ने अपने नए असलहों को चेक करने के लिए उन्हें टारगेट किया था. आतिफ और फैसल ने रमेश पर तीन बार फायरिंग की थी. इसमें दो फायर मिस हो गए थे. इसके बाद तीसरी गोली मारी थी जो कि उनकी पीठ में लगी थी. जिसकी वजह से मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी.
सैफुल्लाह के घर से बरामद हुई थीं आठ पिस्टल
इसके बाद लखनऊ में सैफुल्लाह एक पुलिस एनकाउंटर के दौरान मारा गया था. लेकिन उसके साथी आतिफ को भोपाल से और फैसल को कानपुर से गिरफ्तार किया गया था. फैसल से पूछताछ में इस टारगेट किलिंग का खुलासा हुआ था. यूपीएटीएस से 17 नवंबर को यह केस एनआईए को ट्रांसफर किया था. एनआईए ने अपनी जांच में मारे गए आतंकी सैफुल्लाह के घर से आठ पिस्टल बरामद की थी. साथ ही रमेश बाबू को मारी गोली के खोखे से मिलान भी किया था. इतना ही नहीं घटनास्थल पर फैसल की लोकेशन भी मिली थी. पूछताछ में पता चला था कि सैफुल्लाह बाइक चला रहा था और आतिफ और फैसल ने गोली चलाई थी. यूपी एटीएस ने सैफुल्लाह की डिस्कवर बाइक (UP 78 CP 9704) ठाकुरगंज में हुए एनकाउंटर के बाद बरामद कर ली थी.