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साजिश, कत्ल और फैसला... हाथरस कांड की पूरी कहानी, संदीप के दोषी साबित होने के बावजूद नाराज क्यों पीड़ित परिवार?

पीड़िता के भाई ने सबसे पहले दर्ज कराई गई एफआईआर में बताया था कि आरोपी संदीप खेत में उसकी बहन का गला घोंटने की कोशिश कर रहा था. उसकी चीख-पुकार सुनकर जब मां वहां पहुंची तो आरोपी वहां से फरार हो गया था.

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हाथरस कांड के बाद देशभर में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे (फोटो-PTI)
हाथरस कांड के बाद देशभर में इसके खिलाफ प्रदर्शन हुए थे (फोटो-PTI)

यूपी के चर्चित हाथरस कांड में लंबी सुनवाई के बाद में एससी-एसटी कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुना दिया. इस केस से रेप के आरोप हटा लिए गए हैं. अदालत ने चार में से तीन आरोपियों लव-कुश, रामू और रवि को बरी कर दिया है. जबकि मुख्य आरोपी संदीप सिंह को दोषी ठहराया है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस मामले का दोषी संदीप सिंह है कौन?

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ये है अदालत का फैसला
इससे पहले कि आपको संदीप सिंह की पूरी करतूत से वाकिफ कराएं, पहले अदालत के फैसले को जान लेते हैं. पीड़िता के दलित होने की वजह से यह मामला एससी-एसटी कोर्ट में चल रहा था. आरोप थे साजिश, गैंगरेप और कत्ल के. गुरुवार को अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी संदीप सिंह को धारा 3/110 और 304 का दोषी माना है. जबकि तीन आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने संदीप को आजीवन कारावास और 50000 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है. साथ ही अदालत ने इस मामले से रेप के आरोप हटा लिए हैं.

नाखुश है पीड़ित पक्ष 
अदालत अपने 167 पेज के फैसले में दोषी संदीप को आईपीसी की धारा 304 (1) और एससी-एसटी एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई है. हालांकि इस मामले में 3 आरोपियों को बरी करने और गैंगरेप के आरोप हटा लिए जाने से पीड़ित पक्ष यानी मृतका के परिवारवालें नाखुश नजर आ रहे हैं. अब पीड़ित पक्ष इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट भी जा सकता है.

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फैसले के बाद पीड़ित पक्ष की वकील का बयान
पीड़िता की वकील सीमा कुशवाहा का कहना है कि CBI ने चार बनाए थे. उनमें से अदालत ने एक आरोपी को दोषी माना है. उसे आजीवन कारावास की सजा हुई है. जुर्माना भी लगाया गया है. जबकि तीन को बरी कर दिया है. हमारे पास अधिकार है. हम हाई कोर्ट जाएंगे. 376 में कन्विक्शन नहीं है. पीड़िता ने खुद थाने में कहा था कि उसके साथ जबरदस्ती हुई थी. फिर लापरवाही के आधार पर यूपी पुलिस के एसआई वर्मा के खिलाफ सीबीआई की चार्जशीट फाइल हुई. लापरवाही है तो पुलिस की है. और जब इस मामले में एक आरोपी था, तो वो पीड़िता भी एक आरोपी का नाम ले रही थी. फिर लापरवाही कैसे हो गई? हम पहले ऑब्जरवेशन देखेंगे और फिर आगे की कार्रवाई करेंगे.

सीमा कुशवाह ने कहा कि यूपी के एडीजी ने कहा था कि सीमन नहीं पाए गए. मैं कहती हूं कि आईपीसी की धारा 375 एक बार पुलिस अधिकारियों को पढ़ानी चाहिए और हमारे जजों को भी पढ़नी चाहिए, जो ट्रायल कोर्ट में बैठे हैं.  वो क्यों सीमन ढूंढते हैं वो क्यों इंजरी देखते हैं पीड़िता के प्राइवेट पार्ट पर? अगर पेनिट्रेशन भी नहीं है, सीमन भी नहीं पाया गया, तब भी रेप है. आईपीसी 375 यही कहती है.

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पीड़िता की भाभी ने जाहिर किया गुस्सा
पीड़िता की भाभी ने इस फैसले पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि हम फैसले संतुष्ट नहीं है. हम संतुष्ट तब होंगे जब चारों को सजा मिलेगी. अस्थियों को विसर्जन भी तब होगा, जब चारों को सजा मिलेगी. आगे क्या कदम होगा? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. हाई कोर्ट जाएंगे. आगे न्यायलय ओर हैं, उनमें अपील करेंगे. इस कोर्ट से जो भी मिला है, वो आधा अधूरा है. संदीप को मिली सजा के बारे में उनका कहना था "संदीप को जो सजा मिली है, उसस कुछ नहीं हुआ. क्या न्याय मिला उससे? ठाकुरवादी न्याय. जातिवादी न्याय. धर्मवादी न्याय. ये ठाकुर लोगों को न्याय मिला है. हम लोगों को न्याय नहीं मिला." 

कौन है संदीप?
हाथरस कांड का आरोपी संदीप सिंह उसी बुलगढ़ी गांव का रहने वाला है, जिस गांव की पीड़िता थी. संदीप का घर पीड़िता के घर से ज्यादा दूर नहीं था. वो हाई स्कूल पास है और पल्लेदारी करता था. उसका संबंध उच्च जाति वर्ग से है. संदीप के पिता नरेंद्र सिंह खेती बाड़ी करते थे. उसके परिवार में उसकी मां और एक छोटा भाई और है, जो उस वक्त पढ़ाई कर रहा था. पकड़े जाने के बाद संदीप ने दावा किया था कि पीड़िता के साथ उसकी दोस्ती थी, जिससे उसका परिवार नाराज था. 

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पकड़े जाने पर संदीप ने बताया था ऑनर किलिंग 
संदीप के मुताबिक, यह पूरा मामला ऑनर किलिंग का था. उसने जेल से एसपी को एक चिट्ठी लिखी थी. जिसमें संदीप ने बताया था कि पीड़िता के साथ उसकी दोस्ती थी. मुलाकात के साथ उसकी कभी-कभी उससे फोन पर बात हो जाती थी. मेरी यह दोस्ती उसके घर वालों को पसंद नहीं थी. उसने जेल से हाथरस के एसपी को एक चिठ्ठी लिखी थी, जिसमें  संदीप ने ऑनर किलिंग का आरोप लगाया था.

14 सितंबर 2020
यही वो तारीख थी, जब हाथरस के बूलगढ़ी गांव में एक दलित लड़की के साथ दरिंदगी किए जाने का मामला सामने आया था. आरोप है कि युवती की जीभ काट दी गई थी. उसकी रीढ़ की हड्डी भी तोड़ दी गई थी. हैवानियत का शिकार हुई युवती को इलाज के लिए अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. बाद में उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया था, जहां इलाज के दौरान 29 सितंबर 2020 को उसकी मौत हो गई थी.

पीड़ित लड़की का बयान
इससे पहले परिवार और पुलिस के अनुसार बीती 22 सितंबर को पहली बार पीड़ित लड़की ने गैंगरेप के बारे में उल्लेख किया था और अन्य तीन अभियुक्तों के नाम भी बताए थे. इसके बाद एफआईआर में धारा बदली गई और फिर 23, 25 और 26 सितंबर को तीनों नामजद अभियुक्त गिरफ्तार कर लिए गए थे. जिसमें संदीप ही मुख्य आरोपी बताया गया था.

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भाई की तहरीर पर दर्ज हुई थी एफआईआर
पीड़िता के भाई ने सबसे पहले दर्ज कराई गई एफआईआर में बताया था कि आरोपी संदीप खेत में उसकी बहन का गला घोंटने की कोशिश कर रहा था. उसकी चीख-पुकार सुनकर जब मां वहां पहुंची तो आरोपी वहां से फरार हो गया था. पहली शिकायत में पीड़िता के भाई ने सिर्फ एक आरोपी संदीप का नाम लिखवाया था. अपनी शिकायत में उन्होंने वारदात का वक्त 9.30 बजे का लिखवाया था. उसके बाद एससी/एसटी अधिनियम और आईपीसी की धारा 307 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. 

एफआईआर में मां का बयान
पीड़िता की मां ने दूसरी FIR में बताया था "जब मैंने अपनी बेटी को वहां देखा, तो वह नग्न अवस्था में पड़ी हुई थी और उसके शरीर से बहुत ही खून बह रहा था. मैंने उसे अपने दुपट्टे और उसके खून से लथपथ कपड़ों से ढंक दिया. हम बेहद असमंजस में थे और एकदम सदमे की हालत में थे. हमारी बेटी बेहोश थी. जाहिर है, हम हाथरस के चंदपा पुलिस थाने में पुलिस को बलात्कार या सामूहिक बलात्कार का बयान नहीं दे सकते थे, जहां पहली प्राथमिकी दर्ज की गई थी. क्योंकि तब तक हमें नहीं पता था कि बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था. हमारी बेटी ने अपने भाइयों के कान में एक आरोपी संदीप का नाम लिया और बेहोश हो गई. तो हमने सोचा कि गांव में रहने वाले संदीप नाम के लड़के ने उसकी पिटाई की है." यही सब पहली एफआईआर में भी दर्ज था.

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पुलिस ने जबरन किया था दाह संस्कार
29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो जाने के बाद हाथरस पुलिस प्रशासन ने उसके परिवार की मर्जी के खिलाफ रात में ही खुद मृतका का अंतिम संस्कार कर दिया था. उस दौरान उसके परिवारवालों को वहां जाने भी नहीं दिया गया था. जबरन दाह संस्कार कराने को लेकर प्रशासन निशाने पर था. गैंगरेप की शिकार दलित लड़की के पिता हो या भाई, चाचा हो या कोई अन्य रिश्तेदार, सब एक सुर से पुलिस पर जबरन दाह संस्कार कराने का आरोप लगा रहे थे. योगी सरकार ने इस पूरे मामले में लापरवाही बरतने के कारण हाथरस के डीएसपी और एसपी को सस्पेंड कर दिया था. 

फूट पड़ा था जनता का गुस्सा
हाथरस कांड के बाद जो गुस्सा गुबार बनकर फूटना शुरू हुआ था, वो करीब 10 दिनों में साज़िश और कमशकश के बीच चक्रव्यूह की तरह उलझ गया था. जिसमें कई तरह चक्र थे. शुरुआत सबसे पहले उस रात से, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि हाथरस के बूलगढ़ी के 4 युवकों ने गांव की बेटी के साथ ना सिर्फ ज्यादती की, बल्कि उसे बुरी तरह ज़ख्मी भी कर डाला. जिस जगह से ज़ुल्म की ये दास्तान शुरू होती है, ठीक उसी जगह से साज़िश की बू भी आने लगी थी.

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पीड़िता के भाई से बात कर रहा था संदीप
इस कांड में सबसे बड़ा मोड़ तब सामने आया, जब पता चला कि जिस रात ये वारदात हुई, ठीक उसी रात वारदात से पहले पीड़िता का भाई, अपनी बहन के हत्याकांड के मुख्य आरोपी संदीप सिंह से लगातार बात कर रहा था. वो भी छोटी नहीं बल्कि दोनों नंबरों पर लंबी बातचीत हुई. सवाल ये कि जब युवती और आरोपी संदीप सिंह के घरों का फासला भी ज्यादा नहीं है. तो मोबाइल के जरिये दोनों नंबरों पर इतनी बातचीत की वजह आखिर क्या थी?

कॉल डिटेल ने किया था पुलिस को हैरान 
कॉल डिटेल से ये खुलासा हुआ था कि पीड़िता के भाई के नंबर से आरोपी संदीप सिंह के नंबर पर एक दो बार नहीं बल्कि 62 बार और संदीप के नंबर से युवती के भाई के मोबाइल पर 42 बार काल की गई थी. कॉल डिटेल से ये भी सामने आया था कि इस बाचतीत के दौरान दोनों नंबरों की लोकेशन भी गांव की ही थी. यानी इतना तो तय था कि पीड़िता के भाई और मुख्य आरोपी के बीच पुरानी जान-पहचान थी. पीड़ित परिवार और संदीप के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला पिछले अक्टूबर 2019 में शुरू हुआ था. ये जानकर पुलिस खुद शिद्दत से इस बात की जांच कर रही थी. हालांकि उस वक्त मुख्य आरोपी संदीप पूछताछ के दौरान इस मसले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं था.

एसआईटी भी कर रही थी मामले की जांच
इस मामले की जांच यूपी एसआईटी कर रही थी. मगर जिस तरह इस मामले ने तूल पकड़ा और पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठे थे, उसे देखते हुए यूपी सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी थी. हालांकि अभी CBI जांच शुरू होने में वक्त लग गया था. क्योंकि ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा था. पीड़िता के घरवाले लगातार न्यायिक जांच की मांग कर रहे थे.

सीबीआई की जांच 
सीबीआई की टीम जब पहली बार क्राइम सीन पर पहुंची थी. सीबीआई ने करीब चार घंटे क्राइम सीन पर गुजारे थे, वहां वीडियोग्राफी की थी, इलाके को सील किया गया था. साथ ही उसी जगह पर पीड़िता के भाई और मां से सवाल किए गए थे. इसके अलावा सीबीआई की टीम वहां पर भी गई थी, जहां पीड़िता के शव को जलाया गया था. वहां पर भी पीड़िता के बड़े भाई से जानकारी ली गई थी. गांव से लौटते वक्त सीबीआई पीड़िता के भाई को साथ ले गई थी, करीब चार घंटे बाद उसे पूछताछ के बाद छोड़ा गया था. हालांकि, उस वक्त पीड़िता के भाई ने कहा था कि इस दौरान कोई सवाल नहीं किए गए थे.

सरकार की किरकिरी
इस केस में विपक्ष और जनता पुलिस के तरीके और सरकारी कार्रवाई से बेहद नाराज थे. यूपी सरकार की खूब किरकिरी हो रही थी. उस दौरान हाथरस के बूलगढ़ी गांव को छावनी में तब्दील कर दिया गया था. मामले की संजीदगी को देखते हुए पीड़ित परिवार की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी. हाथरस कांड का सच सामने लाने और फाइनल रिपोर्ट देने के लिए यूपी सरकार ने एसआईटी को 10 दिन का वक्त दिया था.

दंगा कराने की साजिश
इस केस में एक और खुलासा हुआ था. वो ये कि इस मामले को मुद्दा बनाकर यूपी में दंगे कराने की साज़िश रची जा रही थी. यूपी पुलिस ने इसके लिए 100 करोड़ की फंडिंग किए जाने का दावा किया था. इतना ही नहीं पुलिस ने तो इस मामले में विदेशी कनेक्शन भी बता दिया था. यूपी पुलिस ने मथुरा के टोल प्लाजा से चार लोगों को गिरफ्तार किया था. जिनका ताल्लुक पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई से होने का दावा किया गया था.

मीडिया की एंट्री पर बैन
हाथरस कांड की गूंज पूरे देश में सुनाई दे रही थी. यह मामला यूपी सरकार के लिए परेशानी का सबब बन गया था. सरकार की छवि भी खराब हो रही थी. यही वजह थी कि घटना के सामने आते ही हाथरस पुलिस प्रशासन ने बूलगढ़ी गांव की सीमाओं को सील कर दिया था. गांव में मीडिया की एंट्री पर पाबंदी लगा दी गई थी. पीड़ित लड़की को परिवार को किसी से बात करने नहीं दिया जा रहा था. पुलिस ने उनके घर को ही कब्जे में कर रखा था. विपक्षी दल इस बात को लेकर हंगामा मचाते रहे. घटना के बाद कई महीने तक परिवार को पुलिस और अर्धसैनिक बल के घेरे में रखा गया था. ताकि वे मीडिया से बात ना कर सकें.  

 

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