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जानिए लखीमपुर हिंसा के आरोपियों पर लगी हैं IPC की कौन-कौन सी धाराएं, क्या है सजा का प्रावधान

लखीमपुर में किसानों को कुचलने और उसके बाद भड़की हिंसा में 8 लोगों की जान गई है. हम आपको बताते हैं कि यूपी की सिसायत में बवाल खड़े करने वाले इस मामले में पुलिस ने किन-किन धाराओं में मामला दर्ज किया है और उनमें दोषी पाए जाने पर कितनी सजा का प्रावधान है.

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इस मामले को लेकर यूपी की सियासत में जमकर बवाल हो रहा है
इस मामले को लेकर यूपी की सियासत में जमकर बवाल हो रहा है
स्टोरी हाइलाइट्स
  • केंद्रीय गृह राज्यमंत्री के बेटे पर है आरोप
  • नामजद दर्ज है एफआईआर
  • नहीं हुई कोई गिरफ्तारी

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में प्रदर्शनकारी किसानों को कार से कुचलने और उसके बाद भड़की हिंसा के मामले में पुलिस ने आईपीसी की संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. थाने में दर्ज की गई FIR के मुताबिक आरोपियों के खिलाफ दंगा भड़काने, रैश ड्राइविंग करने, जानलेवा लापरवाही और हत्या जैसे संगीन आरोप में लगाए गए हैं, जिनमें दोषी करार दिए जाने पर अधिकतम उम्र कैद और फंसी की सजा भी हो सकती है.

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लखीमपुर में किसानों को कुचलने और उसके बाद भड़की हिंसा में 8 लोगों की जान गई है. हम आपको बताते हैं कि यूपी की सिसायत में बवाल खड़े करने वाले इस मामले में पुलिस ने किन-किन धाराओं में मामला दर्ज किया है और उनमें दोषी पाए जाने पर कितनी सजा का प्रावधान है.  

आईपीसी की धारा - 147, 148
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147 और 148 के अनुसार, अगर कोई भीड़ में शामिल होकर हिंसा करता है और वो उपद्रव करने का दोषी है, तो उसे 2 से 3 साल की अवधि के लिए कारावास की सजा का प्रावधान है. जिसे दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है. या आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों ही लगाया जा सकता है. यह एक जमानती और संज्ञेय अपराध है. जिसे किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जा सकता है.

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आईपीसी की धारा- 149
भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के अनुसार, अगर कानून के खिलाफ जनसमूह में शामिल कोई व्यक्ति या सदस्य किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई अपराध करता है, या कोई ऐसा अपराध किया जाता है, जिसे उस जनसमूह के सदस्य जानते थे, तो उसमें शामिल हर व्यक्ति उस अपराध का दोषी होगा. इसके लिए एक तय अवधि के लिए कारावास की सजा का प्रावधान है. या आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों ही लगाया जा सकता है.

आईपीसी की धारा- 279 
अगर कोई व्यक्ति किसी वाहन को एक सार्वजनिक मार्ग पर किसी तरह की जल्दबाजी या लापरवाही से चलाता है, जिससे मानव जीवन को कोई खतरा या किसी व्यक्ति को चोट या आघात पहुंचा सकता है. तो वह भारत दंड संहिता की धारा 279 के तहत दोषी होगी. उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती है. आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. या फिर दोनों.

आईपीसी की धारा- 338
भारतीय दंड संहिता की धारा 338 के अनुसार, अगर किसी भी व्यक्ति के जल्दी करने या उसकी लापरवाही से किसी भी कार्य को करने से किसी शख्स को गंभीर चोट लगती है, जिससे उसकी जान को खतरा हो. तो ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार आरोपी को दोषी पाए जाने पर किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा हो सकती हो, जिसे दो वर्ष तक के लिए बढ़ाया जा सकता है. या दोषी पर एक हजार रुपये तक का आर्थिक जुर्माना हो सकता है. या दोषी को दोनों ही तरह से सजा दी जा सकती है. 

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आईपीसी की धारा- 304ए
भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के मुताबिक, अगर किसी भी व्यक्ति की लापरवाही से या लापरवाही के चलते किसी भी शख्स की मौत हो जाती है. ऐसी लापरवाही के लिए जिम्मेदार आरोपी को दोषी पाए जाने पर दो साल तक कारावास की सजा हो सकती हो. या दोषी पर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है. अदालत चाहे तो दोषी को दोनों ही तरह से दंडित किया जा सकता है. 

आईपीसी की धारा- 302
भारतीय दंड संहिता की धारा 302आईपीसी की धारा 302 कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. कत्ल के आरोपियों पर धारा 302 लगाई जाती है. अगर किसी पर हत्या का दोष साबित हो जाता है, तो उसे उम्रकैद या फांसी की सजा और जुर्माना हो सकता है. कत्ल के मामलों में खासतौर पर कत्ल के इरादे और उसके मकसद पर ध्यान दिया जाता है. इस तरह के मामलों में पुलिस को सबूतों के साथ ये साबित करना होता है कि कत्ल आरोपी ने किया है. आरोपी के पास कत्ल का मकसद भी था और वह कत्ल करने का इरादा भी रखता था.

आईपीसी की धारा- 120बी
किसी भी अपराध को अंजाम देने के लिए साझा तौर पर आपराधिक साजिश यानी कॉमन कॉन्सपिरेसी का पक्षधर बनना या हिस्सा बन जाना अपराध की श्रेणी में आता है. ऐसे मामलों में भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 120बी के तहत सजा का प्रावधान है.ऐसी किसी भी साजिश में शामिल होने वाले आरोपी को दोषी पाए जाने पर किसी एक अवधि तक के लिए कारावास की सजा हो सकती है.

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क्या है भारतीय दण्ड संहिता
भारतीय दण्ड संहिता यानी Indian Penal Code (IPC) भारत में यहां के किसी भी नागरिक द्वारा किये गए कुछ अपराधों की परिभाषा और उनमें दण्ड का प्रावधान करती है. लेकिन यह जम्मू कश्मीर और भारत की सेना पर लागू नहीं होती है. 

अंग्रेजों ने बनाई थी भारतीय दण्ड संहिता
ब्रिटिश काल के दौरान सन् 1862 में भारतीय दण्ड संहिता लागू की गई थी. इसके बाद समय-समय पर इसमें संशोधन होते रहे. विशेषकर भारत के स्वतन्त्र होने के बाद इसमें बड़ा बदलाव किया गया. पाकिस्तान और बांग्लादेश ने भी भारतीय दण्ड संहिता को ही अपनाया. लगभग इसी रूप में यह विधान तत्कालीन ब्रिटिश सत्ता के अधीन आने वाले बर्मा, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, ब्रुनेई आदि में भी लागू किया गया था.

 

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