क्या सरकार ने अन्ना हजारे के अनशन को रुकवाने के लिए सिविल सोसाइटी के सदस्य अरविंद केजरीवाल को आयकर विभाग के जरिये फंसाने की कोशिश की? अन्ना के अनशन से ठीक पहले आयकर विभाग की तरफ से केजरीवाल को भेजे एक नोटिस से तो यही सवाल उठता है.
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नोटिस में कहा गया है कि केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी की दो साल की सैलरी का साढ़े तीन लाख रुपये और उसका ब्याज 4 लाख सोलह हजार रुपये लौटाएं. यही नहीं, केजरीवाल से 50 हजार रुपये का कंप्यूटर लोन, जो ब्याज के साथ एक लाख रुपये हो चुका है, लौटने को कहा गया है.
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आयकर विभाग का इल्जाम है कि भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी के लिए जिस बांड पर दस्तखत किया था, उसका केजरीवाल ने उल्लंघन किया है. आयकर विभाग के मुताबिक स्टडी लीव के बाद केजरीवाल नौकरी पर लौटे ही नहीं.
उधर, आयकर विभाग को भेजे जवाब में केजरीवाल ने कहा है कि उन्होंने किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया. उल्टे उन्होंने नोटिस की टाइमिंग पर सवाल उठाए हैं.
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केजरीवाल का कहना है कि उन्होंने जिस बांड पर दस्तखत किया था, उसमें सिर्फ ये कहा गया था कि वो स्टडी लीव के दौरान नौकरी न तो छोड़ सकते हैं, न रिटाय़र हो सकते हैं. इस शर्त का उन्होंने पूरी तरह पालन किया.
केजरीवाल के मुताबिक शर्तों के मुताबिक वो दंड के भागीदार तभी होते, जब वो स्टडी लीव खत्म होने के बाद ड्यूटी पर नहीं आते, या इस्तीफा दे देते, या सर्विस से रिटायर हो जाते या ड्यूटी पर लौटने के बाद तीन साल की अवधि में अपना कोर्स पूरा करने में नाकाम रहते.
केजरीवाल का कहना है कि उन्होंने 1 नवंबर 2000 से 31 अक्टूबर 2002 तक की छुट्टी ली थी. एक नवंबर 2002 को उन्होंने नौकरी ज्वाइन कर ली. एक अक्टूबर 2005 को उन्होंने तीन साल पूरे कर लिए. फरवरी 2006 में उन्होंने इस्तीफा दिया. ऐसे में किसी शर्तों के उल्लंघन का सवाल नहीं उठता.