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अफगान तालिबान में दो फाड़, मुल्ला रसूल बना नया नेता

अफगान तालिबान से अलग होकर बने एक धड़े ने अपना नया नेता मुल्ला रसूल को चुन लिया है. इससे संभावित शांति वार्ता के लिए रूकावट पैदा हो सकती है. इसे मुल्ला अख्तर मंसूर के नेतृत्व में चलाए जा रहे उग्रवादी आंदोलन में पहला औपचारिक विभाजन माना जा रहा है.

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इससे शांति वार्ता में पैदा हो सकती है रूकावट
इससे शांति वार्ता में पैदा हो सकती है रूकावट

अफगान तालिबान से अलग होकर बने एक धड़े ने अपना नया नेता मुल्ला रसूल को चुन लिया है. इससे संभावित शांति वार्ता के लिए रूकावट पैदा हो सकती है. इसे मुल्ला अख्तर मंसूर के नेतृत्व में चलाए जा रहे उग्रवादी आंदोलन में पहला औपचारिक विभाजन माना जा रहा है.

इस साल जुलाई में मुल्ला उमर की मौत के बाद तालिबान में नए नेतृत्व का ऐलान हुआ था. इसी के बाद से मतभेद की बातें सामने आने लगीं. रसूल ने बैठक में कहा कि मंसूर हमारे अमीर-उल-मोमिनीन यानी प्रमुख नहीं है. हम उन्हें अपने नेता के तौर पर कुबूल नहीं करते.

वह शरिया के अनुसार कानूनन नेता नहीं चुने गए. संगठन में बहुत से लोग इस बात से नाखुश थे कि उमर की मौत को दो साल तक छिपाए रखा गया. इस दौरान ईद पर जारी होने वाले वार्षिक बयान भी उनके नाम से जारी किए गए. उमर के उत्तराधिकारी के तौर पर मंसूर की नियुक्ति जल्दबाजी में की गई.

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