आसाराम की सबसे बड़ी राजदार थी शिल्पी उर्फ संचिता गुप्ता. वह आसाराम के लिए लड़कियों का प्रबंध करती थी. वह लड़कियों को बहला फुसलाकर बाबा के सामने समपर्ण कराती थी. आसाराम की गिरफ्तारी के बाद करीब महीने भर वो पुलिस के साथ लुका-छुपी खेलती रही लेकिन हाई कोर्ट से अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो जाने के बाद उसने खुद ही अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया था.
दरअसल, आसाराम की गिरफ्तारी से पहले ही शिल्पी फरार हो गई थी. तभी से पुलिस उसकी शिद्दत से तलाश कर रही थी. लेकिन उसका कोई सुराग पुलिस को नहीं मिल पा रहा था. इसी दौरान उसके वकीलों ने हाई कोर्ट में अग्रिम ज़मानत याचिका दाखिल कर दी थी. लेकिन हाई कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया और तभी दस मिनट के अंदर शिल्पी ने खुद कोर्ट में जाकर आत्मसमर्पण कर दिया था.
पुलिस के मुताबिक दोपहर साढ़े 3 बजे हाई कोर्ट से शिल्पी की जमानत याचिका खारिज हुई थी और 3 बजकर 40 मिनट पर उसने सरेंडर कर दिया था. तब पुलिस को पता चला था कि सुनवाई के दौरान वह कोर्ट के आस-पास ही मौजूद थी. लेकिन किसी को इस बात की भनक तक नहीं लगी थी. इससे पहले सेशन कोर्ट से शिल्पी की जमानत याचिका खारिज हो चुकी थी.
शिल्पी चौबीसों घंटे आसाराम के इर्द गिर्द रहा करती थी. पुलिस को पता था कि उससे पूछताछ में कई अहम खुलासे हो सकते हैं. लिहाजा आसाराम की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ गई थीं.
इसी दौरान पीड़िता ने जोधपुर पुलिस को बताया था कि शिल्पी ही वो महिला थी, जो गुरुकुल में पढ़ने वाली लड़कियों को आसाराम के सामने समर्पण कराती थी. उन्हें इस काम के लिए तैयार करती थी.
छानबीन के दौरान जोधपुर पुलिस को पता चला था कि आसाराम ने इसी काम की वजह से शिल्पी को अपने गुरुकल का वार्डन बनाया था. पीड़िता को भी शिल्पी ने ही आसाराम के पास जाने के लिए तैयार किया था. इसी मकसद से आसाराम ने शिल्पी को हरिद्वार के आश्रम से हटाकर छिंदवाड़ा के गुरुकुल में वार्डन बना कर भेजा था.
पुलिस के अनुसार शिल्पी ही लड़कियों पर भूत प्रेत का साया होने की बात कह कर उन्हें आसाराम के पास भेजती थी. पीड़िता को भी आसाराम के पास अकेले भेजने की साजिश उसी ने रची थी. लड़की के मां-बाप को भी उसी ने जाल में फंसाया था. पुलिस की मानें तो शिल्पी की पीड़िता के अलावा भी कई लड़कियों को आसाराम के शयनकक्ष तक पहुंचा चुकी थी.